Saturday, June 13, 2020

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता की पद्मश्री पाने की कोशिशों पर, रोटरी के बेईमानों के साथ 'दिखती' उनकी नजदीकी के चलते कहीं पानी न फिर जाए !

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता की केंद्र सरकार के मंत्रियों के नजदीक घूम घूम कर रोटरी 'करने' की सक्रियता को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री पाने के उनके जुगाड़ के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उनके नजदीकियों का तो कहना/बताना है कि शेखर मेहता ने पद्मश्री पाने की पूरी व्यवस्था कर ली है, और कभी भी राष्ट्रपति भवन से उन्हें बुलावा आ सकता है । लेकिन कुछेक लोगों को आशंका है कि रोटरी के तरह तरह के बेईमानों को शेखर मेहता के यहाँ जिस तरह का संरक्षण मिलता 'दिख' रहा है, उसके चलते पद्मश्री पाने की उनकी कोशिशों को झटका भी लग सकता है । शेखर मेहता के कुछेक नजदीकियों के अनुसार, उन्हें बार बार सावधान किया गया है कि रोटरी के बेईमानों से उन्हें दूरी बना कर रखना चाहिए, लेकिन शेखर मेहता ने पता नहीं क्यों इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के बाद शेखर मेहता जब पहली बार कोलकाता एयरपोर्ट पर उतरे थे, तब वहाँ उनके स्वागत में मौजूद रोटेरियंस में वह पूर्व गवर्नर भी कभी उनके दाएँ तो कभी उनके बाएँ खड़े हो कर तस्वीरें खिंचवा रहा था, जो बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर ली गई ग्लोबल ग्रांट की रकम में घपलेबाजी करने के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाया हुआ था । कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स में रोटरी के नियम-कानूनों तथा रोटरी के पैसों का मनमाना इस्तेमाल करने के आरोपियों को बार-बार शेखर मेहता के नजदीक देखा/पहचाना गया । वरिष्ठ रोटेरियंस ने बार-बार माना/कहा कि इस तरह की 'नजदीकियों' से शेखर मेहता की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा - लेकिन शेखर मेहता इस तरह की बातों की परवाह करते हुए कभी नजर नहीं आए ।
ऐसे में, शेखर मेहता के नजदीकियों को डरभरी आशंका यही है कि शेखर मेहता ने जिन बातों की परवाह नहीं की है, कहीं वही बातें पद्मश्री पाने की उनकी कोशिशों में बाधा न बन जाएँ ? शेखर मेहता को लेकिन अपने उद्यम पर भरोसा है ! शायद उन्हें लगता है कि रोटरी में होने वाली बेईमानियों के बारे में जब अधिकतर रोटेरियंस को ही पता नहीं चल पाता है, और कुछ ही किस्से चर्चा में आ पाते हैं - तब सरकार के लोगों को भला कैसे उनके बारे में पता चलेगा ? इसलिए शेखर मेहता का सारा जोर रोटरी के सहारे सरकार के विभिन्न मंत्रियों और प्रमुख सरकारी विभागों के बड़े पदाधिकारियों के साथ संबंध बनाने पर है । इसके लिए उन्होंने पीएम कोविड 19 केयर्स फंड में रोटरी की तरफ से 25 करोड़ देने/दिलवाने का काम भी किया । हालाँकि इसके लिए शेखर मेहता की बड़ी आलोचना भी हुई । कई वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स ने कहा कि रोटरी एक सेवा संगठन है, जो अपने काम के लिए लोगों से, संस्थाओं से व सरकारों से पैसा लेता है - सरकार को पैसा देना उसका उद्देश्य या काम नहीं है; और शेखर मेहता जो कर रहे हैं, वह उल्टी गंगा बहाना है तथा रोटरी को सिर के बल खड़ा करना है । लेकिन पद्मश्री के लिए 'रास्ता बनाने' में लगे शेखर मेहता ने इस तरह की आलोचनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया । उनका सारा ध्यान पद्मश्री पाने पर है । वह इसलिए भी है, क्योंकि उनसे पहले जो भी भारतीय रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बने हैं, उन सभी को पद्मश्री या उससे ऊपर के नागरिक सम्मान मिले हैं ।
उल्लेखनीय है कि कल्याण बनर्जी तथा राजेंद्र उर्फ राजा साबू को देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री मिला हुआ है, जबकि रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने वाले पहले भारतीय नितीश चंद्र लहरी को तो देश का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण मिला था । यहाँ तक कि प्रेसीडेंट न बन पाने वाले, लेकिन प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने गए सुशील गुप्ता भी पद्मश्री से सुशोभित हैं । हालाँकि इन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने और इनके प्रेसीडेंट(नॉमिनी) होने में कोई सीधा संबंध दिखता नहीं है - संयोग सिर्फ इतना ही है कि सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले जो चार रोटेरियन हैं, वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट(नॉमिनी) भी रहे हैं । राजेंद्र उर्फ राजा साबू वर्ष 1991-92 में प्रेसीडेंट थे, पद्मश्री लेकिन उन्हें वर्ष 2006 में मिला; कल्याण बनर्जी प्रेसीडेंट वर्ष 2011-12 में बने, जबकि पद्मश्री उन्हें वर्ष 2009 में ही मिल चुका था । कल्याण बनर्जी को मेडिसिन में काम करने के लिए उक्त सम्मान मिला था, और वह देश के पहले होम्योपैथ हैं, जिन्हें उक्त सम्मान मिला । सुशील गुप्ता इस्तीफा न देते, तो वर्ष 2020-21 में प्रेसीडेंट बनते, लेकिन पद्मश्री से वह 2007 में ही सम्मानित हो चुके हैं । नितीश चंद्र लहरी के साथ जरूर यह संयोग बना कि वर्ष 1962-63 में वह प्रेसीडेंट बने, और 1963 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान मिला । लेकिन नितीश चंद्र लहरी वास्तव में बड़े 'आदमी' थे - उन्होंने नोबेल पुरुस्कार प्राप्त रबीन्द्रनाथ टैगोर के साथ साहित्यिक गतिविधियों में भाग लिया था, और बंगला फिल्मों के उत्थान/विकास में उनका अप्रतिम योगदान था । वह पहली बंगला मोशन फिल्म के निर्माता थे । उनकी सक्रियता और संलग्नता देख कर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्हें यूनाइटेड एस्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ डिफेन्स की आधिकारिक इकाई आर्म्ड फोर्सेस एंटरटेनमेंट का वाइस चेयरमैन बनाया गया था । जाहिर है कि अपनी पहचान के लिए वह रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के मोहताज नहीं थे - और यही कारण है कि उन्हें पद्मभूषण के लिए चुना गया था ।
शेखर मेहता के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यह है कि नितीश चंद्र लहरी के बाद, कोलकाता के वह दूसरे रोटेरियन हैं - जो रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बने हैं । ऐसे में, स्वाभाविक रूप से कोलकाता के लोगों की नजर इस बात पर है कि शेखर मेहता को पद्मभूषण न सही - पद्मश्री भी मिल पाता है, या नहीं । इसीलिए शेखर मेहता रोटरी के बहाने से मंत्रियों के नजदीक होने और रहने के जरिये पद्मश्री पाने की कोशिशों में कोई कोर-कसर तो नहीं छोड़ रहे हैं - बस डर यही है कि रोटरी के बेईमानों के साथ 'दिखती' उनकी नजदीकी कहीं उनकी कोशिशों पर पानी न फेर दे ?