Thursday, September 1, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सत्ता गिरोह की मनमानी को रोकने में सचमुच सफल हो सकेंगे, और या गिरोह के लोगों की चालबाज़ियों का खुद ही शिकार हो जायेंगे ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन दीपक गर्ग के इस्तीफे से शुरू हुए 'नाटक' पर जो सख़्त रवैया अपनाया है, उससे नाटक के रचयिता और उसके कलाकारों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है - और उन्हें अपना नाटक पिटता हुआ दिख रहा है । नाटक के कुछेक कलाकारों ने हालाँकि यह कहते हुए नाटक को अंजाम तक पहुँचाने का दावा तो किया है - कि नाटक की जब अच्छे से रिहर्सल हो चुकी है, नाटक के कलाकार अपनी अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं; और 'दर्शक' भी, चाहे खुशी से और चाहे मजबूरी से, नाटक देखने के लिए तैयार हैं - तो फिर हम नाटक को बीच में ही क्यों रोक दें ? लेकिन सुना जा रहा है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट ने कोड़ा जोर से फटकारा है - और यह स्पष्ट कर दिया है कि वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को ऐसी स्टेज नहीं बनने देंगे, जहाँ कोई भी मनमाने तरीके से कैसा भी नाटक खेल जाए । 'दर्शकों' को लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मामला जहाँ है - वहाँ नाटक तो होगा ही; देखने की बात सिर्फ यह है कि किसकी स्क्रिप्ट के अनुसार होगा ? नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा की स्क्रिप्ट के अनुसार शुरू हुए नाटक से पैदा हुए बबाल ने हालात तो ऐसे बना ही दिए हैं - कि अब यहाँ से आगे जो कुछ भी होगा, वह खासा नाटकीय और अभूतपूर्व होगा ।
राजेश शर्मा की स्क्रिप्ट को पसंद न करते हुए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी ने नाटक के अगले दृश्य के लिए अपनी स्क्रिप्ट दी है - जिसके अनुसार या तो दीपक गर्ग अपना इस्तीफ़ा बिना शर्त वापस लें और चेयरमैन पद का अपना कार्यकाल पूरा करें; अन्यथा इंस्टीट्यूट प्रशासन रीजनल काउंसिल को एक प्रशासक के सहारे चलायेगा । देवराज रेड्डी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दीपक गर्ग के इस्तीफ़े के जरिए चेयरमैन पद के कार्यकाल को छह-छह महीने कर देने की जिस योजना को क्रियान्वित करने की बात सुनी जा रही है, उसे किसी भी दशा में क्रियान्वित नहीं होने दिया जायेगा । रीजनल काउंसिल में सत्ता गिरोह के लोग प्रेसीडेंट के इस रवैए को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं : इस संबंध में उनका बड़ा मासूम सा तर्क है और वह यह कि चेयरमैन यदि अपने पद पर नहीं बने रहना चाहता है और वह अपना पद छोड़ देता है, तो बाकी सदस्य काउंसिल का नया चेयरमैन चुनेंगे ही न ? इसमें गलत क्या है ? चालाकी भरी इस मासूमियत को दरअसल भरोसा है कि चेयरमैन के चुनाव में बहुमत का ही पलड़ा भारी होता है, और बहुमत उनके पास है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट का मानना और कहना किंतु यह है कि बहुमत के नाम पर किसी को भी नंगा नाच करने का अधिकार तो लेकिन नहीं दिया जा सकता है न ? देवराज रेड्डी को एक कठोर प्रशासक के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और माना जाता है कि वह एक बार जो करने की ठान लेते हैं, उसे फिर पूरा करके ही दम लेते हैं । इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो सत्ता गिरोह है, उसकी मनमानी नहीं चल पायेगी और उन्होंने जो नाटक शुरू किया है, वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के कारण पूरा नहीं हो पायेगा ।
मजे की बात यह भी है कि रीजनल काउंसिल में सत्ता गिरोह के कुछेक सदस्य देवराज रेड्डी के इस सुझाव को स्वीकार कर लेने की भी बात करने लगे हैं, जिसमें दीपक गर्ग के इस्तीफ़े के वापस होने का विकल्प दिया गया है । दीपक गर्ग भी यही चाहते हैं, और सत्ता गिरोह के सदस्यों में उन्हें कुछेक समर्थक भी मिल गए हैं । यहाँ इस बात को याद करना प्रासंगिक होगा कि दीपक गर्ग ने अपने इस्तीफ़े के साथ ही इस तरह का माहौल बनाना और लोगों को यह बताना शुरू कर दिया था कि उनसे जबर्दस्ती इस्तीफ़ा लिखवाया गया है । दीपक गर्ग ने स्वेच्छा से इस्तीफ़ा नहीं दिया है, और देवराज रेड्डी के रवैए से उन्हें अपना चेयरमैन का पद बचता हुआ दिख रहा है - लेकिन वह सचमुच पद बचा पायेंगे, इसमें कुछ मुश्किलें हैं । उनके नजदीकियों के बीच ही सवाल है कि दीपक गर्ग अपना इस्तीफ़ा यदि वापस लेते हैं, तो क्या लोगों के बीच इसे अपने ही थूके हुए को चाटने जैसे मामले के रूप में नहीं देखा जायेगा ? दीपक गर्ग के लिए इस्तीफ़ा वापस लेने का सिर्फ एक ही 'रास्ता' है - और वह यह कि अपने इस्तीफ़े के लिए उन्होंने जिस इंस्टीट्यूट प्रशासन यानि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को जिम्मेदार ठहराया है, वह उनसे माफी माँगे और इस्तीफ़ा वापस लेने के लिए अनुरोध करे । ऐसा हो पाना असंभव है । दीपक गर्ग के लिए मुसीबत की बात यह है कि अपने इस्तीफ़े में उन्होंने जिस इंस्टीट्यूट प्रशासन यानि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को जिम्मेदार ठहराया है - वह उनके आरोपों को सच मानने, स्वीकार करने तथा माफी माँगने की बजाए उनसे कह रहा है कि - बकवास बंद करो, इस्तीफ़ा वापस लो और अपना काम करो । ऐसे में, दीपक गर्ग यदि काउंसिल के चेयरमैन पद से अपना इस्तीफ़ा वापस लेते हैं, तो यह उनके लिए और भी ज्यादा फजीहत की बात होगी ।
ऐसे में, नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को इंस्टीट्यूट प्रशासन द्धारा थोपे गए किसी प्रशासक के हाथों में जाने से रोकने के एक सम्मानजनक तरीके के रूप में कुछेक लोगों की तरफ से आए इस सुझाव की चर्चा भी जोरों पर है - जिसमें कहा गया है कि रीजनल काउंसिल का सत्ता गिरोह बहुमत में होने का घमंड छोड़े और रीजन के सभी चुने हुए सदस्यों की आपसी सहमति से चेयरमैन का चुनाव करे, तथा उस चुनाव को स्वीकार करने के लिए प्रेसीडेंट को राजी करे । यह सुझाव देने/रखने वाले लोगों का विश्वास है कि रीजन के सभी चुने हुए सदस्य जब मिलजुल कर लिए गए अपने किसी फैसले के साथ प्रेसीडेंट से बात करेंगे, तो प्रेसीडेंट उनके फैसले को स्वीकार करने के लिए राजी हो जायेंगे । इस तरीके से सभी का सम्मान भी बचा/बना रहेगा, और रीजनल काउंसिल किसी प्रशासक के हाथों में जाने से भी बच जाएगी । यह देखना दिलचस्प होगा कि रीजनल काउंसिल का सत्ता गिरोह अपने आपको और ज्यादा फजीहत से बचाने के लिए इस तरह के किसी सर्वसम्मत फैसले पर पहुँचने के सुझाव पर काम करेगा, या बहुमत की दादागिरी के नाम पर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी से दो-दो हाथ करने की तैयारी करेगा ?