नई दिल्ली । अगले वर्ष होने वाले इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके संजय अग्रवाल ने लॉकडाउन के कारण ठंडी पड़ी इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है, और सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्य संजीव सिंघल के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी संजीव सिंघल के लिए सीधा खतरा दरअसल वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट गिरीश आहुजा के कारण बनी है । संजीव सिंघल मौजूदा सेंट्रल काउंसिल में वास्तव में गिरीश आहुजा के सक्रिय समर्थन के कारण ही हैं; और इन्हीं गिरीश आहुजा के सक्रिय समर्थन के कारण संजय अग्रवाल लगातार तीन टर्म सेंट्रल काउंसिल में रहे हैं । अगले चुनाव में गिरीश आहुजा का समर्थन किसे मिलेगा, यह तो गिरीश आहुजा ही तय करेंगे और बतायेंगे/दिखाएंगे - लेकिन लोगों को यह जरूर लग रहा है कि संजय अग्रवाल के भी चुनावी मैदान में होने के कारण गिरीश आहुजा अगले चुनाव में संजीव सिंघल का वैसी सक्रियता से तो समर्थन नहीं ही कर सकेंगे, जैसी सक्रियता से उन्होंने पिछले चुनाव में किया था । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कई लोगों को तो यह भी लगता है कि गिरीश आहुजा से हरी झंडी मिलने के बाद ही संजय अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की होगी, और इसलिए संजीव सिंघल को अगली बार गिरीश आहुजा का समर्थन मिलना मुश्किल ही होगा - और इस कारण उनके लिए सेंट्रल काउंसिल में वापसी कर पाना खासा कठिन हो सकता है ।
इस आशंका को दरअसल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच संजीव सिंघल के प्रति बढ़ती नाराजगी और शिकायत के कारण भी बल और चर्चा मिल रही है । उल्लेखनीय है कि संजीव सिंघल के प्रति चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की आम शिकायत है कि उम्मीदवार के रूप में तो वह बड़ा भला सा व्यवहार करते थे और खुशामदी टोन में रहते थे, लेकिन चुनाव जीतते ही उनका रूप पूरी तरह बदल गया और उनका रवैया अहंकारी किस्म का हो गया - वह अपनी समस्याएँ लेकर आने वाले तथा उनकी मदद चाहने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से मिलने और बात करने से बचने लगे; यहाँ तक कि वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के फोन भी नहीं उठाते, और कॉल बैक भी नहीं करते । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को तो छोड़िये, वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रति भी संजीव सिंघल ने यही रवैया दिखाया । वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने संजीव सिंघल के इस रवैये की शिकायत गिरीश आहुजा से भी की और उन्हें उलाहना दिया कि आपने कैसे व्यक्ति का वोट दिलवा दिए और सेंट्रल काउंसिल में पहुँचवा दिया है, जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की समस्याओं व मुश्किलों को सुनने और हल करवाने में कोई दिलचस्पी ही नहीं लेते हैं, और यहाँ तक कि फोन भी नहीं उठाते हैं । भुक्तभोगियों का कहना/बताना रहा है कि संजीव सिंघल के रवैये पर गिरीश आहुजा ने भी नाराजगी दिखाई, और माना कि संजीव सिंघल के इस रवैये के चलते उनकी साख व विश्वसनीयता को भी चोट पहुँची है । गिरीश आहुजा को यह देख/जान कर और झटका लगा कि उनके हस्तक्षेप के बाद संजीव सिंघल ने कुछेक वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को कॉल बैक तो की, लेकिन उनके रवैये में कोई सुधार होता हुआ नहीं हुआ ।
संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी की पृष्ठभूमि में संजीव सिंघल के इसी रवैये और उनके रवैये के प्रति गिरीश आहुजा की नाराजगी को समझा/पहचाना जा रहा है । दरअसल कोई भी यह मानने तैयार नहीं है कि गिरीश आहुजा से हरी झंडी मिले बिना संजय अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी है । लोगों को लग रहा है कि पर्दे के पीछे जरूर ही कोई खिचड़ी पकी है । संजय अग्रवाल के व्यवहार से भी इस बात को बल मिला है । उल्लेखनीय है कि पिछला चुनाव होने के बाद से संजय अग्रवाल लगातार सक्रिय हैं और विभिन्न ब्रांचेज में आयोजित होने वाले सेमिनार्स में शामिल होते रहे हैं । उनकी सक्रियता देख/जान कर अगले चुनाव में उनके उम्मीदवार होने को लेकर सवाल उठने लगे थे - लेकिन संजय अग्रवाल लगातार अपनी उम्मीदवारी से इंकार कर रहे थे । उनके नजदीकियों का हालाँकि कहना/बताना था कि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर संजय अग्रवाल का मन भी है और उनकी तैयारी भी है, लेकिन अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने से पहले वह अपने कुछेक 'बड़े समर्थकों' से आश्वासन ले लेना चाहते हैं । इसी आधार पर माना/समझा जा रहा है कि 'बड़े समर्थकों' की तरफ से आश्वस्त हो लेने के बाद ही संजय अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है । संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी ने संजीव सिंघल के लिए भले ही मुसीबत खड़ी कर दी है, लेकिन इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के अनुसार - खुद संजय अग्रवाल के लिए भी सेंट्रल काउंसिल में वापसी करना आसान नहीं होगा । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए पहली जीत संजय अग्रवाल को बहुत मामूली अंतर से मिली थी, लेकिन दूसरी जीत उनके लिए बहुत शानदार रही थी - किंतु तीसरी जीत उन्हें बहुत झटके के साथ मिली थी; तीसरी जीत में उनकी पोजीशन जिस तरह से पिछड़ी थी, उससे वह खुद बहुत निराश हुए थे । ऐसे में, एक तरफ तो उन्हें यह जानना/समझना है कि सेंट्रल काउंसिल में होते हुए तथा प्रभावी तरीके से परफॉर्म करने के बावजूद उनके वोट ज्यादा बढ़े क्यों नहीं - और दूसरी तरफ नए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ कनेक्ट होने की चुनौती उनके सामने है । संजय अग्रवाल के नजदीकियों और समर्थकों का कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की चुनौतियों का उन्हें आभास है, और इसीलिए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा पहले से कर दी है ।
