Wednesday, September 28, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल मीटिंग में विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों की वकालत करके संजीव चौधरी अलग-थलग पड़े और भारी फजीहत का शिकार बने

नई दिल्ली । विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों को देश में काम करने की अनुमति देने के मामले में संजीव चौधरी ने विदेशी फर्मों के समर्थन में शॉट तो जोर का लगाया, लेकिन बहस में वह जिस तरह से अलग-थलग पड़े दिखाई दिए - उससे खुद उन्हें ही डर हो गया है कि उनकी बॉल गोल में जाएगी भी और या उन्हीं को चोट पहुँचाएगी ? अपनी संभावित फजीहत से बचने के लिए उन्होंने बिग फोर के एक अन्य सदस्य एनसी हेगड़े के रूप में हालाँकि एक बलि का बकरा ढूँढ़ लिया है । इससे पहले भी इंस्टीट्यूट के चुनावों में, खासतौर से सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवारों के लिए समय-सीमा के निर्धारण के मुद्दे पर संजीव चौधरी को बुरी तरह से मुँहकी खानी पड़ी थी । उस मामले में भी संजीव चौधरी जोश में होश खो बैठे थे, और उन्होंने अपनी स्वार्थी व्यक्तिवादी सोच काउंसिल व इंस्टीट्यूट पर लादने की कोशिश की थी; इस बार भी उनका रवैया काउंसिल, इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को अपनी मर्जी से हाँकने की कोशिश करने वाला था - जिसका नतीजा यह हुआ कि काउंसिल में वह पूरी तरह अकेले पड़ गए; यहाँ तक कि इस मामले में जिन एनसी हेगड़े का समर्थन मिलने की उन्होंने खासी उम्मीद की थी, उन एनसी हेगड़े की तरफ से भी उन्हें सक्रिय व पर्याप्त समर्थन नहीं मिला ।
उल्लेखनीय है कि विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों को देश में काम करने की अनुमति देने या न देने को लेकर कंपनी मामलों के मंत्रालय द्धारा माँगी गई सलाह पर विचार के लिए इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की पिछली मीटिंग में विचार विमर्श किया गया था । विचार विमर्श शुरू होते ही संजीव चौधरी ने विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों के पक्ष में शॉट पर शॉट लगाना शुरू कर दिया । उक्त मीटिंग में मौजूद सदस्यों के अनुसार, संजीव चौधरी के तेवर दिखा/बता रहे थे जैसे कि वह खुद विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों को अनुमति देने के आदेश पर दस्तख़त कर दें । संजीव चौधरी के रवैये ने मीटिंग में मौजूद काउंसिल के दूसरे सदस्यों का पारा गर्म किया, और फिर उन्होंने संजीव चौधरी के तर्कों की धज्जियाँ उड़ाईं । नवीन गुप्ता, विजय गुप्ता, मुकेश कुशवाह, प्रफुल्ल छाजेड़ आदि ने खासी मुखरता के साथ विदेशी फर्मों को देश में अनुमति देने से पैदा होने वाले खतरों को रेखांकित किया । इन सभी का अपने अपने तरीके से कहना रहा कि विदेशी फर्मों के देश में काम करने से देश की फर्मों और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा तथा उनके सामने अपनी पहचान व प्रतिष्ठा के साथ काम करना संभव ही नहीं रह जायेगा और उनके सामने विदेशी फर्मों में नौकरी करने का ही विकल्प बचा रह जायेगा । इनका कहना रहा कि विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों के देश में काम करने से सिर्फ देश की चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों पर ही असर नहीं पड़ेगा, बल्कि देश के उद्योग जगत को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी - और इस तरह से विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों का देश में प्रवेश देश की जनता के लिए और देश के लिया आत्मघाती होगा ।
