Saturday, August 20, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में राकेश अग्रवाल के केएस लूथरा के साथ जा मिलने के कारण गुरनाम सिंह की राजनीति को तगड़ा झटका

लखनऊ । वरिष्ठ लायन सदस्य राकेश अग्रवाल ने गुरनाम सिंह का साथ छोड़ कर केएस लूथरा के नजदीक होने का ऐलान क्या किया, गुरनाम सिंह के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों का जैसे अकाल पड़ गया है । गुरनाम सिंह के उम्मीदवार का ठप्पा लगवाने के लिए जिन बिश्वनाथ चौधरी तथा सुधाकर रस्तोगी के बीच कुछ दिन पहले तक भयंकर होड़ मची थी, वह दोनों तो चुनावी मैदान से हटने की घोषणा कर ही चुके हैं - तीसरा भी कोई गुरनाम सिंह का उम्मीदवार होने का ठप्पा लगवाने को तैयार नहीं हो रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गुरनाम सिंह ने यूँ तो पहले भी झटके खाए हैं, लेकिन अब की बार उन्हें जो झटका मिला है - वह अभूतपूर्व है । केएस लूथरा ने - जब विशाल सिन्हा को हरवाकर शिव कुमार गुप्ता को चुनाव जितवाया था; जब संदीप सहगल को चुनाव जितवाया था; और जब इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के चुनाव में अनुपम बंसल को हराया था; तब भी गुरनाम सिंह की चुनावी राजनीति को ऐसा झटका नहीं लगा था । राकेश अग्रवाल को अपनी तरफ मिलाकर केएस लूथरा ने लेकिन गुरनाम सिंह की राजनीति की जैसे कमर ही तोड़ दी है । सचमुच, गुरनाम सिंह ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में इतने बुरे दिन कभी नहीं देखे कि उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार ही न मिलें ।
उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के चुनाव में गुरनाम सिंह के उम्मीदवार अनुपम बंसल को केएस लूथरा से जो करारी मात मिली थी, उसके बाद भी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गुरनाम सिंह का राजनीतिक जलवा कम नहीं हुआ था । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए बिश्वनाथ चौधरी के रूप में गुरनाम सिंह को एक उम्मीदवार आसानी से मिल गया था । यह गुरनाम सिंह की राजनीति का जलवा ही था कि सुधाकर रस्तोगी ने भी अपनी उम्मीदवारी के लिए उनकी सरपरस्ती पाने के प्रयास शुरू कर दिए थे; और उन्हें विश्वास था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा के क्लब का सदस्य होने के नाते वह गुरनाम सिंह के हाथों से बिश्वनाथ चौधरी की उम्मीदवारी का झंडा फिंकवा देंगे और गुरनाम सिंह के हाथों में उनकी ही उम्मीदवारी का झंडा रहेगा । लेकिन राकेश अग्रवाल के गुरनाम सिंह का साथ छोड़ कर केएस लूथरा के साथ जा मिलने से सारा नजारा एकदम से ही बदल गया है । दरअसल राकेश अग्रवाल का क्लब एक बड़ा क्लब है, और उसके पंद्रह वोट हैं । किसी भी चुनावी मुकाबले में पंद्रह वोट बहुत मायने रखते हैं । हालाँकि किसी भी चुनाव में पंद्रह वोट एकमुश्त मिलने से भी चुनावी जीत की गारंटी नहीं मिलती है - राकेश अग्रवाल के क्लब के पंद्रह वोट मिलने के बावजूद गुरनाम सिंह के उम्मीदवार कई बार चुनाव हारे ही हैं; लेकिन पंद्रह वोट यदि प्रतिपक्षी खेमे में चले जाएँ, तब तो हार की पक्की गारंटी है । राकेश अग्रवाल ने गुरनाम सिंह का साथ छोड़ कर केएस लूथरा के साथ होने का जो फैसला किया है, उसके कारण हालात लेकिन निर्णायक रूप से बदल गए हैं; और गुरनाम सिंह के उम्मीदवार होने का अर्थ - निश्चित पराजय हो गया है । अब निश्चित पराजय का वरण तो कोई भी नहीं करना चाहेगा । सो, जो बिश्वनाथ चौधरी और सुधाकर रस्तोगी जोरशोर से अपनी अपनी उम्मीदवारी का झंडा गुरनाम सिंह को थमा देने की होड़ में लगे थे, वह तो अपने अपने झंडे लपेट कर चुपचाप बैठ ही गए हैं; अन्य जिसे भी गुरनाम सिंह की तरफ से उम्मीदवार बनने के लिए कहा जा रहा है, वह चुपचाप पतली गली पकड़ ले रहा है ।
