Thursday, August 25, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में झूठे तथ्यों के आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को मिली इमरजेंसी ग्रांट में नरेश अग्रवाल व नेविल मेहता की 'हिस्सेदारी' की चर्चा से ग्रांट का मामला गंभीर हुआ

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने आपदा पीड़ितों की मदद के नाम पर झूठ बोल कर एलसीआईएफ एमरजेंसी ग्रांट की पाँच हजार अमेरिकी डॉलर की जो रकम डकारने का काम किया है, उसमें नरेश अग्रवाल और नेविल मेहता जैसे बड़े नेताओं की संलिप्तता की आशंका ने मामले को खासा गंभीर बना दिया है । दरअसल शिव कुमार चौधरी ने इमरजेंसी ग्रांट के लिए जो आवेदन किया था, उसमें ऐसी तथ्यात्मक गलतियाँ हैं कि उनके कारण पहली नजर में ही शिव कुमार चौधरी का फ्रॉड पकड़ में आ जाता है - उसके बावजूद जिस तरह से उन्हें फौरन से इमरजेंसी ग्रांट के पाँच हजार डॉलर मिल गए, उससे संदेह हुआ है कि उन्हें यह ग्रांट दिलवाने में बड़े नेताओं का हाथ है । इन बड़े नेताओं में फर्स्ट इंटरनेशनल वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल तथा लायंस इंटरनेशनल के मुंबई स्थित कार्यालय के मुखिया नेविल मेहता का नाम आता है । लोगों को लगता यह है कि इमरजेंसी ग्रांट के लिए तैयार किए गए अपने आवेदन में शिव कुमार चौधरी ने जो झूठ बोला, उसके बारे में उन्हें आभास रहा होगा कि उनका यह झूठ एलसीआईएफ एमरजेंसी ग्रांट्स का काम देख रहे विदेशियों के लिए तो पकड़ पाना संभव नहीं होगा - लेकिन नेविल मेहता उनका झूठ पकड़ सकते हैं; इसलिए उन्हें नेविल मेहता को साधना जरूरी लगा होगा, और यह काम उन्होंने नरेश अग्रवाल के थ्रू किया होगा । एलसीआईएफ (लायंस क्लब्स इंटरनेशनल फाउंडेशन) से ग्रांट लेने की प्रक्रिया का जिन लोगों को पता है, उनके लिए इस बात को हजम कर पाना मुश्किल हो रहा है कि नेविल मेहता के होते हुए शिव कुमार चौधरी ने एलसीआईएफ से पाँच हजार अमेरिकी डॉलर कैसे ठग लिए ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने इमरजेंसी ग्रांट के लिए जो आवेदन किया, वह झूठ और फ्रॉड की तैयारी का एक पुलंदा है । कैसे ? इसे जानने/समझने के लिए पहले कृपया उनके आवेदन पत्र का पहला पैराग्राफ पढ़िए और उत्तराखंड का नक्शा देखिए :



इमरजेंसी ग्रांट के लिए दिए गए आवेदन पत्र की पहली लाइन ही इस झूठ से शुरू होती है कि पूरा उत्तराखंड राज्य लायंस डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन का हिस्सा है । सच्चाई यह है कि उत्तराखंड राज्य का बहुत छोटा सा हिस्सा ही डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में है; और राज्य का ज्यादा बड़ा भाग डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में है । इमरजेंसी ग्रांट पाने के लिए जिन पिथौरागढ़ और चमोली डिस्ट्रिक्ट्स में बादल फटने और लगातार बारिश होते रहने से हुए नुकसान को आधार बनाया गया है, नक्शे में देखा जा सकता है कि वह जिले डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन वाले देहरादून और हरिद्धार क्षेत्र से कितने दूर हैं । उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चमोली जिले न तो डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के हिस्से में आते हैं और न यहाँ डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन का कोई क्लब है । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के हरिद्धार, कोटद्धार, ऋषिकेश, मसूरी, देहरादून, रुड़की आदि के क्लब्स के लिए पिथौरागढ़ और चमोली जिले इतने दूर हैं, कि उनके लिए वहाँ जा पाना और कुछ कर पाना संभव ही नहीं है । इमरजेंसी ग्रांट पाने के लिए शिव कुमार चौधरी ने पूरी तरह एक झूठी कहानी गढ़ी और आवेदन कर दिया ।
