Saturday, November 24, 2012

अरूण आनंदगिरी के कारण शिवाजी जावरे को जो फजीहत झेलनी पड़ी है, उसका फायदा सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में सुधीर पंडित को मिलता नजर आ रहा है

पुणे। सुधीर पंडित की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी को पुणे की प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म्स का जिस तरह समर्थन मिलता दिख रहा है, उससे शिवाजी जावरे के लिए अपनी सीट बचाने का संकट पैदा हो गया नजर आ रहा है । शिवाजी जावरे के लिए संकट इसलिए और गंभीर है क्योंकि सुधीर पंडित को जिन फर्म्स का समर्थन मिल रहा है उन्होंने पिछली बार शिवाजी जावरे का समर्थन किया था । शिवाजी जावरे के ही समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि शिवाजी जावरे को अपनी सीट बचाने के लिए नये समर्थन आधार तलाशने होंगे तथा और ज्यादा मेहनत करना होगी । उल्लेखनीय है कि शिवाजी जावरे का सेंट्रल काउंसिल का कार्यकाल खासा विवादपूर्ण रहा है, जिस कारण लोगों के बीच उनकी साख काफी घटी है । शिवाजी जावरे के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि लोगों के बीच उनकी सिर्फ साख ही नहीं घटी है, बल्कि उनके कई समर्थक व शुभचिंतक तक उनके खिलाफ हो गये हैं । पिछली बार सेंट्रल काउंसिल उम्मीदवार के रूप में उन्हें वोट देते हुए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को उम्मीद थी कि वह उनके लिए ऐसा कुछ करेंगे जिससे कि उनके लिए काम के और अवसर पैदा हों तथा प्रोफेशन में उन्हें भी आगे बढ़ने का मौका मिले । शिवाजी जावरे लेकिन ऐसा कुछ कर सकने में असफल रहे । उनकी इस असफलता ने उन युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बहुत निराश किया, जो उनसे खास उम्मीद लगाये बैठे थे । शिवाजी जावरे के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को निराश करने के साथ साथ लोगों के साथ व्यावहारिक संबंध बनाये रखने तक में वह पिछड़ गये । हालत यह हुई कि लोगों के बीच, अपने प्रोफेशन के लोगों के बीच उनके संबंधों का मैनेजमेंट पूरी तरह बिगड़ गये ।
शिवाजी जावरे को इस बिगड़े मैनेजमेंट के कारण ही पुणे में आयोजित वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की डायमंड जुबली कांफ्रेंस में उस समय काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब कांफ्रेंस का उद्घाटन करते हुए रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन ने उनकी तरफ इशारा करते हुए पुणे के अत्यंत सक्रिय चार्टर्ड एकाउंटेंट अरूण आनंदगिरी के साथ की गई बदतमीजी के लिए सार्वजनिक रूप से भर्त्सना की । शिवाजी जावरे पर आरोप रहा कि उन्होंने अरूण आनंदगिरी को शारीरिक चोट पहुंचवाने का प्रयास किया । अरूण आनंदगिरी ने इस आशय का एक शिकायत पत्र इंस्टीट्यूट को भेजा और शिवाजी जावरे के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की । शिवाजी जावरे की तरफ से अरूण आनंदगिरी पर उक्त शिकायत पत्र को वापस लेने के लिए तरह.