Sunday, November 18, 2012

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में नवीन गुप्ता को बचाने के लिए उनके पापा ने एक फिर मोर्चा संभाल लिया है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता को इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में एक बार फिर खुल कर मैदान में आने के लिए मजबूर होना ही पड़ा है । अपने बेटे नवीन गुप्ता को चुनावी हार की तरफ बढ़ता देख कर एनडी गुप्ता को अभी तक पर्दे के पीछे से किये जा रहे अपने प्रयत्न नाकाफी लग रहे थे और इसीलिये अपने नजदीकियों की सलाह को अनदेखा करके उन्हें खुल कर मैदान में आने का फैसला करना ही पड़ा । उल्लेखनीय है कि एनडी गुप्ता अभी तक पर्दे के पीछे से ही नवीन गुप्ता के चुनाव का संचालन कर रहे थे - क्योंकि उन्हें खुद भी लग रहा था और उनके नजदीकियों की भी सलाह थी कि चुनावी झमेले में उनकी खुली सक्रियता उनकी साख और प्रतिष्ठा को - उनके ऑरा (आभामंडल) को धूमिल ही करेगी । एनडी गुप्ता के नजदीकियों ने भी उन्हें कहा/बताया था और उन्हें खुद भी भरोसा था कि उनकी खुली सक्रियता न होने के बावजूद नवीन अपनी सीट बचा लेंगे और अच्छे खासे वोट जुटा ही लेंगे ।
एनडी गुप्ता को हालाँकि अपने लोगों से जो फीडबैक मिल रहा था, वह एक अलग ही कहानी कह रहा था । उन्हें बताया जा रहा था कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में नवीन गुप्ता का लोगों के साथ जिस तरह का अनफ्रेंडली संबंध रहा है, अपने व्यवहार और अपने रवैये से नवीन गुप्ता ने जिस तरह से लोगों को हर्ट और निराश किया हुआ है - उसके चलते इस बार नवीन गुप्ता का चुनाव जीतना मुश्किल ही होगा; लेकिन एनडी को अपने संबधों का, लोगों के साथ अपने रिश्तों का भरोसा था । उन्हें भरोसा था कि नवीन गुप्ता ने अपने रवैये से लोगों को चाहें जितना भी निराश किया हुआ हो, लेकिन उनका बेटा होने के कारण नवीन की हरकतों को लोग माफ़ कर देंगे ।
एनडी गुप्ता ने इस भरोसे के बावजूद हालाँकि पर्दे के पीछे से नवीन के चुनाव की कमान संभाली हुई थी । उन्होंने गणित यह बैठाया था कि वह पर्दे के पीछे से सक्रिय रहेंगे और टेलीफोन पर लोगों से बातचीत करते रहेंगे तो नवीन के प्रति लोगों की नाराजगी को कम और ख़त्म करने का काम कर लेंगे । शुरू में उन्हें यह लगा भी कि उनकी यह योजना सफल हो रही है । कोई उनसे नवीन के रवैये की शिकायत करता तो वह उसे अपनेपन का अहसास कराते हुए मीठा-सा उलाहना देते कि नवीन की शिकायत अब तुम मुझसे करोगे, तुम उसके बड़े भाई हो, वह तुम्हारी बात नहीं सुनता तो उसके कान उमेठों ! सुनने वाला यह सुन कर लाज़बाब हो जाता । एनडी गुप्ता को लगा कि उनका यह फार्मूला काम कर रहा है और लोग उनकी मीठी बातों में आकर मूर्ख बन रहे हैं । लेकिन जल्दी ही एनडी गुप्ता को सुनने को मिलने लगा कि कान किसके उमेंठे, नवीन तो मिलता ही नहीं है, वह तो फोन भी नहीं उठाता ।
इस तरह के जबावों से एनडी गुप्ता ने भांप लिया कि नवीन ने अपनी हरकतों से और अपने रवैये से लोगों को ज्यादा ही नाराज किया हुआ है; और मामला उतना आसान है नहीं, जितना कि वह समझ रहे हैं । ऐसे में उन्होंने नवीन की उम्मीदवारी के समर्थन में खुल कर आने की जरूरत को पहचाना । हालाँकि उनके नजदीकियों ने भी उन्हें समझाया और उन्होंने खुद भी समझा कि खुल कर चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन कर वह हो सकता है कि नवीन के चुनाव को तो बचा लें, लेकिन अपनी साख और प्रतिष्ठा को वह गँवा देंगे । लोग क्या कहेंगे कि इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट रह चुका व्यक्ति इंस्टीट्यूट की और प्रोफेशन की फिक्र नहीं कर रहा है, अपने बेटे की चुनावी जीत को सुनिश्चित करने की फिक्र में सड़कों पर उतरा हुआ है ।
एनडी गुप्ता को अपने बेटे को चुनावी हार से बचाने के लिए खुद मैदान में उतरने का फैसला करने में मुश्किल तो हुई - लेकिन उन्हें यह फैसला करना ही पड़ा; क्योंकि उन्होंने आकलन यह किया कि साख और प्रतिष्ठा बचाने के चक्कर में वह यदि नवीन की मदद के लिए आगे नहीं आये और नवीन चुनाव हार गया तो उनकी ज्यादा किरकिरी होगी । उनके लिए 'एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई' वाली स्थिति थी । एनडी गुप्ता ने 'सीए गेट टुगेदर' के नाम से जिस आयोजन का निमंत्रण लोगों को भेजा है उसके डिटेल्स बताते हैं कि नवीन गुप्ता को चुनावी हार से बचाने के लिए एनडी गुप्ता ने एक तरफ यदि इंस्टीट्यूट से जुड़े बड़े नामों को अपने साथ मिलाया है, तो दूसरी तरफ ऐसे लोगों को भी अपने साथ खड़ा किया है जो कभी उनकी भ्रष्ट कारस्तानियीं का खुला विरोध किया करते थे । 'सीए गेट टुगेदर' का आयोजन दिखाता/बताता है कि अपने बेटे की चुनावी हार की आशंका से डरा हुआ एक बाप कैसे अपनी, अपने प्रोफेशन की और अपने इंस्टीट्यूट की साख व प्रतिष्ठा को खुले में चीथड़े - चीथड़े करने को मजबूर हो जाता है ।