लायंस इंटरनेशनल में इमरजेंसी ग्रांट पाने का जो सामान्य तरीका है, वह क्लब के आवेदन से शुरू होता है । वास्तव में क्लब इमरजेंसी ग्रांट की जरूरत पहचानता है, और उसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को एप्रोच करता है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उसकी जरूरत को एलसीआईएफ तक पहुँचाता है । शिव कुमार चौधरी ने इमरजेंसी ग्रांट के लिए जो आवेदन दिया, उसमें किसी भी क्लब की तरफ से प्रस्तुत हुई डिमांड का जिक्र तक नहीं है । क्लब की डिमांड रिपोर्ट के बिना प्रस्तुत हुए शिव कुमार चौधरी के आवेदन पर मुंबई कार्यालय से इमरजेंसी ग्रांट के पाँच हजार अमेरिकी डॉलर के समतुल्य तीन लाख चालीस हजार पचास रुपए का चेक - नेविल मेहता की मिलीभगत के बिना रिलीज हो सकता है, यह बात किसी के गले उतर नहीं रही है ।
आपदा राहत के नाम पर अपनी जेब भरने के लिए शिव कुमार चौधरी ने योजना तो हालाँकि और भी बड़ी बनाई थी : उन्होंने अपने आवेदन में कुल 17 लाख पाँच हजार रुपए यानि करीब 25 हजार अमेरिकी डॉलर की राहत योजना की 'कहानी' गढ़ी थी; अपनी कहानी को विश्वसनीय रूप देने के लिए उन्होंने एलसीआईएफ को लिखा/बताया कि इसमें से 15 हजार डॉलर तो वह डिस्ट्रिक्ट में इकट्ठा कर लेंगे, और बाकी दस हजार डॉलर आप दे दीजिए । नोट करने की बात यह है कि आपदा राहत के लिए 15 हजार अमेरिकी डॉलर की रकम डिस्ट्रिक्ट में इकट्ठी करने का दावा करने वाले शिव कुमार चौधरी ने वास्तव में इकन्नी भी इकट्ठा नहीं की है । यह कहानी तो उन्होंने दरअसल एलसीआईएफ से दस हजार अमेरिकी डॉलर ऐंठने के लिए उन्हें सुनाई/बताई । एलसीआईएफ पदाधिकारियों ने ऐसे बड़े राहत अभियान की जमीनी हकीकत की पड़ताल किए बिना - जिसमें करीब 25 हजार अमेरिकी डॉलर खर्च हो रहे हों और जिसके लिए डिस्ट्रिक्ट में 15 हजार अमेरिकी डॉलर इकट्ठे किए जा रहे हों - पाँच हजार अमेरिकी डॉलर तुरंत से रिलीज कर दिए ।
कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि एलसीआईएफ का कामकाज देख रहे पदाधिकारी इतने बड़े गधे हैं कि कोई भी उन्हें हजारों डॉलर खर्च होने की झूठी कहानी सुनायेगा, और वह उसे तुरंत से कुछ हजार डॉलर दे देंगे । जाहिर है कि शिव कुमार चौधरी को उनकी झूठी कहानी पर जो पाँच हजार अमेरिकी डॉलर की रकम मिली है, उसमें कुछेक बड़े लायन नेताओं व पदाधिकारियों का हिस्सा होगा ही ।
शिव कुमार चौधरी ने एलसीआईएफ से पाँच हजार अमेरिकी डॉलर के समतुल्य तीन लाख चालीस हजार पचास रुपए प्राप्त करने में तो सफलता हासिल कर ली; किंतु उनके सामने इस रकम को ठिकाने लगाने का 'नाटक' करने की चुनौती अभी बाकी थी । इस चुनौती से निपटने में उन्होंने 'इमरजेंसी' शब्द का ही मजाक बना कर रख दिया । गौर करने वाली बात यह है कि शिव कुमार चौधरी ने इमरजेंसी बताते हुए राहत के लिए 9 जुलाई को आवेदन किया; एलसीआईएफ ने राहत की इमरजेंसी समझते हुए मात्र पाँच दिन में, 14 जुलाई को मल्टीसिटी चेक (नंबर 174415) रिलीज कर दिया - किंतु जरूरतमंदों को 'इमरजेंसी' राहत पहुँचाने में शिव कुमार चौधरी ने 39 दिन लगा दिए । राहत पहुँचाने का आयोजन उन्होंने 22 अगस्त को किया, और बड़े गुपचुप रूप से किया । 'इमरजेंसी' राहत पहुँचाने में इतने दिन उन्हें इसलिए लगे, क्योंकि इस राहत कार्यक्रम को वह स्थानीय पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा फर्स्ट व सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से छिपा कर करना चाहते थे और उसके लिए मौका देख रहे थे । दरअसल आपदा पीड़ितों को इमरजेंसी राहत पहुँचाने की उनकी कोई नीयत या योजना थी ही नहीं, उन्हें तो इमरजेंसी राहत के नाम पर एलसीआईएफ से रुपए ऐंठने थे । उन्होंने एक मजाकभरी धोखाधड़ी और की : एलसीआईएफ इमरजेंसी ग्रांट उन्होंने पिथौरागढ़ व चमोली जिले के पीड़ितों के लिए ली थी, राहत सामग्री लेकिन उन्होंने इन जिलों से सैंकड़ों किलोमीटर दूर ऋषिकेश के नजदीक नरेंद्रनगर में बाँटी । तस्वीर में जो राहत सामग्री दिख रही है, कोई भी उसका दाम तीस-चालीस हजार रुपए से ज्यादा नहीं बता रहा है; शिव कुमार चौधरी को इसके लिए एलसीआईएफ से लेकिन तीन लाख चालीस हजार पचास रुपए मिले हैं ।
एलसीआईएफ में हुई इस लूट में नरेश अग्रवाल व नेविल मेहता की भूमिका को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, उससे इस इमरजेंसी ग्रांट (EMR 15237/321C1) का मामला खासा संगीन हो गया है ।