Monday, September 16, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अशोक कंतूर की डिस्ट्रिक्ट को 'बंद' करवा देने की धमकी, अजीत जालान की 'बनिया कार्ड' की राजनीति तथा महेश त्रिखा की निश्चिंतता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के सीन को सी-ग्रेड हिंदी फिल्म के नाटक जैसा बना दिया है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव दूसरे वर्ष भी हारने की स्थिति में डिस्ट्रिक्ट 'बंद' करवा देने की अशोक कंतूर की धमकी तथा बनिया प्रेसीडेंट्स के भरोसे चुनाव जीतने की अजीत जालान की घोषणा ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासा ड्रामा पैदा कर दिया है । तीसरी तरफ महेश त्रिखा को उम्मीद है कि इन दोनों की आपसी लड़ाई उन्हें आसानी से जीत दिलवा देगी । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी परिदृश्य किसी सी-ग्रेड हिंदी फिल्म का सा आभास देता हुआ लग रहा है; जिसमें रोना-धोना है, साजिशें हैं, धमकियाँ हैं, चलताऊ किस्म के हथकंडे हैं, अच्छे-अच्छे सपने हैं - यानि फूहड़ किस्म के मनोरंजन का पूरा पूरा सामान है । सबसे धमाकेदार घोषणा अशोक कंतूर ने की हुई है । कुछेक लोगों से उन्होंने साफ कहा है कि इस बार भी वह यदि चुनाव नहीं जीते, तो डिस्ट्रिक्ट में हो रही गड़बड़ियों व बेईमानियों की वह पोल खोलेंगे और जिसके चलते हो सकता है कि रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में ही डाल दे । अशोक कंतूर दरअसल उन पूर्व गवर्नर्स नेताओं से बहुत खफा हैं, जो पिछले वर्ष तो उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में थे, लेकिन इस वर्ष उनकी उम्मीदवारी में  दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं ।अशोक कंतूर का कहना है कि उनके पास सभी गवर्नर्स की कारस्तानियों का कच्चा-चिट्ठा है, और यदि गवर्नर्स का समर्थन न मिलने के कारण वह चुनाव हारे - तो वह सभी की शिकायत रोटरी इंटरनेशनल में करेंगे । उनका कहना है कि उनके पास गड़बड़ियों व बेईमानियों के जो तथ्य हैं, वह इतने गंभीर हैं कि उन्हें देख/जान कर रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट को सस्पेंड भी कर सकता है ।
अजीत जालान ने अपनी जीत का जो फार्मूला लोगों को बताया है, वह भी लोगों का खासा मनोरंजन कर रहा है । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में करीब सत्तर प्रतिशत क्लब्स के प्रेसीडेंट बनिए हैं, इनमें से यदि कुछेक ने उन्हें धोखा दिया भी तो भी उन्हें इतने प्रेसीडेंट्स तो वोट दे ही देंगे जो उनकी जीत को सुनिश्चित करेंगे । अजीत जालान का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई जानता है कि वह पूर्व गवर्नर विनोद बंसल के उम्मीदवार हैं, जो कि पंजाब के बनिए हैं और इस तरह वह उन्हें बनियों के साथ-साथ पंजाबियों का भी समर्थन मिलेगा और ऐसे में उन्हें भला कौन हरा सकेगा ? इस तरह की बातें करने पर अजीत जालान से कुछेक लोगों ने हालाँकि पूछा भी कि पिछले रोटरी वर्ष में उन्हें यह जरूरी नहीं लगता था क्या कि बनिए प्रेसीडेंट्स को बनिया उम्मीदवार को वोट देना चाहिए; पिछले वर्ष तो वह बनिए प्रेसीडेंट्स पर दबाव बना रहे थे कि वह पंजाबी उम्मीदवार को वोट दें ? इस सवाल पर कहीं चुप रह कर तो कहीं यह कहते हुए अजीत जालान ने अपने आप को 'बचाया' कि पिछले वर्ष की बात अलग थी । पिछले रोटरी वर्ष में अशोक कंतूर की हार के लिए अजीत जालान ने बनिया बहुल रोहतक क्षेत्र के रोटेरियंस को खूब कोसा था और उन पर धोखा देने का आरोप लगाया था । अजीत जालान ने कई लोगों को कहा/बताया है कि उनकी तथा उनके समर्थक नेताओं की तरफ से कोशिशें हो रही हैं कि इस बार रोहतक के क्लब्स के पदाधिकारी उनकी उम्मीदवारी के साथ धोखाधड़ी न कर सकें । कहीं कहीं अजीत जालान ने यह भी कहा है कि उन्हें तो उनके नेता जैसा कहने को कहते हैं, वह वैसा ही लोगों के बीच कहने लगते हैं । इससे लोगों को यह भी लग रहा है कि 'बनिया कार्ड' अजीत जालान का दिमागी फितूर नहीं है, बल्कि उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की सोची-समझी रणनीति है ।
अशोक कंतूर व अजीत जालान को अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर आक्रामक रवैया अपनाते देख महेश त्रिखा अपनी उम्मीदवारी को लेकर निश्चिंत हुए जा रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि यह दोनों जितना ज्यादा सक्रिय होंगे, उतना ही एक दूसरे को नुकसान पहुँचायेंगे और इस तरह उनकी उम्मीदवारी के लिए रास्ते को आसान बनायेंगे । महेश त्रिखा और उनके समर्थक दरअसल पहले इस बात से डरे हुए थे कि अशोक कंतूर व अजीत जालान के बीच कहीं समझौता न हो जाए; उन्हें डर था कि यदि इन दोनों में से कोई एक उम्मीदवार रहा तो सीधे मुकाबले में महेश त्रिखा के लिए चुनाव निकालना मुश्किल हो सकता है - लेकिन जैसे जैसे यह साफ होता जा रहा है कि अशोक कंतूर के साथ-साथ अजीत जालान भी उम्मीदवार रहेंगे, वैसे वैसे महेश त्रिखा तथा उनके समर्थकों को अपना काम आसान होता नजर आ रहा है । महेश त्रिखा और उनके समर्थकों का गणित है कि पिछले रोटरी वर्ष में अशोक कंतूर व अजीत जालान की मिलीजुली 'ताकत' जब अशोक कंतूर को चुनाव नहीं जितवा सकी थी, तब अलग अलग होकर यह दोनों क्या पा लेंगे ? दूसरे लोगों को भी लगता है कि महेश त्रिखा का यदि अशोक कंतूर से सीधा मुकाबला हो रहा होता, तो अशोक कंतूर को सहानुभूति का फायदा मिल सकता था, लेकिन अजीत जालान की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से उस फायदे की उम्मीद पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के साथ रवि चौधरी वाली 'बीमारी' भी लगी हुई है । अशोक कंतूर को रवि चौधरी के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है और माना जाता है कि रवि चौधरी की हरकतों के चलते अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को नुकसान हुआ था । रवि चौधरी की हरकतें बदस्तूर जारी हैं और अभी हाल ही में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा के पेम वन कार्यक्रम में कई गवर्नर्स को जिस तरह से अपमानित होना पड़ा, उसके लिए संजीव राय मेहरा के साथ-साथ उनके डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में रवि चौधरी को भी जिम्मेदार ठहराया गया है । समझा जाता है कि इस तरह की बातों से अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को नुकसान होगा । सचमुच में क्या होगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन जिस तरह की बातें हो रही हैं, उसके चलते लोगों का फिलहाल मनोरंजन खूब हो रहा है ।