इस आशंका को दरअसल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच संजीव सिंघल के प्रति बढ़ती नाराजगी और शिकायत के कारण भी बल और चर्चा मिल रही है । उल्लेखनीय है कि संजीव सिंघल के प्रति चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की आम शिकायत है कि उम्मीदवार के रूप में तो वह बड़ा भला सा व्यवहार करते थे और खुशामदी टोन में रहते थे, लेकिन चुनाव जीतते ही उनका रूप पूरी तरह बदल गया और उनका रवैया अहंकारी किस्म का हो गया - वह अपनी समस्याएँ लेकर आने वाले तथा उनकी मदद चाहने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से मिलने और बात करने से बचने लगे; यहाँ तक कि वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के फोन भी नहीं उठाते, और कॉल बैक भी नहीं करते । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को तो छोड़िये, वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रति भी संजीव सिंघल ने यही रवैया दिखाया । वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने संजीव सिंघल के इस रवैये की शिकायत गिरीश आहुजा से भी की और उन्हें उलाहना दिया कि आपने कैसे व्यक्ति का वोट दिलवा दिए और सेंट्रल काउंसिल में पहुँचवा दिया है, जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की समस्याओं व मुश्किलों को सुनने और हल करवाने में कोई दिलचस्पी ही नहीं लेते हैं, और यहाँ तक कि फोन भी नहीं उठाते हैं । भुक्तभोगियों का कहना/बताना रहा है कि संजीव सिंघल के रवैये पर गिरीश आहुजा ने भी नाराजगी दिखाई, और माना कि संजीव सिंघल के इस रवैये के चलते उनकी साख व विश्वसनीयता को भी चोट पहुँची है । गिरीश आहुजा को यह देख/जान कर और झटका लगा कि उनके हस्तक्षेप के बाद संजीव सिंघल ने कुछेक वरिष्ठ व खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को कॉल बैक तो की, लेकिन उनके रवैये में कोई सुधार होता हुआ नहीं हुआ ।
संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी की पृष्ठभूमि में संजीव सिंघल के इसी रवैये और उनके रवैये के प्रति गिरीश आहुजा की नाराजगी को समझा/पहचाना जा रहा है । दरअसल कोई भी यह मानने तैयार नहीं है कि गिरीश आहुजा से हरी झंडी मिले बिना संजय अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी है । लोगों को लग रहा है कि पर्दे के पीछे जरूर ही कोई खिचड़ी पकी है । संजय अग्रवाल के व्यवहार से भी इस बात को बल मिला है । उल्लेखनीय है कि पिछला चुनाव होने के बाद से संजय अग्रवाल लगातार सक्रिय हैं और विभिन्न ब्रांचेज में आयोजित होने वाले सेमिनार्स में शामिल होते रहे हैं । उनकी सक्रियता देख/जान कर अगले चुनाव में उनके उम्मीदवार होने को लेकर सवाल उठने लगे थे - लेकिन संजय अग्रवाल लगातार अपनी उम्मीदवारी से इंकार कर रहे थे । उनके नजदीकियों का हालाँकि कहना/बताना था कि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने को लेकर संजय अग्रवाल का मन भी है और उनकी तैयारी भी है, लेकिन अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने से पहले वह अपने कुछेक 'बड़े समर्थकों' से आश्वासन ले लेना चाहते हैं । इसी आधार पर माना/समझा जा रहा है कि 'बड़े समर्थकों' की तरफ से आश्वस्त हो लेने के बाद ही संजय अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है । संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी ने संजीव सिंघल के लिए भले ही मुसीबत खड़ी कर दी है, लेकिन इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के अनुसार - खुद संजय अग्रवाल के लिए भी सेंट्रल काउंसिल में वापसी करना आसान नहीं होगा । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए पहली जीत संजय अग्रवाल को बहुत मामूली अंतर से मिली थी, लेकिन दूसरी जीत उनके लिए बहुत शानदार रही थी - किंतु तीसरी जीत उन्हें बहुत झटके के साथ मिली थी; तीसरी जीत में उनकी पोजीशन जिस तरह से पिछड़ी थी, उससे वह खुद बहुत निराश हुए थे । ऐसे में, एक तरफ तो उन्हें यह जानना/समझना है कि सेंट्रल काउंसिल में होते हुए तथा प्रभावी तरीके से परफॉर्म करने के बावजूद उनके वोट ज्यादा बढ़े क्यों नहीं - और दूसरी तरफ नए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ कनेक्ट होने की चुनौती उनके सामने है । संजय अग्रवाल के नजदीकियों और समर्थकों का कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की चुनौतियों का उन्हें आभास है, और इसीलिए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा पहले से कर दी है ।