तरह से दबाव डाला जा रहा था । शिवाजी जावरे की उपस्थिति में अरूण आनंदगिरी पर हुए हमले को इसी दबाव के तहत देखा/पहचाना जा रहा था । शिवाजी जावरे ने इस संबंध में पूछे जाने पर पत्रकारों के बीच यह तो स्वीकार किया कि उनके खिलाफ की गई शिकायत को लेकर उनके कुछेक समर्थकों ने नाराजगी व्यक्त की थी; लेकिन उन्होंने कहा कि उनकी नाराजगी का निशाना अरूण आनंदगिरी नहीं थे । रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन ने अरूण आनंदगिरी पर हुए हमले की भर्त्सना करते हुए पत्रकारों को बताया था कि अरूण आनंदगिरी की शिकायत को लेकर उन्होंने इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष से बात की है और अध्यक्ष ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह तथ्यों को देखेंगे और जल्दी ही उचित कार्रवाई करेंगे । कार्रवाई क्या होनी थी - यह तो सभी को पता था । शिवाजी जावरे इस बात पर तो राहत महसूस कर सकते हैं कि अरूण आनंदगिरी की शिकायत पर इंस्टीट्यूट में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन अरूण आनंदगिरी ने जो कुछ किया - उसके चलते शिवाजी जावरे की फजीहत बहुत हुई । फजीहत का कारण यह रहा कि तकनीकी आधार पर तो शिवाजी जावरे के खिलाफ मामला नहीं बना; लेकिन शिवाजी जावरे के खिलाफ जो आरोप रहा उसका एक नैतिक पक्ष है, जहां शिवाजी जावरे फँसे दिखते हैं ।
अरूण आनंदगिरी का आरोप था कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य होने के कारण शिवाजी जावरे की कोचिंग संस्था जावरे’ज प्रोफेशनल एकेडमी प्राइवेट लिमिटेड को इंस्टीट्यूट की पुणे ब्रांच से ट्रेनिंग कांट्रेक्ट नहीं मिलना चाहिए था । यह नैतिक आदर्शों के खिलाफ था और यह दर्शाता है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में शिवाजी जावरे अपने पद का दुरूपयोग कर रहे हैं । शिवाजी जावरे का लेकिन कहना रहा कि उक्त कांट्रेक्ट उन्हें जब मिला था, तब वह इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य नहीं थे । शिवाजी जावरे का कहना बिल्कुल सही है - लेकिन पेंच यह है कि शिवाजी जावरे जब सेंट्रल काउंसिल के सदस्य बन गये, तब उन्होंने उक्त कांट्रेक्ट को छोड़ा क्यों नहीं या पुणे ब्रांच ने उनका कांट्रेक्ट रद्द क्यों नहीं किया ? वह रद्द तब हुआ, जब अरूण आनंदगिरी ने इंस्टीट्यूट में इसकी शिकायत की । इंस्टीट्यूट ने अरूण आनंदगिरी की शिकायत मिलने पर शिवाजी जावरे का कांट्रेक्ट तो रद्द कर दिया, लेकिन शिवाजी जावरे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की । इस संबंध में इंस्टीट्यूट ने बड़ा मजेदार जबाव दिया । इंस्टीट्यूट के सचिव ने बताया कि इस तरह के मामलों को लेकर चूंकि स्पष्ट नियम नहीं हैं, इसलिए इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है । मजे की बात यही है कि इंस्टीट्यूट जब यह मान रहा है कि कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है, तो फिर उसने उक्त कांट्रेक्ट रद्द क्यों कर दिया ? ‘कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती’ का तर्क देने वाले इंस्टीट्यूट ने लेकिन कार्रवाई तो की - आरोप यह है कि उसने अधूरी कार्रवाई की । जाहिर तौर पर इंस्टीट्यूट ने यह तो माना कि ‘अपराध’ हुआ है, लेकिन उसने इस सवाल पर धूल डाल दी कि अपराध किया किसने है ? इंस्टीट्यूट ने शिवाजी जावरे का कांट्रेक्ट रद्द करके यह तो मान ही लिया कि शिवाजी जावरे के पास उक्त कांट्रेक्ट का होना गलत था - लेकिन वह इस गलती के लिए जिम्मेदारी तय नहीं करना चाहता । अरूण आनंदगिरी का कहना यही था कि इंस्टीट्यूट को अधूरा फैसला नहीं करना चाहिए; उसने जब मान लिया है कि शिवाजी जावरे के पास जो कांट्रेक्ट था, वह नहीं होना चाहिए था - इसीलिए उसने शिवाजी जावरे को मिले कांट्रेक्ट को रद्द किया/करवाया; तो फिर इस गलती के लिए वह जिम्मेदारी तय करने से बचने की कोशिश क्यों कर रहा है ? अरूण आनंदगिरी के इस सवाल ने शिवाजी जावरे को इंस्टीट्यूट से क्लीन चिट मिलने के बावजूद आरोपों के घेरे में चूंकि फंसाये रखा, इसलिए शिवाजी जावरे का परेशान होना और भड़कना स्वाभाविक ही था ।
