गाजियाबाद
। दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के संदर्भ
में की अपनी कमजोरियों व गलतियों से कोई सबक न सीखता देख, दीपक गुप्ता के
नए बन सकने वाले समर्थकों को तगड़ा झटका लगा है । उन्हें
तगड़ा वाला झटका दरअसल इसलिए भी लगा है क्योंकि वह देख/पा रहे हैं कि दीपक
गुप्ता उनकी सलाह व उनके सुझावों पर भी कोई गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं, और
अभी भी मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल से ही दिशा निर्देश ले रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता ने अभी पिछले दिनों ही अपने घर पर अपनी
उम्मीदवारी के अभियान की दशा-दिशा पर विचार-विमर्श करने को लेकर एक मीटिंग
बुलाई थी, जिसमें उन्होंने अपने संभावित समर्थकों व शुभचिंतकों को आमंत्रित
किया था । मीटिंग खत्म होते ही मीटिंग को लेकर मुकेश अरनेजा और सतीश
सिंघल की तरफ से जिस तरह की सक्रियता 'देखने' को मिली, उसने भी मीटिंग में
शामिल हुए कुछेक लोगों को भड़काया है । उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता
द्धारा मीटिंग के लिए आमंत्रित किए गए लोगों में दो तरह के लोग थे : एक तो
वह लोग थे जो पिछले वर्ष हुए चुनाव में भी उनके समर्थन में थे; और दूसरी
तरह के लोगों के रूप में वह थे जो पिछले वर्ष हुए चुनाव में उनके
प्रतिद्धंद्धी रहे सुभाष जैन के समर्थन में थे । विचार-विमर्श में लोगों ने
जो जो कहा उसमें भी मोटे तौर पर दो खेमे बने : एक खेमे की आवाज़ में
'जीतेगा भई जीतेगा, दीपक गुप्ता जीतेगा' वाला भाव था; दूसरे खेमे में
संजीदगी के साथ हालात व स्थिति की जरूरत को समझते हुए एक्शन तय करने का
सुझाव था, जिसके तहत कहा/बताया गया कि हमेशा यह आकलन करते रहना चाहिए कि
लोगों के बीच धारणा क्या बन रही है और उसके अनुसार ही अपनी सक्रियता की
दशा-दिशा को संयोजित करना चाहिए । विचार-विमर्श में कुछेक लोगों ने
स्पष्ट रूप से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच दीपक गुप्ता को लेकर बनी
नकारात्मक धारणाओं का जिक्र करते हुए सुझाव दिया कि दीपक गुप्ता को इस बारे
में सावधान होना/रहना चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि उनके व्यवहार व आचरण
से लोगों के बीच कोई नकारात्मक संदेश न जाए । विचार-विमर्श में शामिल लोगों
ने महसूस किया कि दीपक गुप्ता ने व्यक्त किए गए सुझावों को सहृदयता से
स्वीकार किया और सभी को आश्वस्त किया कि वह सुझावों पर अमल करेंगे ।
उक्त
विचार-विमर्श में शामिल कुछेक लोगों को अब लेकिन लग रहा है कि दीपक गुप्ता
के अभियान के रवैये में कोई बदलाव नहीं है, तथा वह अपने पुराने ढर्रे पर
ही कायम हैं । इस विचार के लोगों को लग रहा है कि दीपक गुप्ता दरअसल जमीनी
सच्चाइयों को पहचानने/समझने की कोई कोशिश ही नहीं करते हैं, और अपने
नजदीकियों के बहकाए में रहते हैं । इसी रवैए के चलते पिछले वर्ष उन्हें
पहले नोमीनेटिंग कमेटी में हुए चुनाव में और फिर सीधे हुए चुनाव में हार
का सामना करना पड़ा था । मजे की बात यह है कि दोनों ही मौकों पर दीपक गुप्ता
के नजदीकी और समर्थक नेता उनकी ही जीत के दावे कर रहे थे; दावे जब उलटे
साबित हुए तो 'इस' पर और 'उस' पर धोखा देने के आरोप लगा कर अलग खड़े हो गए ।
दीपक गुप्ता के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि
दीपक गुप्ता ने लेकिन पिछले वर्ष के अपने अनुभव से कोई सबक नहीं सीखा है,
और अभी भी वह ऐसे लोगों के ही प्रभाव में हैं, जो जमीनी सच्चाई को अनदेखा
करते हुए 'जीतेगा भई जीतेगा' वाली रट लगाए रख रहे हैं । कई लोग हैं जो
खुल कर कहते हैं कि दीपक गुप्ता ने पिछले वर्ष उनके सुझावों पर कोई तवज्जो
नहीं दी, और अपनी फजीहत करवाई; इस वर्ष भी उनका वैसा ही रवैया दिख रहा है ।
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान को लेकर होने वाले विचार-विमर्श में
शामिल होने खातिर उनके घर जाने वाले कुछेक लोगों का ही नाराजगी के साथ कहना
है कि दीपक गुप्ता को अपनी जीत का यदि इतना ही भरोसा है, तो फिर विचार-विमर्श करने की जरूरत ही क्या है ?
