Tuesday, August 23, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल के 'दल बदल' ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों को तगड़ा झटका दिया

आगरा । पारस अग्रवाल ने 'दल बदल' करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को तो बदलने का काम किया ही है, साथ ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मधु सिंह की उम्मीदवारी के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है । मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को भी यह समझने का प्रयास करना पड़ रहा है कि पिछले लायन वर्ष में पारस अग्रवाल के समर्थन के बावजूद मधु सिंह को जब करारी हार का सामना करना पड़ा था, तब इस वर्ष पारस अग्रवाल के विरोध के चलते उन्हें जितवा पाना कैसे संभव होगा ? कई लोगों का हालाँकि मानना और कहना है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल कोई इतने बड़े नेता नहीं हैं कि उनके समर्थन और विरोध से जीतने/हारने के फैसले होते हों, इसलिए इस बात से चुनावी राजनीति के नतीजे पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि पारस अग्रवाल किसके साथ हैं और किसके खिलाफ । लेकिन कुछेक लोगों का मानना और कहना है कि यह ठीक है कि पारस अग्रवाल - और पारस अग्रवाल ही क्यों, कोई भी - किसी चुनावी लड़ाई में निर्णायक फैक्टर नहीं हो सकते हैं; लेकिन समर्थन और विरोध बनाने में तो हर किसी की भूमिका होती ही है - वह भूमिका चाहें छोटी हो और या बड़ी; और इस लिहाज से पारस अग्रवाल के 'दल बदल' की भी भूमिका होगी ही, जो अभी तो मधु सिंह की उम्मीदवारी के खिलाफ जाती नजर आ रही है । यही कारण है कि पारस अग्रवाल के दल बदल से मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के बीच निराशा पैदा हुई है, और उन्हें मधु सिंह की उम्मीदवारी पर खतरा मँडराता दिखने लगा है । उनके समर्थक कुछेक नेताओं ने तो इस बात पर भी विचार करना शुरू कर दिया है कि मधु सिंह की बजाए वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए किसी और को उम्मीदवार बनाएँ, तो डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उन्हें कामयाबी मिल सकती है क्या ?
मजे की बात यह है कि पारस अग्रवाल को दल बदलने के लिए मजबूर करने का आरोप मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल पर ही लगाया जा रहा है । पारस अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के इशारे पर काम कर रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल ने कई फैसलों और मीटिंग्स आदि में पारस अग्रवाल को शामिल ही नहीं किया और उन्हें अलग-थलग करने/रखने की कोशिशें कीं, जिन्हें देख/जान कर पारस अग्रवाल के पास फिर दल बदल कर दूसरे खेमे में जाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रह गया । पारस अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि सीपी सिंघल और दूसरे नेताओं ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत हुई सुमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए पारस अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया तथा पारस अग्रवाल पर जासूसी करने का व धोखेबाजी करने का आरोप लगा कर उन्हें अलग-थलग करने/रखने का रवैया अपनाया । ऐसे में, पारस अग्रवाल दूसरे खेमे में न जाएँ, तो क्या करें ? नजदीकियों का कहना है कि यह ठीक है कि पारस अग्रवाल का सुमित गुप्ता के साथ पुराना परिचय और संबंध है, लेकिन सुमित गुप्ता की उम्मीदवारी की प्रस्तुति से उनका कोई संबंध नहीं है - यह संबंध जोड़ कर मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने दरअसल अपनी कमजोरी को ही जाहिर किया है, और अपनी कमजोरी का ठीकरा पारस अग्रवाल के सिर पर फोड़ दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने तथा उसे समझने वाले वरिष्ठ लायन सदस्यों का कहना है कि पिछले लायन वर्ष के चुनावी नतीजे ने वास्तव में पारस अग्रवाल को अपनी भूमिका के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया । उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में मधु सिंह और बीके गुप्ता के बीच चुनाव में पारस अग्रवाल ने मधु सिंह का समर्थन किया था । बीके गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने पारस अग्रवाल को समझाने की बहुत कोशिश भी की थी कि वह खुद चूँकि सभी के समर्थन से निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने गए हैं, इसलिए अब उन्हें किसी एक उम्मीदवार के समर्थन में खुल कर सक्रिय नहीं होना/दिखना चाहिए - लेकिन पारस अग्रवाल पर उनकी समझाइस का कोई असर नहीं पड़ा । वह तो जब चुनाव का नतीजा आया, तब पारस अग्रवाल की आँखें खुलीं । मधु सिंह खुद तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में बुरी तरह से हारी हीं - उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने की सजा नेगेटिव वोट के रूप में सीपी सिंघल और पारस अग्रवाल को भी मिली ।
इसी से सबक लेकर पारस अग्रवाल ने 'पक्षपाती' भूमिका निभाने से बचने की कोशिशें शुरू कीं । उनकी इन कोशिशों का ही नतीजा था कि मल्टीपल काउंसिल की चंडीगढ़ में हुई कॉन्फ्रेंस में अम्बरीष सरीन की जो फजीहत हुई और जिसके बाद अम्बरीष सरीन व सीपी सिंघल ने इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के खिलाफ जो मोर्चा खोला - पारस अग्रवाल उससे दूर रहे । सीपी सिंघल तथा उनके समर्थक नेताओं को पारस अग्रवाल का यह रवैया पसंद नहीं आया और उन्होंने पारस अग्रवाल पर धोखेबाजी करने का आरोप तो लगाया ही; साथ ही यह आरोप भी मढ़ दिया कि पारस अग्रवाल 'यहाँ' की खबरें 'वहाँ' पहुँचाते हैं । इसके बाद, लायंस क्लब आगरा आदर्श के सुमित गुप्ता की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने मधु सिंह के खेमे में पारस अग्रवाल को और भी संदेहास्पद बना दिया । मधु सिंह के खेमे में होने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में तथा डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों से संबंधित फैसलों  तक में पारस अग्रवाल को शामिल नहीं किया, जिसकी चर्चा वाट्स ऐप तक में हुई । इस तरह से मधु सिंह के समर्थक नेताओं ने पारस अग्रवाल को पूरी तरह से प्रतिद्धंद्धी खेमे में धकेल दिया है । धकेल तो दिया है, किंतु अब वह पछता भी रहे हैं - उन्हें लग रहा है कि इससे उन्होंने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है ।
मधु सिंह की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को हालाँकि उम्मीद है कि पारस अग्रवाल अपने पिछले लायन वर्ष के रवैये के कारण 'उस' खेमे के लोगों के बीच भी भरोसा नहीं बना पायेंगे - और तब वह वापस 'यहीं' लौटने के लिए मजबूर होंगे । आगे क्या होगा - यह तो आगे पता चलेगा, अभी लेकिन पारस अग्रवाल के 'दल बदल' ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में मधु सिंह की उम्मीदवारी के समर्थकों को तगड़ा झटका दिया है ।