Sunday, September 25, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में कुछेक घंटों के लिए पैरोल पर आए असित मित्तल के बेमतलब के समर्थन पर उत्साह दिखा कर दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी की कमजोरी को ज़ाहिर किया है क्या ?

नोएडा । दीपक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के समर्थन में जेल में बंद होकर सजा काट रहे 'नेता' के उतर आने से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल में एक अलग तरह की रंगत तो आ ही गई है - साथ ही लेकिन डिस्ट्रिक्ट की पहचान और छवि पर कलंक लगने का खतरा भी पैदा हो गया है । देश की चुनावी राजनीति में जब तब सुनने/देखने को मिलता है कि किस तरह जेल में बंद अपराधी अपने 'आदमी' को चुनाव जितवाने के लिए जेल से ही फरमान जारी करते हैं; दीपक गुप्ता की मेहरबानी से लगभग वही 'सीन' अब रोटरी में डिस्ट्रिक्ट 3012 की पहचान बनेगा । दीपक गुप्ता और उनके समर्थक खासे उत्साहित हैं कि जेल में बंद असित मित्तल ने जिस तरह से उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में कैम्पेन चलाया है, उसके चलते वह चुनावी जीत के और नजदीक पहुँच गए हैं । असित मित्तल पाँच वर्ष पूर्व, वर्ष 2011-12 में डिस्ट्रक्ट गवर्नर होते थे । किंतु पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के कुछ ही दिनों के भीतर वह अपने बड़े भाई के साथ दिल्ली के तिहाड़ जेल में पहुँच गए । कहने को तो वह बिल्डर कहलाते थे, लेकिन धीरे-धीरे बात खुली और पता चला कि बिल्डर की आड़ में उनका मुख्य धंधा ठगी का था; और उन्होंने व्यक्तियों से लेकर बैंकों व वित्तीय संस्थाओं तक से ठगी व धोखाधड़ी की । कई रोटेरियंस भी उनकी ठगी का शिकार बने हैं । इस कारण से रोटेरियंस के बीच असित मित्तल के प्रति विरोध पैदा हुआ, जो फिर उनकी उपेक्षा में बदल गया । उनके 'राजनीतिक' समर्थन और या असर की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने गवर्नर-काल में उन्होंने संजय खन्ना व रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में रवि चौधरी का बहुत खुल कर समर्थन किया था और उन्हें जितवाने की हर संभव कोशिश की थी, उसके बावजूद लेकिन रवि चौधरी बुरी तरह चुनाव हार गए थे । जेल जाने के बाद तो फिर असित मित्तल का डिस्ट्रिक्ट में कोई नामलेवा भी नहीं रह गया । उन्हें क्लब से निकाल दिया गया और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका नाम तक छापना बंद कर दिया । लेकिन फिर भी दीपक गुप्ता और उनके समर्थक असित मित्तल के समर्थन को महत्त्वपूर्ण मान रहे हैं ।
चुनावी राजनीति के संदर्भ में लोग इसे - डूबते को तिनके का सहारा ढूँढ़ने के उदाहरण और सुबूत के रूप में देख रहे हैं ।
दरअसल असित मित्तल पिछले दिनों अपने पिता के निधन के बाद के क्रियाकर्म पूरे करने के लिए कुछेक दिन कुछ कुछ घंटों के लिए पैरोल पर जेल से बाहर निकले थे । उस दौरान अपनी अपनी संवेदनाएँ व्यक्त करने के लिए कुछेक रोटेरियंस उनसे मिले थे, जिनसे बात करते हुए असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता का समर्थन करने की बात कही । असित मित्तल का कहना रहा कि दीपक गुप्ता की जीत ग्रुप को मजबूत करने और बनाए रखने के लिए जरूरी है । दीपक गुप्ता और उनके समर्थकों की तो यह बातें देख/सुन कर बाँछे ही खिल गईं हैं । उन्हें विश्वास है कि डिस्ट्रिक्ट के लोग उनके दूसरे समर्थक नेताओं की बात भले ही न मानें/सुने, लेकिन जेल में बंद एक 'अपराधी' की बात जरूर मानेंगे/सुनेंगे । असित मित्तल के कैम्पेन पर दीपक गुप्ता ने जिस तरह का उत्साह दिखाया है, उससे हालाँकि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति सहानुभूति का भाव रखने वाले कई लोग चौंके भी हैं । दीपक गुप्ता के इस उत्साह को वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमजोरी के रूप में देख/पहचान रहे हैं । उनके बीच सवाल उठा है कि दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के कैम्पेन को क्या इतना कमजोर पा रहे हैं, कि उन्हें एक सजायाफ़्ता के समर्थन की जरूरत पड़ी - और उसका समर्थन मिलने पर वह खुश हुए हैं ।
यह ठीक है कि चुनावी मुकाबले में कोई भी उम्मीदवार हर किसी का समर्थन पाने का प्रयास करता ही है, और किसी का सक्रिय समर्थन मिलने/दिखने पर खुश होता ही है । किंतु कोई भी होशियार उम्मीदवार किसी बदनाम व्यक्ति का समर्थन खुल्लमखुल्ला लेने और मिलने पर खुश 'दिखने' से बचने की कोशिश भी करता है । दरअसल वह जानता/समझता है कि एक बदनाम व्यक्ति का खुल्ला संग-साथ फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुँचाता है । दीपक गुप्ता इतनी सावधानी नहीं रख सके, जिसका नतीजा यह देखने में आ रहा है कि असित मित्तल के समर्थन पर दीपक गुप्ता द्धारा व्यक्त की गई खुशी ने उनकी उम्मीदवारी की स्थिति को और ज्यादा संदेहास्पद बना दिया है । लोगों का सहज पूछना है कि जिस असित मित्तल के समर्थन को दीपक गुप्ता अपने लिए बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं, वह असित मित्तल जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे और जब उनकी ज्यादा पोल-पट्टी भी नहीं खुली थी, तब वह जब रवि चौधरी को चुनाव नहीं जितवा सके थे - तो फिर अब जब वह अपनी कारस्तानियों के चलते जेल की हवा खा रहे हैं, तब दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की भला क्या मदद कर सकेंगे ? असित मित्तल के समर्थन पर खुशी प्रकट करके दीपक गुप्ता ने वास्तव में अपनी उम्मीदवारी की कमजोरी को ही जाहिर किया है; और इस तरह अपना नुक्सान ही किया है ।
असित मित्तल के समर्थन के कारण एक और तथ्य पर लोगों का ध्यान गया है; लोगों के बीच चर्चाभरे सवाल हैं कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के जितने समर्थक नेता हैं, वह सब घपलेबाजियों में क्यों फँसे/घिरे हुए हैं ? असित मित्तल का मामला तो उनके जेल में होने के कारण जगजाहिर है ही; मुकेश अरनेजा भी अपनी कारस्तानियों के कारण अपने ही भाई-भतीजों के द्धारा अपनी कंपनी से निकाले जा चुके हैं । सतीश सिंघल पर नोएडा रोटरी ब्लड बैंक की कमाई हड़पने के गंभीर आरोप हैं । इन चर्चाओं के चलते, समर्थक नेताओं की कारस्तानियों के दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए बड़ी मुसीबत बनने का खतरा पैदा हो गया है । मजे की बात है कि इस खतरे को जेल से कुछेक घंटों के लिए पैरोल पर आए असित मित्तल के बेमतलब के समर्थन पर उत्साह दिखा कर दीपक गुप्ता ने खुद ही आमंत्रित किया है ।