मुंबई। तरूण घिया ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल
के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को जीत में बदलने के लिए कंपनी
प्रतिनिधियों के खिलाफ जो अभियान छेड़ा/छिड़वाया हुआ है, उसने निहार
जम्बुसारिया की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती पैदा कर दी है। उल्लेखनीय
है कि तरूण घिया और उनके समर्थक अलग.अलग तरीकों से लोगों को आगाह कर रहे
हैं कि सेंट्रल काउंसिल में उन्हें ऐसे उम्मीदवारों का समर्थन नहीं करना
चाहिए जो किन्हीं कंपनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका तर्क है कि
कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवार सेंट्रल काउंसिल में पहुंच
जाते हैं तो वहाँ वह इंस्टीट्यूट के और या प्रोफेशन के हितों का ध्यान नहीं
रखते हैं, बल्कि अपनी कंपनी के हितों के अनुसार काम करते हैं। तरूण घिया
के इस अभियान के निशाने पर निहार जम्बुसारिया को देखा/पहचाना जा रहा है।
तरूण घिया और निहार जम्बुसारिया के बीच कुछ पुरानी खुन्नस की लोगों के बीच
पहले से भी चर्चा है। रीजनल काउंसिल में निहार जम्बुसारिया तो चेयरपरसन
बनने में कामयाब हो गये थे, लेकिन अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद तरूण घिया
वहां चेयरपरसन नहीं बन सके - इस तथ्य ने इन दोनों के बीच की कड़बाहटभरी
दूरी को और बढ़ाने का ही काम किया। यह तथ्य दोनों के बीच कड़बाहट का कारण
इसलिए बना क्योंकि दोनों का समर्थन आधार एक ही है। सेंट्रल काउंसिल के
पिछले चुनाव में बहुत ही मामूली अंतर से आगे पीछे रहते हुए दोनों ही चुने
जाने से रह गये थे; और अपनी अपनी हार के लिए दोनों ने एक दूसरे को ही
जिम्मेदार ठहराया था। इस बार भी, दोनों के ही सिर पर यह डर सवार है कि
दूसरा उसके समर्थक तो नहीं तोड़ रहा है क्या ?
पिछले चुनाव के बाद, निहार जम्बुसारिया ने रिलायंस समूह ज्वाइन किया है - जिसके चलते इस बार उनकी उम्मीदवारी को पिछली बार की तुलना में ज्यादा मजबूत माना/समझा जा रहा है। ऐसे में, तरूण घिया के लिए डर यह पैदा हुआ है कि रिलायंस समूह के वोटों के कारण निहार जम्बुसारिया को जो फायदा होगा, उसके मनोवैज्ञानिक असर के चलते तरूण घिया के वोट भी निहार जम्बुसारिया की तरफ आकर्षित होंगे और तब तरूण घिया के सामने अपने वोटों को अपने साथ बनाये रखना भी मुश्किल होगा। समर्थन आधार एक होने के कारण तरूण घिया को यह डर सता रहा है कि रीजनल काउंसिल में उन्हें जिस तरह निहार जम्बुसारिया से पिछड़ना पड़ा - उसी तरह कहीं उन्हें सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में भी निहार जम्बुसारिया से मात न खानी पड़े। तरूण घिया पिछले चुनाव में जीत नहीं पाये थे, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष रहा कि उन्हें निहार जम्बुसारिया से ज्यादा वोट मिले - भले ही यह ज्यादा कोई ‘बहुत ज्यादा’ नहीं थे। पिछली बार का यह ‘संतोष’ कहीं इस बार उनसे न छिन जाये - इसलिए तरूण घिया ने कंपनी का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवार की आड़ में निहार जम्बुसारिया के खिलाफ खुला अभियान छेड़ दिया है। निहार जम्बुसारिया इस अभियान के चलते भारी दबाव में हैं। रिलायंस कनेक्शन के भरोसे उन्हें अपनी जो लड़ाई आसान दिख रही थी, तरूण घिया के अभियान के चलते वह मुश्किल में फंस गई दिख रही है। रिलायंस कनेक्शन के कारण निहार जम्बुसारिया को फायदा होने के दावे को लेकर कई लोगों को हालांकि शक भी था। ऐसे लोगों का कहना रहा है कि जिस रिलायंस कनेक्शन के कारण भावना दोषी को इंस्टीट्यूट के चुनाव से बाहर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा है, वही रिलायंस कनेक्शन निहार जम्बुसारिया के लिए फायदेमंद कैसे हो सकता है ?
