चंडीगढ़ । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने सीओएल प्रतिनिधि पद के लिए टीके रूबी की उम्मीदवारी के लिए 'सेफ पैसेज' बना कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के साथ अपनी नजदीकियत को और मजबूती दे दी है । इनके बीच नजदीकियत की ठोस जमीन हालाँकि तभी तैयार हो गई थी, जब राजा साबू के मेडीकल मिशन के प्रोजेक्ट को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जितेंद्र ढींगरा और डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) के रूप में टीके रूबी ने हरी झंडी दे दी थी । इनके बीच बनती हुई नजदीकियत का एक बड़ा सुबूत यह भी है कि पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके द्वारा डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से अनधिकृत रूप से लिए गए करीब 15 लाख रुपये वापस लेने के लिए तो जितेंद्र ढींगरा ने जमीन-आसमान एक किया हुआ है, लेकिन टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट सर्विस ट्रस्ट से उत्तराखंड के स्कूल प्रोजेक्ट में अनधिकृत रूप से ट्रांसफर किए गए करीब 20 लाख रुपये के तथा रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के करीब तीन करोड़ रुपये के राजा साबू के मामले को वह कतई भूल गए लग रहे हैं । जितेंद्र ढींगरा और टीके रूबी के इन्हीं अहसानों का बदला चुकाने के लिए राजा साबू ने अपने क्लब के पदाधिकारियों को - सीओएल प्रतिनिधि पद के लिए क्लब में पारित हो चुके पूर्व गवर्नर मधुकर मल्होत्रा के नाम के प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय भेजना - भूल जाने को कह दिया, और इस तरह उन्होंने सीओएल प्रतिनिधि के पद पर टीके रूबी के निर्विरोध चुन लिए जाने का रास्ता बना दिया ।
राजा साबू और जितेंद्र ढींगरा व टीके रूबी के पिछली बातों को भूलने और डिस्ट्रिक्ट में एक नई शुरुआत करने के 'खेल' में ताजा शिकार बने मधुकर मल्होत्रा लेकिन थोड़े दुखी हैं । लेकिन उन की समस्या यह है कि वह अपना दुखड़ा ज्यादा 'रो' भी नहीं पा रहे हैं । अपने क्लब के अपने नजदीकियों से यह कहते हुए उन्होंने अपना दुःख हल्का करने का प्रयास जरूर किया है, कि राजा साबू को अपने 'खेल' में उन्हें मोहरा नहीं बनाना चाहिए था । मधुकर मल्होत्रा के साथ, समस्या दरअसल यह हुई कि रोटरी के देशी-विदेशी बड़े नेताओं के बीच यह खबर फैल चुकी थी कि सीओएल प्रतिनिधि के लिए राजा साबू ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है, और उनके नाम का प्रस्ताव उनके क्लब में पास भी हो गया है । लेकिन उनकी उम्मीदवारी का प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय तक नहीं पहुँचा । यह बात जब सामने आई, तो लोगों ने मधुकर मल्होत्रा से पूछा कि आखिर हुआ क्या ? मधुकर मल्होत्रा की तरफ से इसका बड़ा मासूम सा जबाव सुनने को मिला कि उनके क्लब की प्रेसीडेंट सुरिंदर कौर उक्त प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय भेजना भूल गईं । सुरिंदर कौर एक गंभीर और जिम्मेदार अधिकारी के तौर पर जानी/पहचानी जाती हैं । क्लब के संयुक्त उपक्रम रोटरी एंड ब्लड बैंक सोसायटी रिसोर्स सेंटर का कामकाज देखने की जिम्मेदारी राजा साबू ने उन्हें ही सौंपी हुई है । किसी को विश्वास नहीं हो रहा है कि कोई प्रेसीडेंट - और वह भी सुरिंदर कौर जैसी जिम्मेदार प्रेसीडेंट इस तरह के मामले में भूल कर सकती हैं । और फिर चलो, मान लो कि वह सचमुच भूल गईं - तब भी सवाल यह है कि मधुकर मल्होत्रा खुद क्या कर रहे थे ? क्या उन्हें जरूरी नहीं लगा कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर क्लब में पास हुआ प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय पहुँचे - या वह भी भूल गए ?
रोटरी क्लब चंडीगढ़ में चर्चा यही है कि राजा साबू के कहने पर ही सीओएल प्रतिनिधि पद के लिए सुरिंदर कौर ने मधुकर मल्होत्रा की उम्मीदवारी के प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय तक नहीं पहुँचाया, ताकि टीके रूबी के सीओएल प्रतिनिधि चुने जाने में कोई समस्या न खड़ी हो । कुछेक लोगों का कहना/पूछना है कि राजा साबू को जब यही करना था, तो उन्होंने मधुकर मल्होत्रा की उम्मीदवारी का प्रस्ताव पास ही क्यों होने दिया ? क्लब के लोगों की तरफ से ही सुनने को मिला है कि राजा साबू दरअसल टीके रूबी की मदद सिर्फ करना ही नहीं चाहते थे, बल्कि मदद करते हुए 'दिखना' भी चाहते थे; उन्हें आशंका थी कि वह ऐसा यदि नहीं करते तो लोगों के बीच यही मैसेज जाता कि राजा साबू की तरफ से सीओएल प्रतिनिधि पद के लिए कोई प्रयास ही नहीं हुआ । जो हुआ - या जो किया गया, उसके जरिये राजा साबू ने दिखाने/बताने की कोशिश की है कि जब जितेंद्र ढींगरा और टीके रूबी उनके हितों को पूरा करने के लिए और उनके साथ नजदीकी बनाने के लिए बातों को भूल सकते हैं, तो वह भी मधुकर मल्होत्रा की उम्मीदवारी के कागज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय भिजवाना भूल सकते हैं । राजा साबू, जितेंद्र ढींगरा, टीके रूबी की इस भूल-भुलैय्या को देखते हुए मनप्रीत सिंह गंधोके ने राजा साबू से सिफारिश करना शुरू किया है कि उन्होंने जैसे जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट सर्विस ट्रस्ट और उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ फंड के पैसों के मामलों को भुलवा दिया है, वैसे ही उनके मामले को भी भुलवा दें । देखना दिलचस्प होगा कि भूलने के - फिलहाल सेलेक्टिव - चल रहे खेल में और क्या क्या भूला जायेगा ?