बिश्वनाथ चौधरी तथा सुधाकर रस्तोगी की तरफ से उम्मीदवारी वापस होने का कारण स्वास्थ्य ठीक न होना बताया गया है । यह सच है कि इन दोनों को हाल ही के दिनों में स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है; पर उम्मीदवारी से पीछे हटने के संदर्भ में यह आधा सच है । स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का यह ईलाज करवा रहे हैं, और जल्दी ही ठीक हो जायेंगे । स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों के बावजूद बिश्वनाथ चौधरी ने चीफ डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी का और सुधाकर रस्तोगी ने डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी एडमिनिट्रेशन का पद तो नहीं छोड़ा है न ! जाहिर है कि उम्मीदवारी छोड़ने में स्वास्थ्य को कारण बताना सिर्फ बहाना है । इनके ही नजदीकियों का कहना है कि अभी यदि केएस लूथरा इनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा कर दें, तो यह अपनी बीमारी को भूल कर फौरन से उम्मीदवार हो जायेंगे । गुरनाम सिंह और उनके नजदीकी भी इस सच्चाई को समझ/पहचान रहे हैं, और इसीलिए वह बार-बार माफी/आफी माँगते हुए राकेश अग्रवाल को फिर से अपने साथ लाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं - राकेश अग्रवाल अभी तक तो उनकी माफी से पिघलते हुए दिख नहीं रहे हैं ।
राकेश अग्रवाल को गुरनाम सिंह से आखिर ऐसी क्या चोट पड़ी है, जिसके 'घाव' माफी से भी नहीं भर रहे हैं ? राकेश अग्रवाल का कहना है कि उन्हें गुरनाम सिंह और उनके नजदीकियों ने पहले तो एके सिंह की उम्मीदवारी को लेकर धोखे में रखा, और फिर एके सिंह का नाम लेकर लोगों के बीच उन्हें बदनाम करने की कोशिश की । गुरनाम सिंह तथा उनके नजदीकियों ने ही लोगों के बीच उड़ाया कि एके सिंह को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनता देख राकेश अग्रवाल को अच्छा नहीं लगा है । राकेश अग्रवाल का कहना है कि एके सिंह को लायनिज्म से परिचित करवाने का काम उन्होंने किया; एके सिंह को लायनिज्म में और डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय व संलग्न करने तथा पहचान दिलाने का काम उन्होंने किया; एके सिंह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करने का काम उन्होंने किया; एके सिंह की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में वह उस हालत में भी उनके साथ गए, जब एक दुर्घटना का शिकार होने के चलते वह बुरी तरह चोटिल थे और ठीक तरह से कपड़े भी नहीं पहन सकते थे; ऐसे में एके सिंह को कामयाब होता देख उन्हें अच्छा भला क्यों नहीं लगेगा ? राकेश अग्रवाल ईमानदारी से इस बात को भी स्वीकार करते और बताते हैं कि हाँ, एके सिंह के कुछेक फैसलों को लेकर उनकी नाराजगी थी - लेकिन वह नाराजगी इतनी बड़ी नहीं थी कि वह एके सिंह की राह में रोड़ा बनने की कोशिश करते । राकेश अग्रवाल की शिकायत यह है कि गुरनाम सिंह और उनके नजदीकियों ने पहले तो एके सिंह की उम्मीदवारी को समर्थन देने के मामले में उनसे झूठ बोला और बराबर उन्हें अँधेरे में रखा; और फिर डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच उन्हें ही बदनाम करने का काम किया । राकेश अग्रवाल का कहना है कि लायनिज्म में और डिस्ट्रिक्ट में उनका कोई स्वार्थ नहीं है; कौन गवर्नर बन रहा है और उसे कौन बनवा रहा है; कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है; उन्हें इस सबसे कोई मतलब नहीं है - वह तो बस आपसी विश्वास और सम्मान के साथ लोगों के साथ रहना चाहते हैं और जो बन पड़े, उसे करते रहना चाहते हैं; गुरनाम सिंह और उनके नजदीकियों ने इसके बावजूद उनके साथ पहले तो धोखा किया, और फिर उन्हें ही बदनाम करने का प्रयास किया । इसके चलते ही उन्होंने बहुत विनम्रता से गुरनाम सिंह को बता दिया कि वह अब आगे उनके साथ नहीं रह पायेंगे ।
मजे की बात यह रही कि गुरनाम सिंह और उनके नजदीकियों ने पहले तो राकेश अग्रवाल की इस 'बाय-बाय' को गंभीरता से नहीं लिया; लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा/पाया कि राकेश अग्रवाल के उनका साथ छोड़ कर केएस लूथरा के साथ जा मिलने के बाद डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बदले समीकरणों के चलते उनके उम्मीदवार 'बीमार' पड़ रहे हैं, और उनसे बचने लगे हैं - तब उनके तोते उड़े । अपने 'तोतों' को बचाने के लिए गुरनाम सिंह तथा उनके नजदीकियों ने राकेश अग्रवाल को मनाने और अपने खेमे में वापस लाने के लिए प्रयास तो तेज किए हैं, लेकिन उनके प्रयासों को अभी तो कामयाबी मिलती नहीं दिख रही है ।