दीपक
गुप्ता के घर हुई मीटिंग की जानकारी जिस तत्परता के साथ मुकेश अरनेजा और
सतीश सिंघल तक पहुँची और जिस तत्परता के साथ उन्होंने अलग अलग लोगों से
फीडबैक लेना और दीपक गुप्ता की जीत का दावा करना शुरू किया, उससे भी दीपक
गुप्ता के घर पर हुई मीटिंग में शामिल हुए कुछेक लोगों को ऐतराज हुआ । उनका
कहना है कि दीपक गुप्ता को यदि लगता है कि मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ही
उन्हें चुनाव जितवा देंगे, तो फिर वह उनके ही भरोसे रहें - किसी और से बात
करने की उन्हें भला क्या जरूरत है ? ऐसा कहने वाले लोग ध्यान दिलाते हैं कि
मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की हर संभव कोशिशों के बावजूद पिछले वर्ष दीपक
गुप्ता अपनी हार और फजीहत को बचा नहीं सके थे - फिर भी वह इन दोनों के
चक्कर में पड़े हुए हैं । दीपक गुप्ता इस सच्चाई को या तो देख/पहचान
नहीं रहे हैं, और या स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट
के रूप में सतीश सिंघल जो कर रहे हैं, उसके कारण बहुत से लोग नाराज हो
रहे हैं - और उसका नुकसान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के
रूप में दीपक गुप्ता को उठाना/भुगतना पड़ सकता है ।
मुकेश
अरनेजा और सतीश सिंघल दरअसल दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने की
आड़ में अपना अपना उल्लू सीधा करने की कोशिशों में हैं । उनकी कोशिश है कि
दीपक गुप्ता को उनके उम्मीदवार के रूप में पहचाना जाए तथा दीपक गुप्ता की
उम्मीदवारी का समर्थन करने वाला हर व्यक्ति उनके 'आदमी' के रूप में देखा
जाए । समस्या की बात यह है कि दीपक गुप्ता को यदि सचमुच चुनाव जीतना
है, तो उन्हें ऐसे लोगों का भी समर्थन चाहिए होगा, जो मुकेश अरनेजा और या
सतीश सिंघल को पसंद नहीं करते हैं । ऐसे कई लोग दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी
के प्रति हमदर्दीभरी और समर्थनपूर्ण बातें करते सुने/देखे भी जा रहे हैं;
लेकिन ऐसे लोगों को मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल जब अपने पाले में खींचने और
अपना 'आदमी' बताने की कोशिशों में जुटते हैं, तो फिर वह दीपक गुप्ता की
उम्मीदवारी का समर्थन करने से पीछे हटते हैं - और इससे कुल मिलाकर दीपक
गुप्ता का ही नुकसान होता है । दीपक गुप्ता के घर पर हुई मीटिंग के बाद,
मीटिंग में शामिल हुए कुछेक लोगों से मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने जिस
अंदाज़ में बातें कीं, उससे उन लोगों को तथा दूसरे लोगों को भी समझ में आ
गया है कि दीपक गुप्ता जब तक मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की 'छाया' से बाहर
नहीं निकलेंगे, तब तक सफलता के नजदीक पहुँच पाना उनके लिए मुश्किल ही होगा
। दीपक गुप्ता के घर पर हुई मीटिंग में, पिछले वर्ष दीपक गुप्ता की
उम्मीदवारी के विरोध में रहे लोगों के भी पहुँचने से दीपक गुप्ता की
उम्मीदवारी को जो दम मिलने की उम्मीद बनी दिखी थी - मुकेश अरनेजा और सतीश
सिंघल की 'होशियारी' ने फिलहाल तो उस दम का दम निकाल दिया है ।