Sunday, November 25, 2012

आरके गौड़ को अपनी जुझारू पहचान के भरोसे, युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का समर्थन पाने की कोशिशों में लगे दूसरे उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा स्पेस मिलता दिख रहा है

नई दिल्ली । आरके गौड़ की चुनावी सक्रियता ने युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोटों पर नजर लगाये उम्मीदवारों की उम्मीदों को तगड़ा झटका दिया है । उल्लेखनीय है कि युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - यानि पिछले चुनाव के बाद प्रोफेशन से जुड़े लोगों पर इस बार कई उम्मीदवारों की निगाह रही है । इसके दो कारण बने : एक तो यह कि इनकी संख्या अच्छी.खासी है; और दूसरा यह कि कई कारणों से यह तबका अपनी स्थिति से नाखुश है । इसलिए कई एक लोगों को लगा कि इनकी नाखुशी को भड़का कर इन्हें अपना वोट बनाया जा सकता है; और इनके वोटों की सवारी करके इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में पहुंचा जा सकता है । रीजनल काउंसिल से सेंट्रल काउंसिल में छलांग लगाने की तैयारी करने वाले अतुल कुमार गुप्ता और संजय कुमार अग्रवाल, सेंट्रल काउंसिल में जाने के लिए एक बार फिर प्रयास करने वाले एमके अग्रवाल, पिछली बार की हार को जीत में बदलने की कोशिश करने वाले विजय कुमार गुप्ता ने युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर खास ध्यान देना शुरू किया । प्रोफेशन में और प्रोफेशन में जुड़े लोगों के साथ जो कुछ भी बुरा हो रहा है, उसके लिए मौजूदा सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को जिम्मेदार ठहराने पर इन्होंने ज्यादा जोर और ध्यान दिया । इन्होंने खासा सघन और आक्रामक चुनाव अभियान चलाया - लेकिन जैसे.जैसे चुनाव अभियान में तेजी आई वैसे.वैसे यह साफ होने लगा कि इनके चुनाव अभियान को लोगों के बीच विश्वसनीयता और स्वीकार्यता नहीं मिल पा रही है । इनके लिए इससे भी ज्यादा झटके की बात यह रही कि युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच इनके मुकाबले आरके गौड़ की विश्वसनीयता और स्वीकार्यता ज्यादा बनी । मजे की बात यह रही कि यह विश्वसनीयता और स्वीकार्यता तब बनी जबकि आरके गौड़ ने इसके लिए कोई ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से प्रयत्न भी नहीं किया । ‘बिन मांगे मोती मिलें, और मांगे मिले न भीख’ वाला मुहावरा यहाँ चरितार्थ होता हुआ नजर आया । युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोटों को जुटाने के लिए जिन उम्मीदवारों ने योजना बनाई और योजना के अनुसार काम किया, उन्हें तो कुछ मिलता हुआ नजर नहीं आया; लेकिन जिन आरके गौड़ ने योजना बनाये बिना अपनी उपस्थिति को प्रकट किया उनके प्रति युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच समर्थन का भाव दिखा । इसका कारण यह रहा कि युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने उम्मीदवारों की बातों पर ही विश्वास नहीं किया, बल्कि यह जानने/देखने का भी प्रयास किया कि उम्मीदवार जो कह रहे हैं उनमें सच्चाई कितनी है । ऐसा करते हुए उन्होंने पाया कि जो उम्मीदवार बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं वह सिर्फ चुनावी मौसम में उन्हें दिखाने/सुनाने के लिए कर रहे हैं; जबकि आरके गौड़ उस समय भी प्रोफेशन में की मुश्किलों तथा इंस्टीट्यूट चला रहे लोगों की मनमानियों के खिलाफ लड़ रहे थे जब चुनाव का मौसम नहीं था । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले चुनाव में जमकर धांधली हुई थी, और इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को लज्जित करने वाला बूथ केप्चरिंग कांड हुआ था - लेकिन चुनाव के बाद, काउंसिल का गठन हो जाने के बाद विजय कुमार गुप्ता, एमके अग्रवाल, अतुल कुमार गुप्ता, संजय कुमार अग्रवाल कहाँ थे और क्या कर रहे थे ? विजय कुमार गुप्ता और एमके अग्रवाल तो घर जा कर बैठ गये थे; जबकि अतुल कुमार गुप्ता और संजय कुमार अग्रवाल रीजनल काउंसिल में सत्ता का सुख भोग रहे थे । इनमें से कोई भी इस बात की चिंता तक प्रकट नहीं कर रहा था कि इंस्टीट्यूट में और प्रोफेशन में कहाँ क्या गलत हो रहा है । उस समय लेकिन आरके गौड़ इंस्टीट्यूट में हो रही गड़बडि़यों को सामने लाने तथा उनके संदर्भ में कार्रवाई करने/करवाने के अभियान में लगे हुए थे । इसी कारण से, युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच आरके गौड़ की उम्मीदवारी के प्रति ज्यादा विश्वास और स्वीकार्य का भाव दिखा है ।
युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोटों को कब्जाने की तिकड़म लगाने वाले उम्मीदवारों ने एक गलती और की और वह यह कि मौजूदा काउंसिल सदस्यों में उन्होंने कमजोर से ‘दिखने’ वाले सदस्यों के खिलाफ ज्यादा हल्ला मचाया हुआ है और चुनावी नजरिये से जो सदस्य मजबूत दिख रहे हैं, उनके खिलाफ कुछ भी कहने से परहेज किया हुआ है । सेंट्रल काउंसिल में ‘घुसने’ की तिकड़म में लगे उम्मीदवारों ने पंकज त्यागी और विनोद जैन को घेरने पर ज्यादा जोर दिया हुआ है; जबकि नवीन गुप्ता, संजय वायस ऑफ सीए अग्रवाल, चरनजोत सिंह नंदा को छोड़ा हुआ है । उन्हें लगता है कि नवीन गुप्ता, संजय वायस ऑफ सीए अग्रवाल, चरनजोत सिंह नंदा तो अपनी सीट बचा ही लेंगे; लेकिन यदि वह शोर मचायेंगे और युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भड़कायेंगे तो पंकज त्यागी व विनोद जैन को लपेटे में ले लेंगे । युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने लेकिन इस ‘खेल’ को लगता है कि समझ लिया है; और वह सवाल उठाने लगे हैं कि इंस्टीट्यूट में यदि गड़बडि़याँ हो रही हैं, और सेंट्रल काउंसिल में बैठे लोग प्रोफेशन की तथा प्रोफेशन से जुड़े लोगों की कोई चिंता नहीं कर रहे हैं तो सेंट्रल काउंसिल के सभी सदस्य इसके लिए दोषी और जिम्मेदार क्यों नहीं हैं - केवल कुछ ही सदस्य जिम्मेदार क्यों बताये जा रहे हैं ? नवीन गुप्ता को, संजय वायस ऑफ सीए अग्रवाल को, चरनजोत सिंह नंदा को निशाने पर लेने से परहेज क्यों किया जा रहा है ? सिर्फ पंकज त्यागी और विनोद जैन को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है ? उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्यों में तुलनात्मक रूप से सबसे खराब परफोरमेंस नवीन गुप्ता की मानी/समझी जाती है । लोग शिकायत करते हैं कि काउंसिल में प्रोफेशन से और प्रोफेशन से जुड़े लोगों के हित में मुद्दे उठाना तो दूर, वह उनके फोन तक नहीं उठाते हैं । इसके बावजूद, उन्हें निशाना नहीं बनाया गया है । नवीन गुप्ता के प्रति आम लोगों की नाराजगी तो खुल कर सुनी जा रही है, लेकिन इंस्टीट्यूट की गड़बडि़यों की जोरशोर से बातें करने वाले उम्मीदवारों के मुँह से उनके बारे में कभी एक शब्द नहीं सुना गया । इसका कारण यही है कि सभी यह मानते हैं कि नवीन गुप्ता भले ही किसी काम के न हों, लेकिन अपने पिता के संपर्कों की बदौलत चुनाव तो वह जीत ही जायेंगे । इसलिए उनके बारे में बात करके समय क्यों खराब किया जाये ? इसी तरह के रवैये से, युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भड़का कर, उनके बीच अपने लिए समर्थन पैदा करने की कोशिशों में लगे उम्मीदवारों की पोल खुल रही है । इंस्टीट्यूट में हो रही गड़बडि़यों और उन गड़बडि़यों के लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों का जिक्र सभी का ध्यान खींचता है । लिहाजा, विजय कुमार गुप्ता, एमके अग्रवाल, अतुल कुमार गुप्ता आदि जब इस तरह की बातें करते हैं, तो बातों को सुन कर लोग मजा तो खूब लेते हैं - लेकिन इनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते ।
ऐसा नहीं है कि युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - या सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भी - इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की मौजूदा दशा से निराश और नाराज नहीं हैं; वह निराश और नाराज हैं और चाहते हैं कि उन्हें ऐसी लीडरशिप मिले जो इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की दशा को बेहतर बनाने के लिए सिर्फ बातें न बनाये - बल्कि सचमुच में कुछ करे । कम से कम निरंतरता में कुछ करता हुआ ‘दिखे’ तो । युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की यही चाहत आरके गौड़ को, दूसरे अति सक्रिय दिखने वाले उम्मीदवारों की तुलना में ज्यादा और बड़ा स्पेस देती है । आरके गौड़ को यह ज्यादा और बड़ा स्पेस इसलिए भी मिला है, क्योंकि एक जुझारू पहचान के भरोसे उनकी पैठ सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी है । आरके गौड़ चूंकि पिछले कई वर्षों से इंस्टीट्यूट की गतिविधियों से लगातार संबद्ध रहे हैं, इसलिए वह तरह.तरह से कामकाजी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ जुड़े रहे हैं और उनके काम आते रहे हैं । इस कारण से, सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनका न सिर्फ पहचान का बल्कि विश्वास का भी संबंध है । सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का एक बड़ा तबका मानता और चाहता है कि इंस्टीट्यूट में यदि गड़बडि़यों को रोकना है, इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को यदि मनमानी करने से रोकना है तो आरके गौड़ को और उनके जैसे लोगों को सेंट्रल काउंसिल में भेजना चाहिए । सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से मिलने वाला यह फीडबैक युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच आरके गौड़ की पहचान को तथा उनकी स्वीकार्यता को और गहरा ही करता है ।