गाजियाबाद । अजय सिन्हा की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में सक्रियता दिखाने के कारण उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब साहिबाबाद - के कई सदस्य हैरान हुए हैं । उनका कहना है कि क्लब में निवर्त्तमान प्रेसीडेंट राकेश छारिया को अगले दो/तीन वर्ष में उम्मीदवार बनाने की बात चल रही है, हालाँकि राकेश छारिया उम्मीदवार बनने से इंकार कर रहे हैं - लेकिन क्लब के सदस्यों को उम्मीद है कि वह राकेश छारिया को उम्मीदवारी के लिए राजी कर लेंगे । क्लब के सदस्यों का कहना है कि इसीलिए उन्हें हैरानी है कि अजय सिन्हा अपनी उम्मीदवारी को बीच में कहाँ ले आए हैं ? क्लब के कुछेक सदस्यों का तो यहाँ तक कहना है कि अजय सिन्हा दरअसल राकेश छारिया की उम्मीदवारी की संभावना को रोकने के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात करने लगे हैं; उन्हें डर है कि लोगों के दबाव के चलते कहीं राकेश छारिया ने अपना मन बदल लिया और उम्मीदवार बनने के लिए राजी हो गए - तो उनके लिए तो रास्ता बंद ही हो जायेगा । मजे की बात यह है कि अजय सिन्हा पिछले वर्षों में दो/तीन बार अपनी उम्मीदवारी को लेकर उत्सुकता दिखा चुके हैं - लेकिन वास्तव में वह उम्मीदवार कभी नहीं बने । किन्हीं किन्हीं मौकों पर उनकी तरफ से सुना गया कि उम्मीदवार की सक्रियता को वह समय और पैसे की बर्बादी समझते/मानते हैं, इसलिए ही इच्छा रखने के बावजूद वह उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की हिम्मत नहीं कर सके । वास्तव में, इसीलिए क्लब के सदस्यों ने उम्मीद छोड़ दी थी कि अजय सिन्हा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी पचड़े में कभी पड़ेंगे - और इसी कारण से अजय सिन्हा के उम्मीदवार के रूप में 'टेलीफोनिक सक्रियता' दिखाने पर क्लब के सदस्यों को हैरानी है ।
अजय सिन्हा की उम्मीदवारी ने उनके नजदीकियों को भी आश्चर्य में डाला है । नजदीकियों के अनुसार, अजय सिन्हा की अपने प्रोफेशन में जैसी सक्रियता है, उसके चलते उनके पास रोटरी की चुनावी प्रक्रिया के लिए समय निकाल पाना संभव ही नहीं है । रोटरी में काम करना एक अलग बात है, लेकिन एक उम्मीदवार से होने वाली अपेक्षाओं को पूरा कर पाना उनके लिए बहुत ही मुश्किल है । नजदीकियों का कहना है कि असल में उन मुश्किलों का ख्याल करके ही अजय सिन्हा पिछले वर्षों में उम्मीदवार बनने की ओर बढ़ते कदमों को फिर वापस पीछे खींचते रहे हैं । इस बात को जानते/पहचानते रहे नजदीकियों को इसीलिए आश्चर्य है कि इस बार आखिर अजय सिन्हा ने उम्मीदवार बनने का फैसला क्या सोच कर, कर लिया है ? कई लोगों को लग रहा है कि अजय सिन्हा ने शायद यह सोचा होगा कि कोरोना के प्रकोप के चलते बने हालात में चूँकि मिलने/जुलने तथा इकट्ठा होने की स्थितियाँ नहीं बनेंगी, इसलिए इस बार उम्मीदवार को लोगों की अपेक्षाओं का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ेगा - और इस कारण से इस बार चुनाव लड़ना आसान होगा और पैसा भी खर्च नहीं होगा, इसलिए वह चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं ।
अजय सिन्हा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि एक तरफ तो उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है, और दूसरी तरफ उनके अपने क्लब के सदस्य उनकी उम्मीदवारी को राकेश छारिया की उम्मीदवारी का रास्ता रोकने की कोशिश के रूप में देख और प्रचारित कर रहे हैं । पिछले रोटरी वर्ष में, प्रेसीडेंट के रूप में राकेश छारिया के कामों की चूँकि व्यापक तारीफ हुई है और उन्हें कई अवॉर्ड मिले हैं - इसलिए उनके अपने क्लब में भी और डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स के लोगों के बीच भी चर्चा चली है कि अगले दो/तीन वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए राकेश छारिया को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार करना चाहिए । अजय सिन्हा के उम्मीदवार बन जाने से लेकिन राकेश छारिया को उम्मीदवार बनने/बनाने की तैयारी करने वाले लोगों को झटका लगा है । लोगों का कहना है कि अजय सिन्हा की कोशिश दरअसल यह है कि आने