Saturday, November 17, 2012

मजे की बात है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी के चयन को लेकर नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले में किसी की भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, और प्रायः सभी उम्मीदवार खुले चुनाव को अपने लिए अनुकूल पा/बता रहे हैं

गाजियाबाद/नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद के लिए नामांकन प्रस्तुत होने के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद को लेकर होने वाली चुनावी लड़ाई अब निर्णायक मोड़ की तरफ बढ़ती हुई दिखने लगी है । इस वर्ष हो रही इस चुनावी लड़ाई का दिलचस्प पहलू यह है कि चुनावबाज नेता घर बैठने को मजबूर हुए हैं क्योंकि उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें ? डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेता इतने असहाय शायद कभी नहीं हुए होंगे, जितने इस वर्ष वह हुए नज़र आ रहे हैं । इसीलिये सारा दारोमदार उम्मीदवारों के सिर ही आ पड़ा है । उम्मीदवारों ने भी लगता है कि इस बात को समझ लिया है कि इस बार उन्हें अपने आप ही चुनावी लड़ाई लड़नी पड़ेगी । इस बात को सबसे पहले चूंकि जेके गौड़ ने समझा इसलिए उन्होंने अपने ऊपर किसी नेता की छाप नहीं लगने देने का प्रयास किया और लोगों से सीधे संपर्क स्थापित किया । डॉक्टर सुब्रमणियन ने डॉक्टर सुशील खुराना पर और आलोक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल तथा मुकेश अरनेजा पर भरोसा किया, लेकिन जब यह देखा/पाया कि यह नेता लोग तो कोई मदद नहीं कर रहे हैं, तब यह अपने-अपने तरीके से जुटे । सुधीर मंगला के साथ ज्यादा बुरा हुआ । उन्होंने लोगों के बीच दावा तो यह किया था कि उन्हें कई पूर्व गवर्नर्स का समर्थन मिलेगा भी और 'दिखेगा' भी । किन्तु जब दिखने/दिखाने का समय आया तो पता चला कि उनके समर्थन में तो कोई भी सक्रिय नहीं है, लेकिन विनोद बंसल उनकी खिलाफत करने में जरूर दिलचस्पी ले रहे हैं ।
चुनावी राजनीति तथ्यों से नहीं होती, वह परसेप्शन से - धारणा से होती है; धारणा के मामले में भी नकारात्मक धारणा का ज्यादा प्रभाव पड़ता है । इसीलिये विनोद बंसल ने जब अलग-अलग तरह के इशारों में सुधीर मंगला के प्रति अपनी नाराजगी और अपने विरोध का संकेत दिया तो सुधीर मंगला के लिए अपने समर्थन-आधार को बचाए रखना मुश्किल हो गया । आलोक गुप्ता उनके समर्थन-आधार में लगातार सेंध लगाते हुए उन्हें जो झटके पर झटके दे रहे थे, विनोद बंसल के संकेतों ने उन झटकों की रेंज को जैसे कई गुना बढ़ा दिया । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा से आलोक गुप्ता को जो धोखा मिला, उसकी भरपाई आलोक गुप्ता ने सुधीर मंगला के समर्थन-आधार में सेंध लगा कर की । डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए यह समझ पाना मुश्किल हुआ कि डॉक्टर सुशील खुराना से उन्हें जब पर्याप्त मदद नहीं मिली, तो वह क्या करें ? डॉक्टर सुब्रमणियन एक उम्मीदवार के रूप में संपर्क अभियान तो ज्यादा नहीं चला पाए हैं, लेकिन रोटरी को एक इलीट या क्लासी किस्म के संगठन के रूप में देखने वाले लोगों के बीच उनके लिए समर्थन को देखा/पहचाना जा सकता है । इसके बावजूद डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थक चाहते हैं कि नोमिनेटिंग कमेटी अधिकृत उम्मीदवार का चयन न करे - वह डॉक्टर सुब्रमणियन को भी अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने जाते हुए नहीं देखना चाहते हैं । डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थक जान और मान रहे हैं कि वह यदि अधिकृत उम्मीदवार चुन लिए गए तो उन्हें एक प्रतिद्धन्द्धी उम्मीदवार से मुकाबला करना होगा, जो उनके लिए मुश्किल होगा । डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए, उनके समर्थकों के अनुसार आसान स्थिति तभी होगी जब छह उम्मीदवार मैदान में होंगे - और यह तब होगा जब नोमीनेटिंग कमेटी कोई फैसला न करे ।
सुधीर मंगला के नजदीकी भी यही चाहते हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी कोई फैसला न करे । किन्तु ऐसा चाहने का उनका कारण थोड़ा अलग है । वह जान/समझ रहे हैं कि उन्होंने लोगों के बीच काम चाहें कितना ही क्यों न किया हो, किन्तु विनोद बंसल के रवैये के कारण न तो उनका नोमीनेट होना संभव होगा और न ही उन्हें चेलेंजिंग उम्मीदवार के रूप में क्लब्स का समर्थन मिल पायेगा । किसी तीन-तिकड़म से वह यदि नोमीनेट हो भी गए तो - उनके समर्थकों को डर है कि विनोद बंसल के विरोध के कारण उनका विरोध ही ज्यादा होगा । इसलिए अच्छा है कि खुला चुनाव हो और मैदान में छह उम्मीदवार हों - तब विनोद बंसल भी कुछ नहीं कर पाएंगे । आलोक गुप्ता के समर्थकों की चाहत है कि या तो आलोक गुप्ता नोमीनेट हों, और या फिर कोई भी नोमीनेट न हो । आलोक गुप्ता के समर्थकों का मानना और समझना है कि आलोक गुप्ता यदि नोमीनेट होते हैं तो फिर चाहें कोई भी चेलैंज करें, वह फायदे में ही रहेंगे । खुला चुनाव हुआ तो भी आलोक गुप्ता को लाभ में रहने का भरोसा है । कोई और नोमीनेट होता है, तब लेकिन आलोक गुप्ता को एक मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ सकती है ।
जेके गौड़ के नजदीकी लेकिन हर स्थिति का सामना करने की तैयारी किये हुए हैं । जेके गौड़ के नजदीकियों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ ने लोगों के बीच जो सघन और व्यापक अभियान चलाया है उसका प्रतिफल उन्हें नोमीनेट होकर मिलेगा ही; और यदि किसी कारण से कोई गड़बड़ हुई और वह नोमीनेट नहीं भी हुए तो वह चुनाव के लिए भी तैयार हैं । जेके गौड़ के नजदीकियों का मानना है कि उन्हें यह अच्छी तरह पता है कि यदि जेके गौड़ नोमीनेट भी होते हैं, तो भी उन्हें चेलैंज किया ही जायेगा और चुनाव का सामना उन्हें करना ही पड़ेगा । नजदीकियों के अनुसार जेके गौड़ चुनाव के लिए तैयार हैं और वह इस बात से जरा भी चिंतित नहीं हैं कि उनका चुनाव किसी एक से होता है या पाँच लोगों से । उम्मीदवारों की सूची में ललित खन्ना और सरोज जोशी का भी नाम है - लेकिन उम्मीदवार के रूप में इनके नाम की लोगों के बीच ज्यादा चर्चा है नहीं । इसके बावजूद, कुछेक लोगों को लगता है कि नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले में हो सकता है कि इन दोनों की उम्मीदवारी किसी का काम बनाने या बिगाड़ने का 'काम' करें ।