उल्लेखनीय है कि भावना दोषी को अपने पति गौतम दोषी के रिलायंस की ‘सेवा’ करने के चक्कर में जेल जाने के कारण मिली बदनामी के चलते ही सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति से बाहर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि गौतम दोषी खुद भी सेंट्रल काउंसिल में दो टर्म सदस्य रह चुके हैं। इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में भावना दोषी ने सफलता की जो सीढि़यां तेजी से चढ़ीं हैं, वह हालांकि उनके व्यक्तित्व की अपनी काबिलियत और उनकी अपनी क्षमताओं भरी सक्रियता का ही नतीजा है, लेकिन गौतम दोषी की पहले से ही बनी प्रतिष्ठापूर्ण पहचान तथा उनके ऑरा का भी फायदा भावना दोषी को मिला ही है। भावना दोषी को गौतम दोषी की प्रतिष्ठापूर्ण पहचान तथा उनके ऑरा का यदि फायदा मिला, तो गौतम दोषी के जेल जाने से मिली बदनामी का नुकसान भी उठाना पड़ा। भावना दोषी के साथ जो हुआ, वह तो गौतम दोषी की कारस्तानी के चलते हुआ; लेकिन गौतम दोषी के साथ जो हुआ, वह इस बात का सुबूत है कि ‘व्यवस्था’ कैसे किसी अच्छे भले व्यक्ति को इस्तेमाल करती है। गौतम दोषी एक निहायत भले और सरल व्यक्ति के रूप में लोगों के बीच पहचाने जाते थे। गौतम दोषी से एक बार मिल लेने वाला व्यक्ति भी उनकी सरलता और सज्जनता का कायल हो जाता था; उनकी विद्धता से तो वह लोग भी परिचित हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हैं। चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रोफेशन से संबद्ध शायद ही कोई ऐसा विषय हो, जिस पर गौतम दोषी की एक्सपर्टीज न हो। कंपनियों के विलय और अधिग्रहण जैसे मामलों में तो गौतम दोषी की जो एक्सपर्टीज रही है, उसके चलते वह देश के नामी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में गिने और पहचाने जाने लगे थे। गौतम दोषी को जानने वाले लोग जानते हैं कि गौतम दोषी ने अपनी काबिलियत से नाम और दाम दोनों कमाये हैं, और इतने कमाये हैं कि उसके बाद उनके मन में कोई लालच या कोई स्वार्थ बचा नहीं हो सकता। प्रोफेशन में गौतम दोषी की जो धाक और पहचान थी, उनकी जो संलग्नता थी, प्रोफेशन के प्रति उनका जो कमिटमेंट ‘दिखता’ था, उसे जानने/पहचानने वाले लोगों को हैरानी थी कि रिलायंस से उन्हें आखिर ऐसा क्या मिला कि वह प्रोफेशन से ही ‘किनारा’ कर बैठे।
उस समय तो किसी को भी यह पहेली समझ नहीं आई थी - जिन्होंने समझने का दावा भी किया था, उनका भी सिर्फ यही कहना था कि गौतम दोषी पैसा और पोजीशन के चक्कर में ही अनिल अंबानी ग्रुप में गये थे; लेकिन जो लोग उन्हें जानते थे, वह इस बात पर इसलिए विश्वास नहीं करते थे क्योंकि उन्हें पता था कि पैसा और पोजीशन का संकट तो गौतम दोषी के साथ था ही नहीं - संकट इसलिए भी नहीं था क्योंकि गौतम दोषी असंतोषी, लालची और स्वार्थी किस्म के व्यक्ति के रूप में ‘दिखते’ ही नहीं थे। जो व्यक्ति असंतोषी नहीं हैं, लालची नहीं है, स्वार्थी नहीं है, अपने प्रोफेशन के प्रति पूरी तरह समर्पित है, प्रोफेशन को दशा और दिशा देने वाली संस्था (इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स) और संस्था की कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने वाली टीम (सेंट्रल काउंसिल) के साथ गहरे से जुड़ा है - वह एक दिन अचानक प्रोफेशन को छोड़ कर एक ऐसे कार्पोरेट समूह का हिस्सा बन जाता है जिसकी छवि बहुत पाक.