गाजियाबाद । झूठे दावे/वायदे करते हुए धोखाधड़ी करने के सिलसिले को जारी रखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने रोटरी फाउंडेशन के लिए बड़ी रकम इकट्ठा करने के लिए क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ धोखाधड़ी का एक बड़ा कांड कर डाला है । डीडीएफ अकाउंट में करीब 32 हजार डॉलर का बैलेंस होने की जानकारी होने के बावजूद, दीपक गुप्ता ने करीब एक लाख 60 हजार डॉलर की रकम क्लब्स को अलॉट कर दी है । अब जब अकाउंट में पैसा ही नहीं है, तो क्लब्स को पैसे मिलेंगे कहाँ से ? क्लब्स के पदाधिकारियों को लेकिन दीपक गुप्ता की इस धोखाधड़ी के बारे में तब पता चलेगा, जब रकम न होने कारण उनके प्रोजेक्ट्स निरस्त होंगे - तब तक दीपक गुप्ता पूर्व गवर्नर हो चुके होंगे और रोटरी फाउंडेशन के लिए बड़ी रकम इकट्ठा करने के लिए रोटरी के बड़े पदाधिकारियों और नेताओं से वाहवाही ले चुके होंगे । मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता की इस धोखाधड़ी का शिकार होने वाले क्लब्स में - रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर भी है, जिसमें दो दो गवर्नर हैं; एक पूर्व गवर्नर जेके गौड़, तथा दूसरे भावी गवर्नर अशोक अग्रवाल । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि जेके गौड़ तो डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन) हैं, और इस नाते यह उम्मीद की जाती है कि दीपक गुप्ता की इस धोखाधड़ी की जानकारी उन्हें होगी ही । हालाँकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि दीपक गुप्ता ने अपने शातिरपने में जेके गौड़ का 'मामू' बना दिया है, या जेके गौड़ किसी 'मजबूरी' में चुप बने हुए हैं - और अपने ही क्लब के पदाधिकारियों के साथ धोखा होने दे रहे हैं । भावी गवर्नर अशोक अग्रवाल को दीपक गुप्ता ने 'सर्विस अबव सेल्फ' का अवॉर्ड दिलवाया हुआ है, इसलिए वह दीपक गुप्ता की 'सर्विस' में हैं - और अपने ही क्लब के पदाधिकारियों के ठगे जाने के मामले में चुप हैं । क्लब के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों को हालाँकि लगता है कि इन्होंने दीपक गुप्ता के साथ इतनी सेटिंग तो कर ली होगी कि क्लब के लोगों का सारा पैसा न 'डूबे' ।
रोटरी फाउंडेशन के लिए ज्यादा से ज्यादा रकम इकट्ठा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स डीडीएफ अकाउंट का पैसा धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं, और उसे 'बेचते' हैं - लेकिन दीपक गुप्ता ने तो कमाल ही कर दिया है; डीडीएफ अकाउंट का पैसा ठिकाने लगाने के बाद उन्होंने फर्जी तरीके से डीडीएफ अकाउंट का 'वह पैसा' भी इस्तेमाल कर लिया, जो वास्तव में है ही नहीं । समाज में ऐसे किस्से खूब सुनने/देखने को मिलते हैं, जिनमें कि लोग अकाउंट में पैसा न होने के बावजूद चेक काट देते हैं - और फिर चेक पाने वाला परेशान भटकता रहता है और उसे पता चलता है कि वह धोखाधड़ी का शिकार बन गया है । दीपक गुप्ता ने ठीक इसी तर्ज पर काम किया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता से इतनी छोटी