Tuesday, September 24, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के छात्रों की फीस पर मौज-मजा करने वाले काउंसिल के सदस्य इंस्टीट्यूट की परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रयास करने की बात तो छोड़िये, आज जब छात्र सड़क पर उतर कर आंदोलन करने को मजबूर हुए हैं - तब उनका समर्थन करने से भी मुँह छिपाते फिर रहे हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल व रीजनल काउंसिल के जो सदस्य चुनाव के समय जिन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों पर गिद्धों की तरह झपटते हैं, उन्होंने इंस्टीट्यूट की परीक्षा प्रणाली में सुधार की माँग करते आंदोलनकारी छात्रों के साथ 'हम आपके हैं कौन' जैसा रवैया अपनाया हुआ है । उनसे भी बुरा रवैया कोचिंग मालिकों व टीचर्स का है, जो चुनाव के समय तो उम्मीदवारों के 'दलाल' की भूमिका निभाने में बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं, लेकिन परीक्षा प्रणाली में सुधार की माँग करते छात्रों के साथ खड़े होने में जिनकी नानी मर रही है । कुछेक टीचर्स जरूर छात्रों की माँग और उनके आंदोलन के साथ खड़े हैं, लेकिन वह कुछेक ही हैं । इंस्टीट्यूट मुख्यालय के सामने चल रहा छात्रों का आंदोलन वास्तव में इस बात का पुख्ता सुबूत बना है कि इंस्टीट्यूट की व्यवस्था पूरी तरह सड़-गल चुकी है, और इससे भी बड़ी बात यह है कि जो लोग इंस्टीट्यूट में व्यवस्था बनाने की बात करने का दिखावा भी करते हैं, उनकी रुचि भी व्यवस्था को ठीक करने में नहीं है । मजे की बात है कि काउंसिल के कई सदस्य हैं, जो सोशल मीडिया में दिन-रात मोदी, केजरीवाल, राहुल गांधी तो करते रहेंगे - लेकिन मजाल है कि इंस्टीट्यूट की अव्यवस्था पर कभी एक भी शब्द लिख/बोल दें । दरअसल यही कारण है कि वर्षों से उत्तर पुस्तिकाओं की उचित तरीके से जाँच करने की माँग को लगातार अनदेखा किया जा रहा है । इंस्टीट्यूट की प्रशासनिक व्यवस्था में परीक्षा प्रणाली में सुधार को लेकर कभी-कभार सुझाव तो माँगे/लिए/दिए गए हैं, लेकिन मामला उससे आगे नहीं बढ़ा है - और समस्या व शिकायत जहाँ की तहाँ ही बनी हुई है ।
चार्टर्ड एकाउंटेंट छात्रों की बड़ी छोटी सी माँग है कि वह यदि अपनी उत्तर पुस्तिका की जाँच से संतुष्ट नहीं हैं, तो उन्हें अपनी उत्तर पुस्तिका का पुनर्मूल्यांकन करवाने का अधिकार मिले । उल्लेखनीय है कि देश के सभी बड़े कॉलिजों/विश्वविद्यालयों तथा परीक्षा बोर्डों में छात्रों को अपनी उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करवाने का अधिकार प्राप्त है । लेकिन इंस्टीट्यूट प्रशासन लगातार इस जिद पर अड़ा हुआ है कि उसके यहाँ एक बार उत्तर पुस्तिका की जाँच हो गई, तो फिर उसमें दिए गए नंबर ही मान्य होंगे तथा उत्तर पुस्तिका का कोई पुनर्मूल्यांकन नहीं होगा । दरअसल पिछले वर्षों में जिन कुछेक छात्रों ने आरटीआई कानून का इस्तेमाल करके और या अन्य तरीकों से अपनी उत्तर पुस्तिकाओं को और उसके हुए मूल्यांकन को देखा है, वह यह देख कर हैरान रह गए कि उनके सही उत्तरों को भी गलत बता दिया गया है, जिसके चलते उनके नंबर कम रह गए और वह फेल हो गए । इंस्टीट्यूट प्रशासन लेकिन न तो इस पर कोई कार्रवाई करने के लिए तैयार होता है, और न ही यह सुनिश्चित करने के लिए राजी होता और न कोई प्रयास करता है कि आगे से ऐसा नहीं होगा । इंस्टीट्यूट प्रशासन के इस रवैये के चलते चार्टर्ड एकाउंटेंट छात्र वर्षों से 'ठगे' जा रहे हैं और शिकार बन रहे हैं ।
दुर्भाग्य की बात यह है कि छात्रों की इस बेहद उचित व सामान्य सी माँग को पूरा करने/करवाने में किसी की दिलचस्पी नहीं है । इंस्टीट्यूट की राजनीति में कामयाब होने के लिए छात्रों की क्लासेस में जाकर अपना थोबड़ा दिखाने और भाषण पेलने के मौके बनाने की तिकड़में लगाने वाले और जीएमसीएस में फैकल्टी लगने/लगाने के जुगाड़ में लगे रहने वाले लोगों की तरफ से इंस्टीट्यूट की परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रयास करने की बात तो छोड़िये, आज जब छात्र सड़क पर उतर कर आंदोलन करने को मजबूर हुए हैं - तब उनका समर्थन करने से भी वह मुँह छिपाते फिर रहे हैं । यह हाल तब है जबकि मीटिंग्स के नाम पर देश के पर्वतीय व पर्यटनीय क्षेत्रों व विदेशी दौरों का तथा दूसरे मौज-मजों का काउंसिल सदस्यों का खर्च छात्रों से मिलने वाली फीस से जुटता है । छात्रों और उनके हितों के साथ काउंसिल सदस्यों द्वारा किए जाने वाले विश्वासघात का यह प्रसंग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए एक सबक भी है । जो आज चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं, वह यदि इस बात का ध्यान रखें कि वह कभी छात्र भी थे और इसके चलते चुनाव के समय वोट मांगने आने वाले उम्मीदवारों को वह जरा कर्रे से लें, तो काउंसिल सदस्यों की बेशर्मी और निर्लज्जता पर लगाम लग सकेगी और तब छात्रों के साथ न्याय हो सकेगा ।