साफ नहीं है: अनिल अंबानी ग्रुप को ज्वाइन करने के गौतम दोषी के फैसले पर - उन्हें जानने वालों के लिए हैरान होने के पूरे कारण मौजूद थे। हैरान होने का कारण यह भी था कि अनिल अंबानी ग्रुप ने गौतम दोषी को आखिर क्या ‘देख’ कर अपने यहां एक बड़ा ओहदा दिया। गौतम दोषी को जानने वाले लोगों को यही लगता था कि अनिल अंबानी ग्रुप में ओहदे पर बैठे लोगों से जिस तरह की ‘सेवाओं’ की उम्मीद की जायेगी, उस तरह की ‘सेवा’ तो गौतम दोषी नहीं दे पायेंगे। उन्हीं जानने वाले लोगों में से बहुतों को अब यह लग रहा है कि वह गौतम दोषी को वास्तव में कितना कम जानते थे, और अनिल अंबानी ने गौतम दोषी को कितना सही पहचाना था।
अनिल अंबानी ग्रुप में गौतम दोषी ‘जो’ करने के लिए गए, ‘जो’ करने के लिए अनिल अंबानी ने उन्हें चुना - और ‘जिसे’ करने के चक्कर में वह जेल के सींखचों के पीछे जा पहुंचे - उसने उनकी साख व प्रतिष्ठा को तो धूल में मिला ही दिया; उनकी पत्नी भावना दोषी की सेंट्रल काउंसिल की राजनीति को भी ग्रहण लगा दिया। भावना दोषी इंस्टीट्यूट की अध्यक्ष पद की प्रबल दावेदार के रूप में देखी जाने लगीं थीं और अगले टर्म में उनके अध्यक्ष चुने जाने की उम्मीदें की जा रही थीं। रिलायंस कनेक्शन ने लेकिन सब चैपट कर दिया। इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का यह एक ट्रेजिडीभरा पक्ष ही कहा जायेगा कि जिस रिलायंस कनेक्शन ने भावना दोषी की चुनावी राजनीति का बेड़ा गर्क किया, उसी रिलायंस कनेक्शन के भरोसे निहार जम्बुसारिया ने सेंट्रल काउंसिल में अपने प्रवेश करने की उम्मीद पैदा की। निहार जम्बुसारिया जिस रिलायंस कनेक्शन के भरोसे सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश पा लेने की उम्मीद लगाये हुए हैं, उसी रिलायंस कनेक्शन को तरूण घिया ने निहार जम्बुसारिया के खिलाफ अपना हथियार बना लिया है। गौतम दोषी और भावना दोषी के साथ जो हुआ, उसने तरूण घिया के हथियार को धारदार बना दिया है। रिलायंस कनेक्शन के जाल में निहार जम्बूसारिया को घेरने और फँसाने की तरूण घिया ने जो रणनीति बनाई है, उसने वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी लड़ाई को खासा दिलचस्प बना दिया है ।
पिछले चुनाव के बाद, निहार जम्बुसारिया ने रिलायंस समूह ज्वाइन किया है - जिसके चलते इस बार उनकी उम्मीदवारी को पिछली बार की तुलना में ज्यादा मजबूत माना/समझा जा रहा है। ऐसे में, तरूण घिया के लिए डर यह पैदा हुआ है कि रिलायंस समूह के वोटों के कारण निहार जम्बुसारिया को जो फायदा होगा, उसके मनोवैज्ञानिक असर के चलते तरूण घिया के वोट भी निहार जम्बुसारिया की तरफ आकर्षित होंगे और तब तरूण घिया के सामने अपने वोटों को अपने साथ बनाये रखना भी मुश्किल होगा। समर्थन आधार एक होने के कारण तरूण घिया को यह डर सता रहा है कि रीजनल काउंसिल में उन्हें जिस तरह निहार जम्बुसारिया से पिछड़ना पड़ा - उसी तरह कहीं उन्हें सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में भी निहार जम्बुसारिया से मात न खानी पड़े। तरूण घिया पिछले चुनाव में जीत नहीं पाये थे, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष रहा कि