सी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वह जानते होंगे कि वह अपने गवर्नर-वर्ष के डीडीएफ अकाउंट की रकम ही क्लब्स को अलॉट कर सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं । वह अक्सर तरह तरह से अपने आपको जितना होशियार, रोटरी का ज्ञाता और नियमों का पालन करने वाला बताते/जताते हैं - उसके बाद कोई भी यह विश्वास नहीं करेगा कि दीपक गुप्ता ने अनजाने में करीब एक लाख 30 हजार डॉलर की रकम के ऐसे चेक काट दिए हैं, जो बैलेंस न होने के कारण बाउंस होंगे ही । जाहिर है कि दीपक गुप्ता ने यह काम जानते-बूझते हुए और योजनाबद्ध तरीके से किया है । दीपक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट टीम के उनके कुछेक नजदीकी पदाधिकारियों ने उन्हें आगाह भी किया कि उन्हें इस तरह की धोखाधड़ी नहीं करना चाहिए, लेकिन दीपक गुप्ता ने यह कहते हुए उन्हें चुप कर दिया कि वह कुछ जुगाड़ कर लेंगे ।
ग्लोबल ग्रांट्स से जुड़ी रोटरी फाउंडेशन की व्यवस्था में लेकिन किसी जुगाड़ के लिए कोई मौका ही नहीं है । ग्लोबल ग्रांट्स की व्यवस्था का बड़ा सुनिश्चित फार्मूला है - जिसमें प्रोजेक्ट की कुल रकम में क्लब, डीडीएफ अकाउंट, मैचिंग क्लब और रोटरी फाउंडेशन की हिस्सेदारी होती है; इनमें से किसी भी एक हिस्से के न होने से प्रोजेक्ट रिजेक्ट हो जाता है । ऐसे में, दीपक गुप्ता ने डीडीएफ अकाउंट में पैसा न होने के बावजूद - करीब एक लाख 30 हजार डॉलर की रकम जिन जिन प्रोजेक्ट्स के लिए अलॉट की है, उन प्रोजेक्ट्स को रिजेक्ट ही होना है; और प्रोजेक्ट की उम्मीद में रोटरी फाउंडेशन को पैसे देने वाले क्लब्स को हाथ मलते हुए ही रह जाना है । डीडीएफ अकाउंट में पैसे न होने के बावजूद दीपक गुप्ता ने जिन प्रमुख क्लब्स के साथ धोखा किया है, उनमें रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर के साथ-साथ रोटरी क्लब पिलखुवा सिटी, रोटरी क्लब दिल्ली सिटी, रोटरी क्लब दिल्ली यूनिवर्सिटी, रोटरी क्लब दिल्ली इम्पीरियल जैसे डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख क्लब्स भी हैं । इन क्लब्स की डिस्ट्रिक्ट में अच्छी सक्रियता और साख है, लेकिन दीपक गुप्ता इनके साथ भी धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आए हैं । दीपक गुप्ता ने फर्जी रूप में करीब एक लाख 30 हजार डॉलर की जो रकम अलॉट कर दी है, उसके चलते वास्तव में कौन-कौन से क्लब्स धोखाधड़ी का शिकार बनेंगे और अपने अपने प्रोजेक्ट्स को लेकर हाथ मलते रह जायेंगे - यह तो बाद में पता चलेगा; तब तक लेकिन दीपक गुप्ता रोटरी फाउंडेशन में जमा रकम को लेकर अपनी पोजीशन बना चुके होंगे, और रोटरी के बड़े पदाधिकारियों और नेताओं से शाबासी पा चुके होंगे ।