अरूण आनंदगिरी को चुप कराने के लिए शिवाजी जावरे को तब गुंडागर्दी का सहारा लेने का उपाये ही सूझा । उनकी मौजूदगी में कुछेक लोगों ने अरूण आनंदगिरी को धमकाने और शिवाजी जावरे के खिलाफ की गई शिकायत को वापस लेने के लिए दबाव बनाने का काम किया और अरूण आनंदगिरी को शारीरिक चोट पहुंचाने की कोशिश की । इस घटना से शिवाजी जावरे के लिए बात और बिगड़ गई । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के उनके जैसे सदस्य के लिए यह वास्तव में शर्मिंदगी की बात रही कि उनके अपने शहर पुणे में आयोजित हो रही वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की डायमंड जुबली कांफ्रेंस का उद्घाटन करते हुए रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन ने उनकी तरफ इशारा करते हुए अरूण आनंदगिरी के साथ की गई बदतमीजी के लिए सार्वजनिक रूप से भर्त्सना की । इस प्रसंग से जो एक बात साबित हुई वह यह कि शिवाजी जावरे को प्रतिकूल स्थितियों से निपटना नहीं आता है, और प्रतिकूल स्थितियों से निपटने की कोशिश में वह अपनी फजीहत और करा लेते हैं । यहाँ यह रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि पिछले चुनाव में अरूण आनंदगिरी ने भी सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, लेकिन चुनावी जीत उनके मुकाबले शिवाजी जावरे को मिली । शिवाजी जावरे लेकिन अपनी जीत का बड़प्पन नहीं बनाये रख सके । इसी का नतीजा यह हुआ है कि अरूण आनंदगिरी से चुनावी मुकाबला जीत जाने वाले शिवाजी जावरे उन्हीं अरूण आनंदगिरी से सामाजिक पहचान और छवि की लड़ाई में ‘पिट’ गये । अरूण आनंदगिरी ने उन्हें पुणे से लेकर दिल्ली तक ऐसा घेरा कि वह उस घेरे से निकलने की कोशिश में - अपने ऐटीट्यूड के चलते - बल्कि फँसते और चले गये । शिवाजी जावरे ने अपने इसी ऐटीट्यूट के कारण अपने कई साथियों को अपने खिलाफ कर लिया है ।
शिवाजी जावरे के लिए समस्या की बात यह हुई है कि उनके खिलाफ हुए उनके साथी सुधीर पंडित के साथ खड़े नजर आ रहे हैं । अरूण आनंदगिरी के कारण शिवाजी जावरे को जो फजीहत झेलनी पड़ी है, उसका फायदा तो सुधीर पंडित को मिलने की उम्मीद बनी ही है; शिवाजी जावरे ने अपने ऐटीट्यूड के कारण अपने जो नये दुश्मन बना लिए हैं उनके सुधीर पंडित के साथ जा खड़े होने के कारण शिवाजी जावरे की मुश्किलें और बढ़ गई हैं । को-ऑपरेटिव क्षेत्र में अपनी संलग्नता के चलते सुधीर पंडित की पुणे में और आसपास के शहरों में काफी सक्रियता रही है । इस क्षेत्र में अग्रणी जनता सहकारी बैंक के डायरेक्टर के रूप में सुधीर पंडित की भूमिका की इस नाते काफी प्रशंसा रही है कि कभी संकट से जूझ रहे इस बैंक को न सिर्फ संकट से उबारने में बल्कि उसे इस क्षेत्र के प्रमुख सहकारी बैंक के रूप में स्थापित करने में उन्होंने न सिर्फ महत्वपूर्ण बल्कि निर्णायक भूमिका निभाई है । जनता सहकारी बैंक के संदर्भ में इस भूमिका के कारण सुधीर पंडित की लोगों के बीच खासी साख है, जो अब इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में उनके काम आ रही है । सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में सुधीर पंडित को अपनी साख का फायदा तो मिलता दिख ही रहा है, साथ ही शिवाजी जावरे के प्रति लोगों के बीच बढ़ी नाराजगी व निराशा के कारण भी उन्हें लोगों के बीच समर्थन मिलता नजर आ रहा है । सुधीर पंडित के लिए चुनौती बस सिर्फ यही है कि वह इस समर्थन को वोट में कैसे बदलें ?