उन्हें निहार जम्बुसारिया से ज्यादा वोट मिले - भले ही यह ज्यादा कोई ‘बहुत ज्यादा’ नहीं थे। पिछली बार का यह ‘संतोष’ कहीं इस बार उनसे न छिन जाये - इसलिए तरूण घिया ने कंपनी का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवार की आड़ में निहार जम्बुसारिया के खिलाफ खुला अभियान छेड़ दिया है। निहार जम्बुसारिया इस अभियान के चलते भारी दबाव में हैं। रिलायंस कनेक्शन के भरोसे उन्हें अपनी जो लड़ाई आसान दिख रही थी, तरूण घिया के अभियान के चलते वह मुश्किल में फंस गई दिख रही है। रिलायंस कनेक्शन के कारण निहार जम्बुसारिया को फायदा होने के दावे को लेकर कई लोगों को हालांकि शक भी था। ऐसे लोगों का कहना रहा है कि जिस रिलायंस कनेक्शन के कारण भावना दोषी को इंस्टीट्यूट के चुनाव से बाहर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा है, वही रिलायंस कनेक्शन निहार जम्बुसारिया के लिए फायदेमंद कैसे हो सकता है ?
उल्लेखनीय है कि भावना दोषी को अपने पति गौतम दोषी के रिलायंस की ‘सेवा’ करने के चक्कर में जेल जाने के कारण मिली बदनामी के चलते ही सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति से बाहर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि गौतम दोषी खुद भी सेंट्रल काउंसिल में दो टर्म सदस्य रह चुके हैं। इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में भावना दोषी ने सफलता की जो सीढि़यां तेजी से चढ़ीं हैं, वह हालांकि उनके व्यक्तित्व की अपनी काबिलियत और उनकी अपनी क्षमताओं भरी सक्रियता का ही नतीजा है, लेकिन गौतम दोषी की पहले से ही बनी प्रतिष्ठापूर्ण पहचान तथा उनके ऑरा का भी फायदा भावना दोषी को मिला ही है। भावना दोषी को गौतम दोषी की प्रतिष्ठापूर्ण पहचान तथा उनके ऑरा का यदि फायदा मिला, तो गौतम दोषी के जेल जाने से मिली बदनामी का नुकसान भी उठाना पड़ा। भावना दोषी के साथ जो हुआ, वह तो गौतम दोषी की कारस्तानी के चलते हुआ; लेकिन गौतम दोषी के साथ जो हुआ, वह इस बात का सुबूत है कि ‘व्यवस्था’ कैसे किसी अच्छे भले व्यक्ति को इस्तेमाल करती है। गौतम दोषी एक निहायत भले और सरल व्यक्ति के रूप में लोगों के बीच पहचाने जाते थे। गौतम दोषी से एक बार मिल लेने वाला व्यक्ति भी उनकी सरलता और सज्जनता का कायल हो जाता था; उनकी विद्धता से तो वह लोग भी परिचित हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हैं। चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रोफेशन से संबद्ध शायद ही कोई ऐसा विषय हो, जिस पर गौतम दोषी की एक्सपर्टीज न हो। कंपनियों के विलय और अधिग्रहण जैसे मामलों में तो गौतम दोषी की जो एक्सपर्टीज रही है, उसके चलते वह देश के नामी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में गिने और पहचाने जाने लगे थे। गौतम दोषी को जानने वाले लोग जानते हैं कि गौतम दोषी ने अपनी काबिलियत से नाम और दाम दोनों कमाये हैं, और इतने कमाये हैं कि उसके बाद उनके मन में कोई लालच या कोई स्वार्थ बचा नहीं हो सकता। प्रोफेशन में गौतम दोषी की जो धाक और पहचान थी, उनकी जो संलग्नता थी, प्रोफेशन के प्रति उनका जो कमिटमेंट ‘दिखता’ था, उसे जानने/पहचानने वाले लोगों को हैरानी थी कि रिलायंस से उन्हें आखिर ऐसा क्या मिला कि वह प्रोफेशन से ही ‘किनारा’ कर बैठे।
उस समय तो किसी को भी यह पहेली समझ नहीं आई थी - जिन्होंने समझने का दावा भी किया था, उनका भी सिर्फ यही कहना था कि गौतम दोषी पैसा और पोजीशन के चक्कर में ही अनिल अंबानी ग्रुप में गये थे; लेकिन जो लोग उन्हें जानते थे, वह इस बात पर इसलिए विश्वास नहीं करते थे क्योंकि उन्हें पता था कि पैसा और पोजीशन का संकट तो गौतम दोषी के साथ था ही नहीं - संकट इसलिए भी नहीं था क्योंकि गौतम दोषी असंतोषी, लालची और स्वार्थी किस्म के व्यक्ति के रूप में ‘दिखते’ ही नहीं थे। जो व्यक्ति असंतोषी नहीं हैं, लालची नहीं है, स्वार्थी नहीं है, अपने प्रोफेशन के प्रति पूरी तरह समर्पित है, प्रोफेशन को दशा और दिशा देने वाली संस्था (इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स) और संस्था की कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने वाली टीम (सेंट्रल काउंसिल) के साथ गहरे से जुड़ा है - वह एक दिन अचानक प्रोफेशन को छोड़ कर एक ऐसे कार्पोरेट समूह का हिस्सा बन जाता है जिसकी छवि बहुत पाक.साफ नहीं है: अनिल अंबानी ग्रुप को ज्वाइन करने के गौतम दोषी के फैसले पर - उन्हें जानने वालों के लिए हैरान होने के पूरे कारण मौजूद थे। हैरान होने का कारण यह भी था कि अनिल अंबानी ग्रुप ने गौतम दोषी को आखिर क्या ‘देख’ कर अपने यहां एक बड़ा ओहदा दिया। गौतम दोषी को जानने वाले लोगों को यही लगता था कि अनिल अंबानी ग्रुप में ओहदे पर बैठे लोगों से जिस तरह की ‘सेवाओं’ की उम्मीद की जायेगी, उस तरह की ‘सेवा’ तो गौतम दोषी नहीं दे पायेंगे। उन्हीं जानने वाले लोगों में से बहुतों को अब यह लग रहा है कि वह गौतम दोषी को वास्तव में कितना कम जानते थे, और अनिल अंबानी ने गौतम दोषी को कितना सही पहचाना था।
अनिल अंबानी ग्रुप में गौतम दोषी ‘जो’ करने के लिए गए, ‘जो’ करने के लिए अनिल अंबानी ने उन्हें चुना - और ‘जिसे’ करने के चक्कर में वह जेल के सींखचों के पीछे जा पहुंचे - उसने उनकी साख व प्रतिष्ठा को तो धूल में मिला ही दिया; उनकी पत्नी भावना दोषी की सेंट्रल काउंसिल की राजनीति को भी ग्रहण लगा दिया। भावना दोषी इंस्टीट्यूट की अध्यक्ष पद की प्रबल दावेदार के रूप में देखी जाने लगीं थीं और अगले टर्म में उनके अध्यक्ष चुने जाने की उम्मीदें की जा रही थीं। रिलायंस कनेक्शन ने लेकिन सब चैपट कर दिया। इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का यह एक ट्रेजिडीभरा पक्ष ही कहा जायेगा कि जिस रिलायंस कनेक्शन ने भावना दोषी की चुनावी राजनीति का बेड़ा गर्क किया, उसी रिलायंस कनेक्शन के भरोसे निहार जम्बुसारिया ने सेंट्रल काउंसिल में अपने प्रवेश करने की उम्मीद पैदा की। निहार जम्बुसारिया जिस रिलायंस कनेक्शन के भरोसे सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश पा लेने की उम्मीद लगाये हुए हैं, उसी रिलायंस कनेक्शन को तरूण घिया ने निहार जम्बुसारिया के खिलाफ अपना हथियार बना लिया है। गौतम दोषी और भावना दोषी के साथ जो हुआ, उसने तरूण घिया के हथियार को धारदार बना दिया है। रिलायंस कनेक्शन के जाल में निहार जम्बूसारिया को घेरने और फँसाने की तरूण घिया ने जो रणनीति बनाई है, उसने वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी लड़ाई को खासा दिलचस्प बना दिया है ।