Tuesday, November 27, 2012

नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में राधेश्याम बंसल के 'काम' को ही, उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है

नई दिल्ली । राधेश्याम बंसल की अति-सक्रियता ही रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में उनकी जैसे दुश्मन बन गई लगती है । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में उनकी जोरदार सक्रियता ने उन्हें जीत की तरफ तो बढ़ाया है, लेकिन उनके विरोधियों को भी आक्रामक होने के लिए उकसाया है । उन्हें सफलता की तरफ बढ़ता देख कर उनके कामकाज को लेकर उन्हें घेरने के प्रयास उनके विरोधियों ने तेज कर दिए हैं । राधे श्याम बंसल को एंट्री का काम करने वाला बताते हुए लोगों के बीच सवाल किया जा रहा है कि ऐसे लोग काउंसिल में आयेंगे तो इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन के लिए आखिर करेंगे क्या ?
राधेश्याम बंसल इस बार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं । पिछली बार भी उन्होंने रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ा था और एक बड़े स्टडी सर्किल का सदस्य होने के बावजूद वह चुनाव हार गए थे । पिछली बार की अपनी हार के लिए उन्होंने अपने ही स्टडी सर्किल के मुखिया सुधीर अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया था । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन रह चुके सुधीर अग्रवाल पिछली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार थे । राधेश्याम बंसल का आरोप रहा कि सुधीर अग्रवाल ने स्टडी सर्किल के जरिये होने वाली राजनीति का सारा और एकतरफा इस्तेमाल अपने लिए किया, और उन्हें उसका फायदा नहीं लेने दिया । सुधीर अग्रवाल अपना चुनाव भी नहीं जीत पाए और राधेश्याम बंसल को भी हार का सामना करना पड़ा । राधेश्याम बंसल भी मानते थे और दूसरे लोगों ने भी माना कि स्टडी सर्किल के जरिये होने वाली राजनीति का इस्तेमाल यदि राधेश्याम बंसल के लिए भी होता तो राधेश्याम बंसल तो अपनी सीट निकाल ही सकते थे ।
यह 'समझने' के बाद राधेश्याम बंसल ने पहला काम यह किया कि सुधीर अग्रवाल की मुखियागिरी में चलने वाले स्टडी सर्किल को छोड़ कर अपना अलग एक स्टडी सर्किल बनाया । इस बार का नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चुनाव उन्होंने अपने भरोसे लड़ने की तैयारी की और धुआँधार अभियान संयोजित किया । रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों में राधेश्याम बंसल का चुनाव अभियान सबसे ज्यादा तड़क-भड़क वाला रहा है और उन्होंने शुरू से ही पार्टियों पर खासा जोर दिया । जाहिर है कि उन्होंने अपने चुनाव अभियान में काफी पैसा खर्च किया है । एक उम्मीदवार के रूप में उन्हें इससे लाभ भी हुआ है । उन्हें जीतते हुए उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा है ।
राधेश्याम बंसल के इसी लाभ ने लेकिन उनके सामने मुश्किलें भी खड़ी कर दी हैं । दूसरे उम्मीदवारों ने लोगों के बीच कहना शुरू किया है कि राधेश्याम बंसल पैसे के बल पर चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं । उनके खिलाफ उनके काम को ही हथियार बनाया जा रहा है । कहा/बताया जा रहा है कि वह एंट्री का काम करते हैं और इस कारण उन्हें इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के सामने की चुनौतियों के बारे में कुछ पता ही नहीं है और उनके लिए काउंसिल में कुछ कर पाना संभव ही नहीं होगा । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मौजूदा दशा और दिशा का हवाला देते हुए तर्क दिया जा रहा है कि प्रोफेशन की चुनौतियों से अनजान लोग यदि काउंसिल में जाते हैं तो फिर वह काउंसिल का कबाड़ा ही करते हैं । इस तरफ की बातों ने राधेश्याम बंसल के सामने आकस्मिक रूप से मुश्किल तो खड़ी कर ही दी है ।