नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 3020 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सैम राव मोव्वा के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से सिर्फ उनके प्रतिद्वंद्वी विनय कुलकर्णी को ही झटका नहीं लगा है, बल्कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता तथा उनके सहारे रोटरी की राजनीति व प्रशासनिक व्यवस्था में ऊँची छलाँग लगाने के मंसूबे बाँधने वाले रोटेरियंस को भी तगड़ा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि रोटरी में प्रत्येक स्तर की चुनावी राजनीति उम्मीदवारों की बजाये वास्तव में खेमों की राजनीति होती है और चुनावी हार-जीत को खेमों की हार-जीत के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । कभी-कभार कोई उम्मीदवार अपने आप को खेमे से 'बड़ा' साबित कर देता है, लेकिन यह कभी-कभार ही हो पाता है - और उसके 'बड़े' साबित होने में भी कुल मिलाकर खेमे की ही भूमिका देखी/मानी जाती है । इसी तर्ज पर जोन 7 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में विनय कुलकर्णी को उस खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, जिसके नेताओं के रूप में कल्याण बनर्जी व सुशील गुप्ता को देखा/पहचाना जाता रहा है और शेखर मेहता भी जिसके एक प्रमुख सदस्य रहे हैं । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने के चलते शेखर मेहता की पहचान ने एकदम से ऊँची छलाँग लगाई और खेमे को उनके नाम से भी जाना/पहचाना जाने लगा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने से खेमे के लोगों में एक नई जान पड़ी और उन्हें विश्वास हुआ कि अब वह जोन 7 में विनय कुलकर्णी को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए आसानी से 'चुनवा' लेंगे ।
इसीलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने हेतु होने वाली मीटिंग से चार दिन पहले कोलकाता में हुए रोटरी इंडिया लिटरेसी मिशन के आयोजन को विनय कुलकर्णी की जीत को आसान बनाने के 'उपाय' के रूप में ही देखा/पहचाना गया और आरोपित किया गया । यह दरअसल आयोजन में विनय कुलकर्णी की उपस्थिति के कारण हुआ । आयोजन में रोटरी इंटरनेशनल के तमाम बड़े पदाधिकारी थे - इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी थे, पूर्व व मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर्स थे और फ्यूचर इंटरनेशनल डायरेक्टर्स की तो खासी भीड़ थी; लेकिन किसी की अक्ल में यह जरा सी बात नहीं आई कि रोटरी में चुनावी आचार संहिता नाम की एक व्यवस्था है, जिसकी मन से आप भले ही परवाह न करते हों, लेकिन 'दिखावे' के लिए तो कम से कम उसकी इज्जत कर लो - और उम्मीदवार होने के नाते विनय कुलकर्णी को आयोजन के मंच से दूर रखो । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों की मौजूदगी में रोटरी इंडिया लिटरेसी मिशन के आयोजन में चुनावी आचार संहिता की जिस तरह से धज्जियाँ उड़ी देखी गईं, उससे खासा बबाल हो गया । कोढ़ में खाज वाली बात यह हो गई कि इतने सब के बाद भी जोन 7 में नोमीनेटिंग कमेटी ने विनय कुलकर्णी को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए नहीं चुना ।
विनय कुलकर्णी की इस असफलता ने शेखर मेहता के सहारे रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में ऊँची छलाँग लगाने की तैयारी करने वाले रोटेरियंस को खासी चोट पहुँचाई है । उल्लेखनीय है कि शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाते ही, रोटरी में बड़े पद पाने की जुगाड़ में लगे रहने वाले कुछेक रोटेरियंस ने शेखर मेहता के साथ अपनी नजदीकी का वास्ता देकर रोटरी में 'जो चाहेंगे, वह पा लेंगे' जैसे दावे करने शुरू कर दिए । जब तक सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी थे, तब तक यह सुशील गुप्ता के यहाँ सुबह-शाम हाजिरी लगाते थे, अब इन्होंने शेखर मेहता के नाम की माला जपना शुरू कर दिया है । रोटरी में जो कोई भी प्रभावी होता है, या दिखता है - यह उसके आसपास मँडराना शुरू कर देते हैं । शेखर मेहता दरअसल अभी ऐसे लोगों को हैंडल नहीं कर पा रहे हैं, और इसलिए ऐसे लोग अपने