वाले वर्षों में उनके क्लब से कोई और उम्मीदवार न बन सके । लोगों का कहना है कि अजय सिन्हा को यदि सचमुच उम्मीदवार बनना होता, तो पिछले वर्षों में वह बन गए होते; वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर यदि इस बार भी गंभीर होते, तो पहले से उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने का काम शुरू करते - लेकिन उन्होंने अब जब देखा कि कोरोना के प्रकोप के चलते हालात जल्दी सुधरने वाले नहीं हैं, और ऐसे में उम्मीदवार के रूप में उन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ेगा, तो वह उम्मीदवार बन गए हैं । लोगों के बीच इस तरह की 'सोच' होने के कारण कोई भी अजय सिन्हा की उम्मीदवारी को गंभीरता से लेता नहीं दिख रहा है, और अचानक से अपनी उम्मीदवारी को लेकर बनी अजय सिन्हा की सक्रियता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में कोई हलचल पैदा करती हुई नहीं लग रही है ।
अजय सिन्हा की उम्मीदवारी ने उनके नजदीकियों को भी आश्चर्य में डाला है । नजदीकियों के अनुसार, अजय सिन्हा की अपने प्रोफेशन में जैसी सक्रियता है, उसके चलते उनके पास रोटरी की चुनावी प्रक्रिया के लिए समय निकाल पाना संभव ही नहीं है । रोटरी में काम करना एक अलग बात है, लेकिन एक उम्मीदवार से होने वाली अपेक्षाओं को पूरा कर पाना उनके लिए बहुत ही मुश्किल है । नजदीकियों का कहना है कि असल में उन मुश्किलों का ख्याल करके ही अजय सिन्हा पिछले वर्षों में उम्मीदवार बनने की ओर बढ़ते कदमों को फिर वापस पीछे खींचते रहे हैं । इस बात को जानते/पहचानते रहे नजदीकियों को इसीलिए आश्चर्य है कि इस बार आखिर अजय सिन्हा ने उम्मीदवार बनने का फैसला क्या सोच कर, कर लिया है ? कई लोगों को लग रहा है कि अजय सिन्हा ने शायद यह सोचा होगा कि कोरोना के प्रकोप के चलते बने हालात में चूँकि मिलने/जुलने तथा इकट्ठा होने की स्थितियाँ नहीं बनेंगी, इसलिए इस बार उम्मीदवार को लोगों की अपेक्षाओं का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ेगा - और इस कारण से इस बार चुनाव लड़ना आसान होगा और पैसा भी खर्च नहीं होगा, इसलिए वह चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं ।
अजय सिन्हा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि एक तरफ तो उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है, और दूसरी तरफ उनके अपने क्लब के सदस्य उनकी उम्मीदवारी को राकेश छारिया की उम्मीदवारी का रास्ता रोकने की कोशिश के रूप में देख और प्रचारित कर रहे हैं । पिछले रोटरी वर्ष में, प्रेसीडेंट के रूप में राकेश छारिया के कामों की चूँकि व्यापक तारीफ हुई है और उन्हें कई अवॉर्ड मिले हैं - इसलिए उनके अपने क्लब में भी और डिस्ट्रिक्ट के दूसरे क्लब्स के लोगों के बीच भी चर्चा चली है कि अगले दो/तीन वर्षों में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए राकेश छारिया को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार करना चाहिए । अजय सिन्हा के उम्मीदवार बन जाने से लेकिन राकेश छारिया को उम्मीदवार बनने/बनाने की तैयारी करने वाले लोगों को झटका लगा है । लोगों का कहना है कि अजय सिन्हा की कोशिश दरअसल यह है कि आने वाले वर्षों में उनके क्लब से कोई और उम्मीदवार न बन सके । लोगों का कहना है कि अजय सिन्हा को यदि सचमुच उम्मीदवार बनना होता, तो पिछले वर्षों में वह बन गए होते; वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर यदि इस बार भी गंभीर होते, तो पहले से उम्मीदवारी के लिए माहौल बनाने का काम शुरू करते - लेकिन उन्होंने अब जब देखा कि कोरोना के प्रकोप के चलते हालात जल्दी सुधरने वाले नहीं हैं, और ऐसे में उम्मीदवार के रूप में उन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ेगा, तो वह उम्मीदवार बन गए हैं । लोगों के बीच इस तरह की 'सोच' होने के कारण कोई भी अजय सिन्हा की उम्मीदवारी को गंभीरता से लेता नहीं दिख रहा है, और अचानक से अपनी उम्मीदवारी को लेकर बनी अजय सिन्हा की सक्रियता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में कोई हलचल पैदा करती हुई नहीं लग रही है ।