नई दिल्ली । जेके गौड़ के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से खिसिआये
और निराश हुए लोगों को यह देख कर 'उम्मीद' बनी है कि मुकेश अरनेजा अब जेके
गौड़ के समर्थन में कूद पड़े हैं । यह अब जगजाहिर बात हो चुकी है कि मुकेश
अरनेजा जिसके दोस्त हो जाते हैं, उस बिचारे को दुश्मनों की जरूरत नहीं रह
जाती - मुकेश अरनेजा की दोस्ती ही उसका काम तमाम कर देती है । हाल के दिनों
में रवि चौधरी के साथ जो हुआ, और फिर अभी आलोक गुप्ता के साथ जो हुआ -
उसमें इसके संकेत और सुबूत देखे जा सकते हैं । पिछले रोटरी वर्ष में रवि
चौधरी को कई लोगों ने समझाया था कि मुकेश अरनेजा के साथ रहोगे तो निश्चित
ही डूबोगे । इस वर्ष आलोक गुप्ता को कई लोगों ने रवि चौधरी के अनुभव से सबक
लेने की नसीहत दी थी - लेकिन इन दोनों ने किसी की नहीं सुनी और मुकेश
अरनेजा के समर्थन की कीमत चुकाई । इसी आधार पर, मुकेश अरनेजा को जेके गौड़
के समर्थन में जाता देख कर उन लोगों की बाँछे खिल गई हैं जो जेके गौड़ को
सफल होते हुए नहीं देखना चाहते हैं ।
मुकेश अरनेजा को जेके गौड़ के समर्थन में आया देख कर उनके समर्थकों और शुभचिंतकों को भी चिंता हुई है कि मुकेश अरनेजा के कारण जेके गौड़ का बना/बनाया काम कहीं बिगड़ न जाये । जेके गौड़ के समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए हैरानी की बात यह भी है कि जेके गौड़ के नोमीनेट होने के पहले तक मुकेश अरनेजा से जब भी समर्थन की बात की जाती थी, तब तो वह टाल-मटोल करते थे, और कभी रवि चौधरी तो कभी आलोक गुप्ता का समर्थन करने की बात करते थे - लेकिन जेके गौड़ के नोमीनेट होते ही मुकेश अरनेजा ने गिरगिट को भी मात देने वाले अंदाज़ में रंग बदला और जेके गौड़ के सबसे बड़े समर्थक बन गए । मुकेश अरनेजा ने यह रंग क्यों बदला ? उन्हें जानने वालों का कहना है कि मुकेश अरनेजा ने चूंकि भांप लिया है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद का चुनाव जेके गौड़ ही जीतने जा रहे हैं, इसलिए उन्होंने बिना देर किये जेके गौड़ की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है - ताकि उनकी जीत का श्रेय वह ले सकें और लोगों को बता सकें कि उन्होंने जेके गौड़ को जितवा दिया ।
एक सच्चे नेता में और एक टुच्चे नेता में यही प्रमुख अंतर बताया/पाया जाता है कि एक सच्चा नेता जिसके साथ होता है उसे जितवाने का प्रयास करता है और असफल होने पर अपनी कमजोरियों का मूल्यांकन करता है; जबकि टुच्चा नेता होता किसी और के साथ है लेकिन जब जीतता हुआ कोई और दिखता है तो झट से पाला बदल कर जीतते हुए के साथ हो जाता है ।
मुकेश अरनेजा के लिए लोगों का कहना है कि यदि वह सचमुच में इतने जिताऊ नेता हैं तो अपने क्लब के ललित खन्ना को जितवाने में क्यों नहीं जुटते ? ललित खन्ना न सिर्फ उनके क्लब के हैं, बल्कि उनके बड़े खास भी रहे हैं और उनके प्रेरित करने के चलते ही उम्मीदवार बने हैं । मुकेश अरनेजा लेकिन उनकी कोई बात ही नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि ललित खन्ना के जीतने के कोई चांस नहीं हैं ।
मुकेश अरनेजा अब कोई सच्चे नेता तो हैं नहीं, जो हारते नज़र आ रहे उम्मीदवार के साथ हों - भले ही वह उनके क्लब का हो, उनका बड़ा खास हो और उनके प्रेरित करने पर ही उम्मीदवार बना हो ! मुकेश अरनेजा को तो जीतने वाले उम्मीदवार के साथ दिखना है - ताकि वह लोगों को बता और जता सकें कि उसे उन्होंने जितवाया है ।
मुकेश अरनेजा ने अपनी नेतागिरी चलाने के लिए जेके गौड़ की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है, इससे लेकिन जेके गौड़ की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को चिंता हो गई है । उन्हें डर यह हुआ है कि मुकेश अरनेजा के आगे आने के कारण कई दूसरे प्रमुख नेता बिदक सकते हैं और जेके गौड़ की उम्मीदवारी से हाथ खींच सकते हैं - और तब कहीं जेके गौड़ का बना/बनाया काम ख़राब न हो जाये । जेके गौड़ के समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ ने बिना किसी नेता के समर्थन के - अपनी सक्रियता और अपने व्यवहार से लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई है, तथा दूसरे उम्मीदवारों से आगे बढ़े हैं । उन्हें डर हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद के लिए जेके गौड़ का जो दावा मजबूत हुआ है, वह कहीं मुकेश अरनेजा की टुच्चाई के कारण कमजोर न पड़ जाये ।
मुकेश अरनेजा को जेके गौड़ के समर्थन में आया देख कर उनके समर्थकों और शुभचिंतकों को भी चिंता हुई है कि मुकेश अरनेजा के कारण जेके गौड़ का बना/बनाया काम कहीं बिगड़ न जाये । जेके गौड़ के समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए हैरानी की बात यह भी है कि जेके गौड़ के नोमीनेट होने के पहले तक मुकेश अरनेजा से जब भी समर्थन की बात की जाती थी, तब तो वह टाल-मटोल करते थे, और कभी रवि चौधरी तो कभी आलोक गुप्ता का समर्थन करने की बात करते थे - लेकिन जेके गौड़ के नोमीनेट होते ही मुकेश अरनेजा ने गिरगिट को भी मात देने वाले अंदाज़ में रंग बदला और जेके गौड़ के सबसे बड़े समर्थक बन गए । मुकेश अरनेजा ने यह रंग क्यों बदला ? उन्हें जानने वालों का कहना है कि मुकेश अरनेजा ने चूंकि भांप लिया है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद का चुनाव जेके गौड़ ही जीतने जा रहे हैं, इसलिए उन्होंने बिना देर किये जेके गौड़ की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है - ताकि उनकी जीत का श्रेय वह ले सकें और लोगों को बता सकें कि उन्होंने जेके गौड़ को जितवा दिया ।
एक सच्चे नेता में और एक टुच्चे नेता में यही प्रमुख अंतर बताया/पाया जाता है कि एक सच्चा नेता जिसके साथ होता है उसे जितवाने का प्रयास करता है और असफल होने पर अपनी कमजोरियों का मूल्यांकन करता है; जबकि टुच्चा नेता होता किसी और के साथ है लेकिन जब जीतता हुआ कोई और दिखता है तो झट से पाला बदल कर जीतते हुए के साथ हो जाता है ।
मुकेश अरनेजा के लिए लोगों का कहना है कि यदि वह सचमुच में इतने जिताऊ नेता हैं तो अपने क्लब के ललित खन्ना को जितवाने में क्यों नहीं जुटते ? ललित खन्ना न सिर्फ उनके क्लब के हैं, बल्कि उनके बड़े खास भी रहे हैं और उनके प्रेरित करने के चलते ही उम्मीदवार बने हैं । मुकेश अरनेजा लेकिन उनकी कोई बात ही नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि ललित खन्ना के जीतने के कोई चांस नहीं हैं ।
मुकेश अरनेजा अब कोई सच्चे नेता तो हैं नहीं, जो हारते नज़र आ रहे उम्मीदवार के साथ हों - भले ही वह उनके क्लब का हो, उनका बड़ा खास हो और उनके प्रेरित करने पर ही उम्मीदवार बना हो ! मुकेश अरनेजा को तो जीतने वाले उम्मीदवार के साथ दिखना है - ताकि वह लोगों को बता और जता सकें कि उसे उन्होंने जितवाया है ।
मुकेश अरनेजा ने अपनी नेतागिरी चलाने के लिए जेके गौड़ की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है, इससे लेकिन जेके गौड़ की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को चिंता हो गई है । उन्हें डर यह हुआ है कि मुकेश अरनेजा के आगे आने के कारण कई दूसरे प्रमुख नेता बिदक सकते हैं और जेके गौड़ की उम्मीदवारी से हाथ खींच सकते हैं - और तब कहीं जेके गौड़ का बना/बनाया काम ख़राब न हो जाये । जेके गौड़ के समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ ने बिना किसी नेता के समर्थन के - अपनी सक्रियता और अपने व्यवहार से लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई है, तथा दूसरे उम्मीदवारों से आगे बढ़े हैं । उन्हें डर हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी पद के लिए जेके गौड़ का जो दावा मजबूत हुआ है, वह कहीं मुकेश अरनेजा की टुच्चाई के कारण कमजोर न पड़ जाये ।