नई दिल्ली/हिसार । राजेंद्र नारंग की उम्मीदवारी के समर्थन में
दिल्ली में जो आवाजें सुनी जा रही हैं, उन आवाजों के शोर में रीजनल काउंसिल
के कुछेक उन उम्मीदवारों की उम्मीदवारी के नारे धीमे पड़ते देखे जा रहे
हैं, जो हिसार-सिरसा-भिवानी-रोहतक क्षेत्र के वोटों पर निगाह लगाये हुए थे ।
उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के लिए कुछेक उम्मीदवारों ने तो
सिर्फ इसी क्षेत्र के वोटों के भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, तो
जिन लोगों ने जीतने के लिए बड़ा दांव चला हुआ है उनकी नज़र भी इस क्षेत्र के
वोटों पर रही है । लेकिन राजेंद्र नारंग की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे
समर्थन ने सभी के गणित बिगाड़ दिए हैं । मजे की बात है कि शुरू में कोई
भी राजेंद्र नारंग की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहा था । राजेंद्र
नारंग ने पिछले दो चुनावों में भी अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया था,
किन्तु वह सफल नहीं हो पाए थे । पिछले चुनाव में हालाँकि वह बहुत ही मामूली
अंतर से पिछड़ गए थे - लेकिन चूंकि वह लगातार दूसरी बार पिछड़े थे, इसलिए इस
बार शुरू में उनकी उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था । इसीलिये
उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने के बावजूद कई एक उम्मीदवारों को उनके
समर्थन आधार वाले क्षेत्र से वोट मिलने का भरोसा था । ऐसा भरोसा रखने वाले
लोगों का मानना और कहना था कि दो बार पिछड़ने के कारण राजेंद्र नारंग के
प्रति समर्थन का भाव उनके अपने समर्थन-आधार क्षेत्र में बुरी तरह घट गया है
- क्योंकि अब उनके अपने बहुत खास लोग भी यह विश्वास करने को तैयार नहीं हैं कि वह जीतने लायक समर्थन जुटा सकेंगे ।
राजेंद्र नारंग को कम आंकने वाले लोगों ने लेकिन इस बात की पूरी तरह अनदेखी की कि दो बार असफल रहने के बावजूद राजेंद्र नारंग ने हिम्मत नहीं हारी है और अपनी असफलताओं से सबक लेकर उन्होंने काफी पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है । उन्होंने न सिर्फ अपने समर्थन-आधार को बनाये रखने का प्रयास किया, बल्कि नए समर्थन-आधार भी खोजे और तैयार किये । यही कारण रहा कि जब चुनावी भाग-दौड़ सचमुच शुरू हुई तो राजेंद्र नारंग को कमजोर आँक रहे लोगों को यह देख कर तगड़ा झटका लगा कि राजेंद्र नारंग को न सिर्फ अपने समर्थकों से और ज्यादा जोश के साथ समर्थन मिल रहा है, बल्कि उनके सक्रिय समर्थकों की संख्या भी बढ़ी है । राजेंद्र नारंग ने इस बार एक बड़ा काम यह किया कि उन्होंने रीजन के बड़े सेंटर्स में अपनी पहचान बनाने पर जोर दिया । पंजाब और हरियाणा में आने वाली प्रमुख ब्रांचेज में अपनी पैठ बनाने सा साथ-साथ राजेंद्र नारंग ने दिल्ली में भी अपने समर्थकों को सक्रिए होने ही नहीं, 'दिखने के लिए भी प्रेरित करने का काम किया । उनकी इस तैयारी ने असर दिखाया; जिसका नतीजा यह निकला कि उनकी उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच स्वीकार्यता और समर्थन का भाव तो पैदा हुआ ही, उनकी उम्मीदवारी का ऑरा (आभामंडल) भी बना । यही वजह है कि नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जिन उम्मीदवारों की जीत को सुनिश्चित समझा जा रहा है उनमें राजेंद्र नारंग का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है ।
राजेंद्र नारंग को कम आंकने वाले लोगों ने लेकिन इस बात की पूरी तरह अनदेखी की कि दो बार असफल रहने के बावजूद राजेंद्र नारंग ने हिम्मत नहीं हारी है और अपनी असफलताओं से सबक लेकर उन्होंने काफी पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है । उन्होंने न सिर्फ अपने समर्थन-आधार को बनाये रखने का प्रयास किया, बल्कि नए समर्थन-आधार भी खोजे और तैयार किये । यही कारण रहा कि जब चुनावी भाग-दौड़ सचमुच शुरू हुई तो राजेंद्र नारंग को कमजोर आँक रहे लोगों को यह देख कर तगड़ा झटका लगा कि राजेंद्र नारंग को न सिर्फ अपने समर्थकों से और ज्यादा जोश के साथ समर्थन मिल रहा है, बल्कि उनके सक्रिय समर्थकों की संख्या भी बढ़ी है । राजेंद्र नारंग ने इस बार एक बड़ा काम यह किया कि उन्होंने रीजन के बड़े सेंटर्स में अपनी पहचान बनाने पर जोर दिया । पंजाब और हरियाणा में आने वाली प्रमुख ब्रांचेज में अपनी पैठ बनाने सा साथ-साथ राजेंद्र नारंग ने दिल्ली में भी अपने समर्थकों को सक्रिए होने ही नहीं, 'दिखने के लिए भी प्रेरित करने का काम किया । उनकी इस तैयारी ने असर दिखाया; जिसका नतीजा यह निकला कि उनकी उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच स्वीकार्यता और समर्थन का भाव तो पैदा हुआ ही, उनकी उम्मीदवारी का ऑरा (आभामंडल) भी बना । यही वजह है कि नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जिन उम्मीदवारों की जीत को सुनिश्चित समझा जा रहा है उनमें राजेंद्र नारंग का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है ।