रोटरी फाउंडेशन के लिए ज्यादा से ज्यादा रकम इकट्ठा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स डीडीएफ अकाउंट का पैसा धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं, और उसे 'बेचते' हैं - लेकिन दीपक गुप्ता ने तो कमाल ही कर दिया है; डीडीएफ अकाउंट का पैसा ठिकाने लगाने के बाद उन्होंने फर्जी तरीके से डीडीएफ अकाउंट का 'वह पैसा' भी इस्तेमाल कर लिया, जो वास्तव में है ही नहीं । समाज में ऐसे किस्से खूब सुनने/देखने को मिलते हैं, जिनमें कि लोग अकाउंट में पैसा न होने के बावजूद चेक काट देते हैं - और फिर चेक पाने वाला परेशान भटकता रहता है और उसे पता चलता है कि वह धोखाधड़ी का शिकार बन गया है । दीपक गुप्ता ने ठीक इसी तर्ज पर काम किया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता से इतनी छोटी सी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वह जानते होंगे कि वह अपने गवर्नर-वर्ष के डीडीएफ अकाउंट की रकम ही क्लब्स को अलॉट कर सकते हैं, उससे ज्यादा नहीं । वह अक्सर तरह तरह से अपने आपको जितना होशियार, रोटरी का ज्ञाता और नियमों का पालन करने वाला बताते/जताते हैं - उसके बाद कोई भी यह विश्वास नहीं करेगा कि दीपक गुप्ता ने अनजाने में करीब एक लाख 30 हजार डॉलर की रकम के ऐसे चेक काट दिए हैं, जो बैलेंस न होने के कारण बाउंस होंगे ही । जाहिर है कि दीपक गुप्ता ने यह काम जानते-बूझते हुए और योजनाबद्ध तरीके से किया है । दीपक गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट टीम के उनके कुछेक नजदीकी पदाधिकारियों ने उन्हें आगाह भी किया कि उन्हें इस तरह की धोखाधड़ी नहीं करना चाहिए, लेकिन दीपक गुप्ता ने यह कहते हुए उन्हें चुप कर दिया कि वह कुछ जुगाड़ कर लेंगे ।
ग्लोबल ग्रांट्स से जुड़ी रोटरी फाउंडेशन की व्यवस्था में लेकिन किसी जुगाड़ के लिए कोई मौका ही नहीं है । ग्लोबल ग्रांट्स की व्यवस्था का बड़ा सुनिश्चित फार्मूला है - जिसमें प्रोजेक्ट की कुल रकम में क्लब, डीडीएफ अकाउंट, मैचिंग क्लब और रोटरी फाउंडेशन की हिस्सेदारी होती है; इनमें से किसी भी एक हिस्से के न होने से प्रोजेक्ट रिजेक्ट हो जाता है । ऐसे में, दीपक गुप्ता ने डीडीएफ अकाउंट में पैसा न होने के बावजूद - करीब एक लाख 30 हजार डॉलर की रकम जिन जिन प्रोजेक्ट्स के लिए अलॉट की है, उन प्रोजेक्ट्स को रिजेक्ट ही होना है; और प्रोजेक्ट की उम्मीद में रोटरी फाउंडेशन को पैसे देने वाले क्लब्स को हाथ मलते हुए ही रह जाना है । डीडीएफ अकाउंट में पैसे न होने के बावजूद दीपक गुप्ता ने जिन प्रमुख क्लब्स के साथ धोखा किया है, उनमें रोटरी क्लब गाजियाबाद ग्रेटर के साथ-साथ रोटरी क्लब पिलखुवा सिटी, रोटरी क्लब दिल्ली सिटी, रोटरी क्लब दिल्ली यूनिवर्सिटी, रोटरी क्लब दिल्ली इम्पीरियल जैसे डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख क्लब्स भी हैं । इन क्लब्स की डिस्ट्रिक्ट में अच्छी सक्रियता और साख है, लेकिन दीपक गुप्ता इनके साथ भी धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आए हैं । दीपक गुप्ता ने फर्जी रूप में करीब एक लाख 30 हजार डॉलर की जो रकम अलॉट कर दी है, उसके चलते वास्तव में कौन-कौन से क्लब्स धोखाधड़ी का शिकार बनेंगे और अपने अपने प्रोजेक्ट्स को लेकर हाथ मलते रह जायेंगे - यह तो बाद में पता चलेगा; तब तक लेकिन दीपक गुप्ता रोटरी फाउंडेशन में जमा रकम को लेकर अपनी पोजीशन बना चुके होंगे, और रोटरी के बड़े पदाधिकारियों और नेताओं से शाबासी पा चुके होंगे ।