मीटिंग में मौजूद बाकी सदस्यों का रवैया भी विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों के विरोध का ही था । एनसी हेगड़े ने जरूर मामले को संतुलित ढंग से विवेचित करने का प्रयास किया और उनकी बातों को सुनते हुए वहाँ मौजूद सदस्यों को कभी कभी ऐसा लगा कि जैसे एनसी हेगड़े विदेशी फर्मों की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उनकी वकालत का स्वर काफी नीचा था; और इसलिए उनकी वकालत के बावजूद संजीव चौधरी को कोई मदद और सहारा नहीं मिल पाया । संजीव चौधरी की बातों और उनके तर्कों को 'पीटने' में नवीन गुप्ता, विजय गुप्ता, मुकेश कुशवाह, प्रफुल्ल छाजेड़ आदि ने जिस तरह की तेजी और आक्रामकता दिखाई - उससे मीटिंग में खासी गर्मी पैदा हो गई और विचार-विमर्श के लिए समय कम पड़ गया, लिहाज़ा इस विचार-विमर्श को अगली मीटिंग के लिए स्थगित कर दिया गया । पिछली मीटिंग में हुई बातें बाहर आईं तो काउंसिल सदस्यों पर दबाव बनना शुरू हुआ है, और लोग उनसे सवाल पूछने लगे हैं कि प्रोफेशन को विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों को बेच ही दोगे क्या ? संजीव चौधरी के रवैये पर तमाम लोगों को नाराजगी है; लोगों का कहना है कि संजीव चौधरी चुनाव के समय तो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के भले के लिए न जाने क्या क्या करने की बातें कर रहे थे, और अब वह विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों के 'प्रतिनिधि' के रूप में ऐसे काम कर रहे हैं - जैसे कि काउंसिल में वह उन्हीं की 'नौकरी' बजाने के लिए आए हैं । काउंसिल के भीतर और बाहर आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच संजीव चौधरी की जैसी फजीहत हुई है और हो रही है, उसे देखते हुए लग रहा है कि काउंसिल की मीटिंग में विदेशी चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्मों की वकालत उन्हें बहुत भारी पड़ रही है ।
इससे पहले, सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों/उम्मीदवारों के लिए समय-सीमा के निर्धारण के मुद्दे पर संजीव चौधरी को उस समय बुरी तरह से मुँहकी खानी पड़ी थी, जब उनके नेतृत्व में बनी कमेटी द्धारा की गईं कुछेक खास सिफारिशें काउंसिल सदस्यों के बीच हुई सीक्रेट वोटिंग में समर्थन पाने में विफल रहीं थीं । उस विफलता, और विफलता के कारण होने वाली फजीहत की चर्चा हालाँकि सिर्फ काउंसिल सदस्यों तक ही सीमित थी । इसलिए विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों को देश में काम करने की अनुमति देने या न देने के मामले में उनकी जो फजीहत हुई है, उसने उन्हें ज्यादा गंभीर चोट पहुँचाई है । विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों की वकालत करने के कारण काउंसिल सदस्यों के साथ-साथ आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनकी प्रोफेशन व चार्टर्ड एकाउंटेंट्स विरोधी जो छवि बनी है, वह उनके भारी मुसीबतें खड़ी कर सकती हैं । संजीव चौधरी के लिए परेशानी की बात यह है कि काउंसिल में बिग फोर के जो दूसरे सदस्य हैं, उनका भी उन्हें वैसा सहयोग व समर्थन मिलता हुआ नहीं दिख रहा है, जैसा कि वह चाहते हैं । एनसी हेगड़े के रवैये का जिक्र इस रिपोर्ट में पहले किया ही जा चुका है; दीनल शाह पिछली मीटिंग में तो नहीं थे, लेकिन उनकी तरफ से संजीव चौधरी को ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं जिनसे वह अगली मीटिंग में उनके सहयोग/समर्थन की उम्मीद कर सकें । दीनल शाह को दरअसल अहमदाबाद में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति करनी है, और वहाँ अपनी राजनीतिक विरासत को मजबूत करना है - इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह विदेशी चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्मों की वैसी खुल्लमखुल्ला वकालत नहीं करेंगे, जैसी वकालत संजीव चौधरी ने की है और अपनी फजीहत करवाई है ।
काउंसिल में अलग-थलग पड़ जाने तथा आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच हो रही फजीहत को देखते हुए उनके नजदीकियों को भी लग रहा है कि संजीव चौधरी ने इस बार बहुत ही गलत शॉट खेल दिया है । इससे संजीव चौधरी कोई सबक लेंगे या नहीं, और काउंसिल की अगली मीटिंग में वह क्या करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा ।