Tuesday, September 6, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में विजय झालानी के साथ मिलकर तिकड़म लगाने की राकेश मक्कड़ की कोशिशों के बावजूद दीपक गर्ग के 'इस्तिफित चेयरमैन' बने रहने का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 'इस्तिफित चेयरमैन' दीपक गर्ग के चेहरे पर वापस लौटी रौनक को देख कर लोगों ने अनुमान लगाया है कि उन्हें अपनी कुर्सी बचने का पूरा भरोसा हो गया है । समझा जाता है कि दीपक गर्ग के इस्तीफे से शुरू हुए नाटक की रूपरेखा तैयार करने वाले मुख्य सूत्रधार राजेश शर्मा को इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी के कड़े रवैए के कारण अपनी योजना समेटनी पड़ रही है, और मामले को 'जहाँ जो जैसा है उसे वहीं पड़ा रहने देने' के लिए मजबूर होना पड़ा है । राजेश शर्मा के पीछे हटने से पंकज पेरिवाल के चेयरमैन बनने की संभावना पर तो ग्रहण लग ही गया है, चेयरमैन बनने की जुगाड़ में लगे दूसरे लोगों को भी अपनी दाल गलती हुई नहीं दिख रही है - और इसलिए वह भी अपनी अपनी कोशिशों को विराम देते हुए नहीं लग रहे हैं । राकेश मक्कड़ को हालाँकि अभी भी उम्मीद लगाए 'उम्मीदवार' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल पिछले दिनों उन्हीं की तरफ से यह बात लोगों को सुनने को मिली थी कि वह अभी हाल ही में सेंट्रल काउंसिल में नोमिनेट हुए विजय झालानी को नौ सितंबर की मीटिंग में लायेंगे तथा सत्ता गिरोह के बहुमत को और बढ़ायेंगे । उस बात से तथा उनकी कुछेक दूसरी बातों से लोगों को लगता है कि विजय झालानी के जरिए वह कोई चक्कर चलाने की फ़िराक में हैं और प्रेसीडेंट के दबाव के बावजूद नया चेयरमैन चुनवाने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं । राकेश मक्कड़ को लगता है कि प्रेसीडेंट के कोड़ा फटकारने के बाद चेयरमैन बनने/बनवाने वाले सारे सूरमा जब बिलों में दुबक गए हैं, तब सेंट्रल काउंसिल में नॉमिनेटेड सदस्य विजय झालानी की मदद से वह चेयरमैन पद पा सकते हैं ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में विजय झालानी के नोमीनेट होने से इंस्टीट्यूट की राजनीति में और 'रंगीनियत' व रोचकता आ गई है । इंस्टीट्यूट की राजनीति में नोमिनेटेड सदस्यों की और या उनकी किसी भूमिका की कभी कोई चर्चा नहीं सुनी गई, किंतु विजय झालानी नोमीनेट होते ही चर्चा में आ गए हैं - इससे ही साबित है कि विजय झालानी की बात ही कुछ खास है । वर्ष 1999-2000 में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन रह चुके विजय झालानी इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं, और एनडी गुप्ता खेमे के 'आदमी' के रूप में पहचाने जाते हैं । सेंट्रल काउंसिल के पिछले तीनों चुनावों में उन्होंने एनडी गुप्ता के बेटे नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में जमकर काम किया था । अगले चुनाव में उन्हें एनडी गुप्ता खेमे के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । विजय झालानी ने लेकिन सामने के रास्ते से आने की बजाए चोरी-छिपे खिड़की के रास्ते से सेंट्रल काउंसिल में आने का फैसला किया, और आ पहुँचे । इसके लिए उन्हें अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट रजिस्ट्रेशन को छोड़ने की जरूरत थी - जिसे छोड़ने में उन्होंने कोई हिचक नहीं दिखाई । यानि जिस प्रोफेशन से उन्हें नाम और पहचान मिली, उस प्रोफेशन की गवर्निंग बॉडी में पद पाने के लिए उन्होंने उस प्रोफेशन को ही लात मार देने में देर नहीं लगाई । यह कुछ थोड़े से तथ्य जानना इसलिए जरूरी हैं, ताकि इस बात को समझा जा सके कि नोमिनेटेड सदस्य होने के बावजूद सेंट्रल काउंसिल में विजय झालानी की मौजूदगी क्यों कुछ खास है ? खास होने के कारण ही विजय झालानी के सहारे राकेश मक्कड़ यदि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के दबाव के बावजूद रीजनल काउंसिल के चेयरमैन बनने की तिकड़म लगा रहे हैं, तो यह बहुत स्वाभाविक सी बात है ।
विजय झालानी के साथ मिलकर राकेश मक्कड़ जो खिचड़ी पकाने की कोशिश कर रहे हैं, दीपक गर्ग और उनके नजदीकी उसे लेकिन गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । दीपक गर्ग के नियमित संपर्क में रहने वाले लोगों में से उन कुछेक का, जिनसे बात हो सकी है, कहना है कि दीपक गर्ग के चेहरे पर वापस लौटी खुशी से संकेत मिल रहा है कि चेयरमैन पद से इस्तीफ़ा देने के बावजूद दीपक गर्ग को चेयरमैन पद पर बने रहने का भरोसा मिल गया है । राजेश शर्मा की योजना में पंक्चर हो जाने को दीपक गर्ग अपनी एक बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं । दीपक गर्ग के चेयरमैन बने रहने की 'स्थितियाँ' बनाए रखने के लिए जो फार्मूला अपनाए जाने की चर्चा है, उसके अनुसार नौ सितंबर को होने वाली मीटिंग में दीपक गर्ग के इस्तीफे पर विचार ही नहीं किया जाएगा : इस तरफ न इस्तीफ़ा अस्वीकार करने की जरूरत पड़ेगी, और न दीपक गर्ग के लिए इस्तीफ़ा वापस लेने की नौबत होगी; और इस्तीफ़ा देने के बावजूद दीपक गर्ग चेयरमैन पर बने रहेंगे । दीपक गर्ग ने इस्तीफ़ा देने के लिए पाँच पृष्ठों में जो कारण बताए हैं, उन्हें देखते हुए तो दीपक गर्ग को चेयरमैन पद पर एक भी दिन बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है; लेकिन जहाँ पद पाने के लिए लोग ईमान और प्रोफेशन छोड़ने को तैयार बैठे हों, वहाँ दीपक गर्ग को नैतिकता की परवाह करने की जरूरत ही क्या है ?
राजेश शर्मा द्धारा संयोजित और निर्देशित नाटक को फेल करने के लिए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट द्धारा जो फार्मूला बताया गया है, उसे नौ सितंबर की मीटिंग में यदि सफलतापूर्वक अपना लिया जाता है; और दीपक गर्ग के चेयरमैन पद पर बने रहने का रास्ता यदि साफ हो जाता है तो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में एक नया पद देखने को मिलेगा : इंस्टीट्यूट में चेयरमैन अभी तक दो ही तरह के हैं - एक 'चेयरमैन' और दूसरा 'भूतपूर्व चेयरमैन'; दीपक गर्ग लेकिन तीसरी तरह के चेयरमैन होंगे - 'इस्तिफित चेयरमैन' यानि इस्तीफ़ा देने के बावजूद बना रहने वाला चेयरमैन । इंस्टीट्यूट के इतिहास में ऐसा चेयरमैन पहली बार देखने को मिलेगा ।