नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के 'सामान' को अपने 'सामान' के रूप में 'दिखाने' की सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रमोद जैन की लगातार की जा रही कार्रवाईयों को लेकर इंस्टीट्यूट में कई बार शिकायतें की गई हैं, लेकिन लगता है कि प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता सहित इंस्टीट्यूट के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों की प्रमोद जैन को रोकने/टोकने की हिम्मत नहीं हो रही है - या प्रमोद जैन उनके रोकने/टोकने को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । प्रमोद जैन को जानने वाले लोगों को हैरानी इस बात की है कि प्रमोद जैन जैसा व्यक्ति ऐसी टुच्ची सी हरकत कर क्यों रहा है ? उन्हें जानने वाले लोगों का पूछने के अंदाज में कहना है कि प्रमोद जैन भले व्यक्ति हैं, चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में वह जेनुइन तरीके से काम करते हैं, उनके पास एक अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर है, उनके साथ काम करने वाले लोगों की अच्छी टीम है - उसके बावजूद वह इंस्टीट्यूट के 'सामान' को अपने 'सामान' के रूप में 'दिखाने' का 'ठगी' किस्म का काम क्यों कर रहे हैं ? कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को शिकायत है कि इंस्टीट्यूट के नीतिगत संबंधी फैसलों की घोषणा को वह जिस तरह से अपनी फर्म के बैनर से प्रचारित करते हैं, वह नैतिक मापदंडों के अनुरूप नहीं है - और प्रमोद जैन जैसे जिम्मेदार व्यक्ति से इसकी उम्मीद नहीं की जाती है । प्रमोद जैन खुद इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य हैं - इस नाते तो उन्हें ऐसी हरकत बिलकुल भी नहीं करना चाहिए । लेकिन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की तमाम शिकायतों और आरोपों के बाद भी प्रमोद जैन इंस्टीट्यूट के 'सामान' पर कब्जा करने का 'अपना काम' जारी रखे हुए हैं ।
इंस्टीट्यूट के 'सामान' को अपने 'सामान' के रूप में 'दिखाने का प्रमोद जैन का खेल बड़ा आसान-सा है - इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर नीतिगत फैसलों और प्रशासनिक फैसलों के जो पीडीएफ प्रसारित होते हैं, प्रमोद जैन उन्हें कॉपी करके, अपनी फर्म की वेबसाइट पर पेस्ट कर लेते हैं - और फिर अपनी वेबसाइट की उक्त पोस्ट के लिंक सोशल मीडिया में शेयर करते हैं । ऐसा करके, प्रमोद जैन लोगों के बीच यह दिखाने/जताने का करतब करते हैं कि उक्त नीतिगत और या प्रशासनिक फैसला उनकी फर्म के सौजन्य से लोगों के सामने आ रहा है । इस तरह, इंस्टीट्यूट के 'सामान' को प्रमोद जैन पहले तो कॉपी और पेस्ट करके अपना बना लेते हैं, और फिर सोशल मीडिया के अपने प्लेटफॉर्म्स के जरिये लोगों के बीच उसे अपने 'सामान' के रूप में प्रस्तुत करते हैं -
यानि 'हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा चोखा।' कई मौकों पर वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने भी कहा कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में रहते हुए तो प्रमोद जैन का ऐसा करना शोभा नहीं देता है; उन्हें लोगों तक इंस्टीट्यूट के नीतिगत और प्रशासनिक फैसले पहुँचाने का काम करना ही है - तो सीधे इंस्टीट्यूट के लिंक ही भेजने चाहिए । यह तो कंफर्म नहीं है कि वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के यह सुझाव प्रमोद जैन तक पहुँचे या नहीं, लेकिन यह कंफर्म है कि प्रमोद जैन ने इंस्टीट्यूट के 'सामान' पर अपनी फर्म का ठप्पा लगा कर उसे अपने 'सामान' के रूप में लोगों के बीच प्रस्तुत करना जारी रखा हुआ है ।
प्रमोद जैन की निरंतर जारी इस हरकत को लेकर इंस्टीट्यूट में शिकायतें भी की गई हैं, लेकिन उनका भी कोई असर नहीं हुआ है । मजे की बात यह है कि प्रमोद जैन के समर्थक और शुभचिंतक भी मानते और कहते हैं कि प्रमोद जैन यह जो कर रहे हैं, इसमें किसी नियम-कानून का उल्लंघन भले ही न हो रहा हो - लेकिन नैतिकता के तकाजे के तहत यह गलत है, और प्रमोद जैन को ऐसा नहीं करना चाहिए; इसके बावजूद, लेकिन प्रमोद जैन का कार्यक्रम जारी है । प्रमोद जैन के समर्थकों और शुभचिंतकों का ही कहना और बताना है कि प्रमोद जैन के इस कार्यक्रम से उनकी अच्छी-भली साख पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, लेकिन फिर भी प्रमोद जैन पता नहीं किस स्वार्थ में इस कार्यक्रम को जारी रखे हुए हैं ?