Tuesday, June 9, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में प्रियतोष गुप्ता से बड़े अंतर से पिछड़ते दिख रहे दीपक गुप्ता की चुनावी मुकाबले में अपने आप को बनाये रखने के लिए सोनीपत में दो नए क्लब बनाने की कार्रवाई को मजाक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

सोनीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी को मजबूती देने के लिए दीपक गुप्ता ने सोनीपत में दो नए क्लब बना/बनवा कर अपनी स्थिति का मजाक और उड़वा लिया है । सोनीपत में ही लोगों का कहना है कि फर्जी तरीकों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने की दीपक गुप्ता की तिकड़मी कोशिशों से वास्तव में उनकी निराशा और बौखलाहट ही जाहिर हो रही है । दीपक गुप्ता के प्रति हमदर्दी और समर्थन का भाव रखने वाले रोटेरियंस का भी कहना/बताना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में दीपक गुप्ता को अपनी सक्रियता में जो निरंतरता रखना चाहिए, उस पर तो उनका कोई ध्यान है नहीं - नए क्लब बना कर वोट गढ़ने/बनाने के जरिये चुनाव जीतने की उनकी कोशिश वास्तव में उनकी कमजोरी को ही दिखा रही है । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का हालाँकि कहना है कि यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनावी लड़ाई में दो/चार वोटों का भी बड़ा महत्त्व होता है; उनका दावा है कि लॉकडाउन पीरियड में डिस्ट्रिक्ट में जो पाँच/छह नए क्लब बने हैं, उन्हें भी दीपक गुप्ता के क्लब्स के रूप में देखा/पहचाना जाना चाहिए और सिर्फ सोनीपत के दो क्लब्स को ही नहीं देखना चाहिए । वास्तव में, इस तरह की बातों ने दीपक गुप्ता की स्थिति को मजाक विषय बनाया हुआ है । लोगों का कहना है कि चुनावी लड़ाई में महत्त्व तो एक वोट का भी होता है, लेकिन यह तब होता है - जब लड़ाई बराबर की हो; दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की हालत अभी भी जितनी पतली नजर आ रही है, उसमें यदि डिस्ट्रिक्ट में इस वर्ष बने सभी ग्यारह क्लब्स के वोट भी उनके खाते में पड़ जाएँ, तब भी दीपक गुप्ता का कोई भला नहीं होने वाला है ।
दीपक गुप्ता दरअसल खासतौर से गाजियाबाद और आमतौर से उत्तर प्रदेश व पूर्वी दिल्ली में समर्थन जुटाने की कोशिशों में जिस तरह से विफल हुए हैं, उसके चलते उनकी उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट में कोई भरोसा नहीं बन पा रहा है । दूसरों की तो छोड़िये, उनके अपने नजदीकियों और समर्थकों को यह भरोसा नहीं है कि उनकी उम्मीदवारी चुनाव तक बनी भी रह पायेगी या नहीं । दीपक गुप्ता ने पिछले महीनों में, लॉकडाउन से पहले गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों/कस्बों के रोटेरियंस के बीच संपर्क अभियान चलाया था और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन खोजने/बनाने के प्रयास किए थे - लेकिन उनके प्रयासों को जिस बुरी तरह से असफलता मिली, उससे उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को खासा तगड़ा झटका लगा है । दीपक गुप्ता के लिए झटके वाली बात दरअसल यह रही कि अलग अलग कारणों से उन्हें जिन जिन लोगों के समर्थन की उम्मीद थी, उन्होंने भी उनकी उम्मीदवारी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी से जुड़ने का 'कारण' रखने वाले लोगों को भी लग रहा है कि प्रियतोष गुप्ता के मुकाबले दीपक गुप्ता की स्थिति बहुत ही कमजोर है, और इसीलिए वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ जुड़ने से बचते दिख रहे हैं । मजे की बात है कि इससे प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी की स्थिति और मजबूत हुई है । खासतौर से गाजियाबाद और आमतौर से उत्तर प्रदेश व पूर्वी दिल्ली के क्लब्स में प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति जिस तरह का समर्थन-भाव दिख रहा है, उसी के चलते दीपक गुप्ता के लिए अपनी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन के उद्देश्य से यहाँ सेंध लगा पाना मुश्किल हुआ है ।
इस स्थिति के लिए दीपक गुप्ता के व्यवहार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । दीपक गुप्ता को जानने वाले लोगों का ही कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता की किसी से भी ज्यादा दिनों तक बनती नहीं है । यही कारण है कि दीपक गुप्ता कभी जिन लोगों के बड़े खास और नजदीक हुआ करते थे, अब वही लोग उनकी उम्मीदवारी के विरोधी बने हुए हैं । दूसरी तरफ, प्रियतोष गुप्ता के साथ मामला बिलकुल उल्टा है - वह जिस किसी के नजदीक और खास हुए, उसके नजदीकी और खास बन कर टिक गए । कई उदाहरण हैं, जहाँ किन्हीं दो नेताओं का एक-दूसरे के साथ तगड़ा विरोध है, लेकिन प्रियतोष गुप्ता के दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं - और यही बात प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को मजबूत बना रही है; और इसी के चलते दीपक गुप्ता के लिए समर्थन जुटाना मुश्किल हो रहा है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यह बनी है कि उनके लिए न तो प्रियतोष गुप्ता के समर्थकों के रूप में देखे/पहचाने जा रहे खासतौर से गाजियाबाद और आमतौर से उत्तर प्रदेश व पूर्वी दिल्ली के क्लब्स में समर्थन जुटा पाना संभव हो रहा है, और न उन्हें सोनीपत में ही अपने समर्थन-आधार को सुदृढ़ बनाये रख पाने में सफलता मिल रही है । प्रियतोष गुप्ता ने अपनी निरंतर सक्रियता से सोनीपत के क्लब्स में अपने लिए समर्थन जुटाने में जो कामयाबी पाई है, उसने उन्हें दीपक गुप्ता के मुकाबले अच्छी बढ़त दिलाने का काम किया है । इसीलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में अपने आप को बनाये रखने के लिए सोनीपत में दो नए क्लब बनाने की दीपक गुप्ता की कार्रवाई को मजाक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।