स्वार्थ में शेखर मेहता के लिए तरह तरह से मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं । रोटरी के 'चोर-उचक्कों', यहाँ तक कि रोटरी से सजा पाए रोटेरियंस ने तथा जल्दी से जल्दी कुछ भी करके बड़े पद पाने की इच्छा रखने वाले रोटेरियंस ने - इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाते ही शेखर मेहता के नजदीक 'दिखने' तथा अपने आपको उनके नजदीक बताने की जो तत्परता दिखाई है, और ऐसे रोटेरियंस ने जिस तरह से शेखर मेहता को घेर लिया है, उससे शेखर मेहता को सिर्फ बदनामी ही मिल रही है । शेखर मेहता से हमदर्दी रखने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि शेखर मेहता ने यदि ऐसे लोगों से 'निपटना' नहीं सीखा तो मुसीबत में ही फँसेंगे । विनय कुलकर्णी को लेकर पिछले पाँच/छह दिनों में जो तमाशा हुआ, और कुछ हासिल भी नहीं हुआ - वह एक सबक भी है ।
इसीलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने हेतु होने वाली मीटिंग से चार दिन पहले कोलकाता में हुए रोटरी इंडिया लिटरेसी मिशन के आयोजन को विनय कुलकर्णी की जीत को आसान बनाने के 'उपाय' के रूप में ही देखा/पहचाना गया और आरोपित किया गया । यह दरअसल आयोजन में विनय कुलकर्णी की उपस्थिति के कारण हुआ । आयोजन में रोटरी इंटरनेशनल के तमाम बड़े पदाधिकारी थे - इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी थे, पूर्व व मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर्स थे और फ्यूचर इंटरनेशनल डायरेक्टर्स की तो खासी भीड़ थी; लेकिन किसी की अक्ल में यह जरा सी बात नहीं आई कि रोटरी में चुनावी आचार संहिता नाम की एक व्यवस्था है, जिसकी मन से आप भले ही परवाह न करते हों, लेकिन 'दिखावे' के लिए तो कम से कम उसकी इज्जत कर लो - और उम्मीदवार होने के नाते विनय कुलकर्णी को आयोजन के मंच से दूर रखो । रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों की मौजूदगी में रोटरी इंडिया लिटरेसी मिशन के आयोजन में चुनावी आचार संहिता की जिस तरह से धज्जियाँ उड़ी देखी गईं, उससे खासा बबाल हो गया । कोढ़ में खाज वाली बात यह हो गई कि इतने सब के बाद भी जोन 7 में नोमीनेटिंग कमेटी ने विनय कुलकर्णी को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए नहीं चुना ।
विनय कुलकर्णी की इस असफलता ने शेखर मेहता के सहारे रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में ऊँची छलाँग लगाने की तैयारी करने वाले रोटेरियंस को खासी चोट पहुँचाई है । उल्लेखनीय है कि शेखर मेहता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाते ही, रोटरी में बड़े पद पाने की जुगाड़ में लगे रहने वाले कुछेक रोटेरियंस ने शेखर मेहता के साथ अपनी नजदीकी का वास्ता देकर रोटरी में 'जो चाहेंगे, वह पा लेंगे' जैसे दावे करने शुरू कर दिए । जब तक सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी थे, तब तक यह सुशील गुप्ता के यहाँ सुबह-शाम हाजिरी लगाते थे, अब इन्होंने शेखर मेहता के नाम की माला जपना शुरू कर दिया है । रोटरी में जो कोई भी प्रभावी होता है, या दिखता है - यह उसके आसपास मँडराना शुरू कर देते हैं । शेखर मेहता दरअसल अभी ऐसे लोगों को हैंडल नहीं कर पा रहे हैं, और इसलिए ऐसे लोग अपने स्वार्थ में शेखर मेहता के लिए तरह तरह से मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं । रोटरी के 'चोर-उचक्कों', यहाँ तक कि रोटरी से सजा पाए रोटेरियंस ने तथा जल्दी से जल्दी कुछ भी करके बड़े पद पाने की इच्छा रखने वाले रोटेरियंस ने - इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाते ही शेखर मेहता के नजदीक 'दिखने' तथा अपने आपको उनके नजदीक बताने की जो तत्परता दिखाई है, और ऐसे रोटेरियंस ने जिस तरह से शेखर मेहता को घेर लिया है, उससे शेखर मेहता को सिर्फ बदनामी ही मिल रही है । शेखर मेहता से हमदर्दी रखने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि शेखर मेहता ने यदि ऐसे लोगों से 'निपटना' नहीं सीखा तो मुसीबत में ही फँसेंगे । विनय कुलकर्णी को लेकर पिछले पाँच/छह दिनों में जो तमाशा हुआ, और कुछ हासिल भी नहीं हुआ - वह एक सबक भी है ।