राजा साबू और जितेंद्र ढींगरा व टीके रूबी के पिछली बातों को भूलने और डिस्ट्रिक्ट में एक नई शुरुआत करने के 'खेल' में ताजा शिकार बने मधुकर मल्होत्रा लेकिन थोड़े दुखी हैं । लेकिन उन की समस्या यह है कि वह अपना दुखड़ा ज्यादा 'रो' भी नहीं पा रहे हैं । अपने क्लब के अपने नजदीकियों से यह कहते हुए उन्होंने अपना दुःख हल्का करने का प्रयास जरूर किया है, कि राजा साबू को अपने 'खेल' में उन्हें मोहरा नहीं बनाना चाहिए था । मधुकर मल्होत्रा के साथ, समस्या दरअसल यह हुई कि रोटरी के देशी-विदेशी बड़े नेताओं के बीच यह खबर फैल चुकी थी कि सीओएल प्रतिनिधि के लिए राजा साबू ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है, और उनके नाम का प्रस्ताव उनके क्लब में पास भी हो गया है । लेकिन उनकी उम्मीदवारी का प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय तक नहीं पहुँचा । यह बात जब सामने आई, तो लोगों ने मधुकर मल्होत्रा से पूछा कि आखिर हुआ क्या ? मधुकर मल्होत्रा की तरफ से इसका बड़ा मासूम सा जबाव सुनने को मिला कि उनके क्लब की प्रेसीडेंट सुरिंदर कौर उक्त प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय भेजना भूल गईं । सुरिंदर कौर एक गंभीर और जिम्मेदार अधिकारी के तौर पर जानी/पहचानी जाती हैं । क्लब के संयुक्त उपक्रम रोटरी एंड ब्लड बैंक सोसायटी रिसोर्स सेंटर का कामकाज देखने की जिम्मेदारी राजा साबू ने उन्हें ही सौंपी हुई है । किसी को विश्वास नहीं हो रहा है कि कोई प्रेसीडेंट - और वह भी सुरिंदर कौर जैसी जिम्मेदार प्रेसीडेंट इस तरह के मामले में भूल कर सकती हैं । और फिर चलो, मान लो कि वह सचमुच भूल गईं - तब भी सवाल यह है कि मधुकर मल्होत्रा खुद क्या कर रहे थे ? क्या उन्हें जरूरी नहीं लगा कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर क्लब में पास हुआ प्रस्ताव डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय पहुँचे - या वह भी भूल गए ?
रोटरी क्लब चंडीगढ़ में चर्चा यही है कि राजा साबू के कहने पर ही सीओएल प्रतिनिधि पद के लिए सुरिंदर कौर ने मधुकर मल्होत्रा की उम्मीदवारी के प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय तक नहीं पहुँचाया, ताकि टीके रूबी के सीओएल प्रतिनिधि चुने जाने में कोई समस्या न खड़ी हो । कुछेक लोगों का कहना/पूछना है कि राजा साबू को जब यही करना था, तो उन्होंने मधुकर मल्होत्रा की उम्मीदवारी का प्रस्ताव पास ही क्यों होने दिया ? क्लब के लोगों की तरफ से ही सुनने को मिला है कि राजा साबू दरअसल टीके रूबी की मदद सिर्फ करना ही नहीं चाहते थे, बल्कि मदद करते हुए 'दिखना' भी चाहते थे; उन्हें आशंका थी कि वह ऐसा यदि नहीं करते तो लोगों के बीच यही मैसेज जाता कि राजा साबू की तरफ से सीओएल प्रतिनिधि पद के लिए कोई प्रयास ही नहीं हुआ । जो हुआ - या जो किया गया, उसके जरिये राजा साबू ने दिखाने/बताने की कोशिश की है कि जब जितेंद्र ढींगरा और टीके रूबी उनके हितों को पूरा करने के लिए और उनके साथ नजदीकी बनाने के लिए बातों को भूल सकते हैं, तो वह भी मधुकर मल्होत्रा की उम्मीदवारी के कागज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय भिजवाना भूल सकते हैं । राजा साबू, जितेंद्र ढींगरा, टीके रूबी की इस भूल-भुलैय्या को देखते हुए मनप्रीत सिंह गंधोके ने राजा साबू से सिफारिश करना शुरू किया है कि उन्होंने जैसे जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट सर्विस ट्रस्ट और उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ फंड के पैसों के मामलों को भुलवा दिया है, वैसे ही उनके मामले को भी भुलवा दें । देखना दिलचस्प होगा कि भूलने के - फिलहाल सेलेक्टिव - चल रहे खेल में और क्या क्या भूला जायेगा ?